मजहबी जेहाद ने किया मासूमों का कत्लेआम
- जयकृष्ण गौड़
आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में जिस लिंट चाकलेट कैफे में घुसकर जेहादी आतंकी हारून सुनी ने डेढ़ दर्जन लोगों को बंधक बनाकर गोलीबारी कर दो लोगों को मार दिया, उसने अल्लाह के नाम का झंडा फहराकर और इस्लामी स्टेट के झंडे की मांग कर बता दिया कि उसने इस्लाम के नाम पर यह हिंसा और आतंक फैलाने की कार्रवाई की है। इसी प्रकार दूसरे दिन 17 दिसम्बर को तालिबानी आतंकियों ने पेशावर के आर्मी स्कूल में घुसकर बच्चों का कत्लेआम किया, इसमें 132 घरों के चिराग बुझ गये, यह बर्बर कार्रवाई भी इस्लामी जेहाद के नाम पर की गई। तहरीके तालिबान की ओर से कहा गया है कि पेशावर से लगे उत्तरी वजीरिस्तान में पाकिस्तान की सेना ने तालिबान के खिलाफ जो कार्रवाई की उसका बदला आर्मी स्कूल के बच्चों के कत्लेआम द्वारा लिया गया। इस पाशविक तरीके से शायद ही कोई सहमत हो कि सेना ने जो कार्रवाई की, उसका बदला मासूम बच्चों से लिया जाय। बताया जाता है पेशावर के आर्मी स्कूल में अधिकांश बच्चे पाक आर्मी जवानों के हैं। अब तीखा सवाल यह है कि तालिबानी, इस्लामी स्टेट या लश्करे तोएबा, अलकायदा आदि नामों से जो जेहादी संगठन हैं, वे दुनिया में इस्लाम के नाम पर हिंसा करते है, उनके विचार में शायद निर्दोषों की हत्या करने से ही उन्हें जन्नत मिलेगी। मजहबी जानकार कहते है कि जेहाद का सम्बन्ध आत्म नियंत्रण है, जीवन की बुराइयों को समाप्त करने को जेहाद माना जाता है। इस प्रकार जेहाद को परिभाषित करने का व्यवहारिक स्वरूप बिल्कुल विपरीत है, हर्दिश का संदर्भ देकर समझाने की कोशिश कट्टरपंथी करते हैं कि गैर मुस्लिम काफिर होते हैं और इनको समाप्त करने से ही जन्नत मिलती है, इस्लामी जेहाद को सही संदर्भ में परिभाषित करने की वैचारिक बहस चलती है तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं हो सकती, लेकिन यदि जेहाद का विकृत स्वरूप निर्दोषों की हत्या है तो फिर इसे दुनिया के खतरे के रूप में ही माना जायेगा। इसे मानवता या मजहब की किसी सीमा में नहीं रखा जा सकता। इस्लामी आतंकवाद का इतिहास भी खूनी रहा है। इस्लामी बादशाहों ने तलवार के आतंक से इस्लामीकरण की मुहिम चलाई। बाबर से लेकर औरंगजेब का इतिहास भी बर्बर रहा है। हिन्दुओं के मंदिरों को नष्ट भ्रष्ट कर मस्जिदें खड़ी की गई, राम जन्मभूमि से लेकर कृष्ण जन्मभूमि मथुरा, काशी विश्वनाथ की छाती पर खड़ी ज्ञानवापी मस्जिद बर्बरता की कहानी कहती है। इतिहास की इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि इने-गिने मुस्लिम हमलावर बाहर से आये, उन्होंने आतंक और हिंसा के द्वारा हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया। यदि अपने पूर्वजों की भूल को सुधार कर कोई पुन: हिन्दू बनना चाहता है सबसे अधिक दर्द भारत के कथित सेक्यूलरों को होता है, आगरा में घर वापसी के सामान्य आयोजन को लेकर सेक्यूलर बिल्ला लगाकर वोटों की राजनीति करने वाले कांग्रेसी, कम्युनिस्ट, सपा, बसपा के सदस्य संसद में हंगामा करने लगे। इनको ऐसा लगा कि यदि भारत के कुछ मुस्लिम अपनी पैतृक पहिचान से जुड़ गये तो सेक्यूलरी पर पहाड़ टूट पड़ेगा। इनसे पूछा जा सकता है कि जब वनवासी क्षेत्रों में भोले भाले गरीबों को थोक में ईसाई बनाया जाता है तो संसद में कोई आवाज क्यों नहीं उठी। जब पोप भारत के ईसाईकरण की बात करते हैं तो सेक्यूलर नेतृत्व ने इस बात का कभी विरोध क्यों नहीं किया। यदि शाही इमाम दिल्ली की जामा मस्जिद में सरकार और भारत के खिलाफ जहर उगलता है तो उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत राहुल, येचुरी, मुलायम, मायावती क्यों नहीं करते। इतिहास के खूनी पृष्ठों को पलटने की बजाय यदि स्वतंत्रता के बाद की घटनाओं के बारे में विचार करें तो कश्मीर घाटी में सैकड़ों छोटे बड़े मंदिरों को नष्ट भ्रष्ट कर कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार कर पलायन के लिए बाध्य किया गया, तब भी इन सेक्यूलरों को न दर्द हुआ और न इस नेतृत्व ने संसद में आवाज उठाई।
कश्मीर घाटी में हिन्दू पंडितों पर अत्याचार हुए, उनके दुध मुंहे बच्चों को भी मारा गया, यह सब भी इस्लाम के नाम पर हुआ। कश्मीर घाटी और देश के अन्य भागों में जो विस्फोट हुए, वे सब इस्लामी जेहाद के नाम पर हुए है। क्या यही है इस्लाम का चेहरा? भारत के शरीर पर जेहादी आतंकियों ने कई घाव किये हंै। मुस्लिम युवकों को कच्ची उम्र में बंदूकें थमाकर हिंसक दरिन्दे बनाने का कार्य इस्लाम के नाम पर होता है, इन आतंकियों ने कई मदरसों और मस्जिदों को अपना कैम्प बना रखा है। पाकिस्तान का निर्माण भारत भूमि पर कृत्रिम देश के रूप में हुआ। जन्म काल से ही वह भारत का दुश्मन बना हुआ है। चार युद्ध भारत के साथ हो चुके है। सीधे युद्ध में जब वह बुरी तरह पराजित हुआ तो उसने भारत के साथ जेहादी आतंकवाद के माध्यम से परोक्ष युद्ध प्रारंभ किया जो करीब तीस वर्षों से चल रहा है, इसमें निर्दोष नागरिक और सैनिक इतने शहीद हुए, जितने बड़े युद्ध में भी नहीं होते। १३ दिसम्बर २००१ को भारत की संसद पर पाकिस्तान के आतंकियों ने हमला किया, उस समय दो सौ से अधिक सांसद संसद भवन में थे, नौ सुरक्षा जवानों ने अपने जीवन का बलिदान देकर देश के शीर्ष नेतृत्व की सुरक्षा की। जम्मू के प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर पर दो बार आतंकियों ने हमला कर बीस से अधिक हिन्दू श्रद्धालुओं की हत्या कर दी। जिस तरह पाक के सेना स्कूल पर हमला कर जेहादी दरिन्दों ने बर्बरता का तांडव कर मासूम बच्चों की हत्या कर दी, उसी तरह जम्मू के कालू चक्र केन्टोमेंट में भारतीय सेना के तीस परिवारों को पाक के आतंकियों ने गोलियों से भून दिया, उसमें भी निर्दोष महिलाएं और निर्दोष बच्चे थे। उन्होंने इन दरिन्दों का क्या बिगाड़ा था। पहलगांव में हिन्दू तीर्थ यात्रियों की हत्या की गई। गुजरात के गांधी नगर अक्षर धाम मंदिर पर हमला कर चौबीस हिन्दू श्रद्धालुओं की हत्या कर दी। यह सिलसिला लगातार चल रहा है। यह पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद है जो हजारों निर्दोष भारतीयों का खून बहा चुका है? भारत के शरीर पर जेहादी आतंकवाद के कई घाव लगे हैं। पाकिस्तान के साथ भारत ने जब भी दोस्ती का हाथ बढ़ाया, उसने हाथ को ही जख्मी कर दिया।
इसी संदर्भ में इस घटना का संदर्भ देना होगा, जब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी शांति वार्ता के लिए बस से लाहौर गये, उस समय के पाक सेना प्रमुख मुशर्रफ ने प्रोटोकाल के अनुसार उनका अभिनंदन भी नहीं किया। इसके विपरीत मुशर्रफ ने कारगिल में घुसपैठ कर सीधी लड़ाई की स्थिति पैदा कर दी। २६ नवम्बर २००८ के मुंबई हमले ने दुनिया को थर्रा दिया। उसमें भी सैकड़ों निर्दोष नागरिक मारे गये। हालांकि हर आतंकी हमले से पाकिस्तान अपना पल्ला झाड़ता रहा, लेकिन पाक के पूर्व फौजी तानाशाह मुशर्रफ ने अपने कथन में स्वीकार किया कि उसने आतंकियों को तैयार कर कश्मीर में भेजा था। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अफगानिस्तान की तालिबानी हुकूमत को सबसे पहले मान्यता पाकिस्तान ने दी। मुशर्रफ के इस कथन से इस सवाल का उत्तर मिल जाता है कि तालिबान का वर्चस्व किसने बढ़ाया और ये ही तालिबानी दरिन्दे यदि सैनिक स्कूल के मासूम बच्चों का कत्लेआम करते हैं तो इसमें कमोबेश पाकिस्तान की भागीदारी से इंकार नहीं किया जा सकता (हमारे यहां यह मुहावरा प्रचलित है कि बोये बीज बबूल के तो आम कहां से खाय। अमेरिका के न्यूयार्क टाइम ने यह लिखा है, पाकिस्तान ने भारत अफगानिस्तान पर हमलाकर जो जहर का पौधा बोया उसका फल उसे मिल रहा है।
मासूम बच्चों की हत्या के दु:ख में भारत ने न केवल संवेदना व्यक्त की है, बल्कि यह भी कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में भारत भी पाकिस्तान के साथ है। भारत की सहिष्णुता और उदारता को पाकिस्तान ने हमेशा गलत समझा है, जब जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया चल रही है, तब पाकिस्तान के आतंकियों ने हमला किया। जम्मू-कश्मीर के लोगों ने काफी संख्या में मतदान कर पाकिस्तान की साजिश को असफल कर दिया। अब हर समय पाकिस्तान कश्मीर का रोना रोता है। हालांकि कश्मीर का विलय तो भारत संघ में 1948 में ही हो गया है। अब तो भारत का दावा पाक कब्जे वाले एक तिहाई कश्मीर पर है, जिस पर पाकिस्तान ने बलात् तरीके से कब्जा कर रखा है।
बच्चे भगवान का रूप होते हैं, उनकी बर्बर हत्या का दु:ख जितना पाकिस्तान को है उतना ही भारत को भी है। यह भी कहा जाता है कि लड़कियों की शिक्षा की पैरवी करने वाली स्वात घाटी की मलाला लड़की पर गोली दागने वाले भी तालिबानी थे। उस क्षेत्र में लड़कियों के स्कूलों पर भी हमले किये गये। इन सवालों का उत्तर मुस्लिम नेतृत्व की ओर से आना चाहिए कि लड़कियों की शिक्षा की पैरवी करने वाली लड़की मलाला क्या इस्लाम की दृष्टि से अपराधी है, क्या दुनिया की आधी जनसंख्या अर्थात महिलाओं को बुर्के की कैद में रखना जायज है? क्या तीन बार कहने पर पुरूष द्वारा तलाक देना और तीन बीवियां रखना महिलाओं पर अत्याचार नहीं है? इसके साथ ही वर्तमान पाशविक हिंसक घटनाओं से सम्बन्धित प्रासंगिक सवाल यह है कि जिन तालिबानियों को वर्चस्व स्थापित करने में पाकिस्तान ने मदद की, जिन्होंने मासूमों की हत्या करने को जेहाद माना है। तालिबानी स्वयं को इस्लाम का पैरोकार मानते हैं, उनका इस्लाम सच्चा है या तालिबानी दरिन्दों ने जिन मासूमों का खून बहाया, जिन्होंने कई मुस्लिम परिवारों के चिराग बुझा दिये, जो मुस्लिम माताएं आँसुओं की झड़ी लगाकर इन दरिन्दों को कोस रही है, जो गोली से घायल बच्चे कह रहे हैं कि हम इन दहशत गर्दों की नश्लें खत्म कर देंगे। इन बच्चों, इन माताओं और विलाप करते उजड़े मुस्लिम परिवारों का इस्लाम सच्चा है? क्योंकि अल्लाह के नाम पर तालिबानी भी जेहाद करते है और इनके द्वारा जिन मासूमों का खून बहाया गया वे भी अल्लाह की दुहाई देते हैं। कौन अल्लाह का बंदा है? लेकिन मासूमों के कत्लेआम के बाद तो यह जाहिर हो चुका है कि बर्बर जेहाद न इस्लाम का है और न अल्लाह का है। यह तो बर्बरता का ऐसा नारा है जो मानव जीवन के सर्वनाश के द्वारा इस्लाम को स्थापित करना चाहता है।
(लेखक - राष्ट्रवादी लेखक और वरिष्ठ पत्रकार है)