फटने लगा है चीन का गुब्बारा
- संजीव पांडेय
भारत से वापसी के बाद चीनी राष्ट्रपति के एक बयान ने चीन के आंतरिक हालात बता दिए हैं। वहीं पश्चिमी चीन में उइगर मुसलमानों का विद्रोह और हांगकांग में चीन के खिलाफ उठते असंतोष ने जता दिया है कि चीनी कम्युनिस्टों और सैनिकों का भय लोगों में कम हो रहा है। चीन लौटते ही राष्ट्रपति जिनपिंग द्वारा क्षेत्रीय युद्ध के लिए तैयार रहने संबंधी आदेश उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं जितने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के निर्देशों को सख्ती से मानने संबंधी दिए गए आदेश महत्वपूर्ण हैं। चीनी राष्ट्रपति के आदेशों ने खलबली ही सिर्फ नहीं मचायी है, बल्कि चीन का मजबूत गुब्बारा भी पंचर होता दिख रहा है। चीनी राष्ट्रपति द्वारा पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को दिए गए आदेश बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि इस आदेश में क्षेत्रीय युद्ध की तैयारी, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति स्वामिभक्ति-विश्वास, केंद्रीय नेतृत्व के आदेशों को सख्ती से लागू करना आदि शामिल है। क्षेत्रीय युद्ध की बात सुनते ही चीन के पड़ोसी हरकत में आ गए। हरकत में आने की वजह भी थी। लेकिन स्वामीभक्ति, विश्वास आदि शब्दों से दुनिया चौंक गई। आखिर चीन के राष्ट्रपति को अपनी ही सेना के अधिकारियों को ये आदेश क्यों देने पड़े? क्षेत्रीय युद्ध की बात चीन के लिए नई नहीं है। चीन अक्सर क्षेत्रीय युद्ध की परिस्थितियों को पैदा करता है। लेकिन पीएलए के लिए विश्वास और स्वामिभक्ति शब्द ने दुनिया को हैरान किया है। जिनपिंग के इन आदेशों से यह संकेत है कि चीन में सब कुछ ठीक नहीं है। कहीं न कहीं चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लीडरशिप और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में तनाव है। हालांकि इसकी कई वजहें हो सकती हैं।
भारत से लौटते ही जिनपिंग ने एक महत्वपूर्ण बैठक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के अधिकारियों के साथ की थी। चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी ने इस बैठक की खबर दुनिया को दी। बैठक में जिनपिंग ने क्या आदेश दिए इसे बताया गया। जिनपिंग ने सैन्य अधिकारियों को कहा कि वो एक क्षेत्रीय युद्ध के लिए तैयार रहें। लेकिन इससे ज्यादा एक और सख्त आदेश जिनपिंग ने दिया। उन्होंने सैन्य अधिकारियों को आदेश दिया कि यह तय किया जाए कि जो आदेश केंद्रीय नेतृत्व और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को दे रही है, उसे पूरी तरह से लागू किया जाए। बैठक के बाद चीनी रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि जो आदेश जिनपिंग देते हैं उसे पीएलए तुरंत लागू करे। जिनपिंग ने पीएलए अधिकारियों को आदेश दिया वे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति अपनी स्वामिभक्ति बनाए रखें। गौरतलब है कि जिनपिंग चीन के सेंट्रल मिलिट्री कमिशन के भी मुखिया हैं।
जिनपिंग ने क्षेत्रीय युद्ध की तब बात की जब लद्दाख में पीएलए ने घुसपैठ कर रखी थी। लेकिन इस क्षेत्रीय युद्ध का मतलब सिर्फ भारत नहीं है। चीन का विवाद भारत समेत जापान, वियतनाम, फिलीपिंस आदि देशों से भी है। चीन को जापान का भय आज भी है। बेशक आज जापान से चीन सैन्य दृष्टि से मजबूत है। लेकिन चीनी जापानियों के मनोवैज्ञानिक भय का शिकार हैं। चीन के अंदर घुसकर चीन को पीटने की क्षमता जापानी रखते हंै। इतिहास में जापानी यह कर चुके हैं। जापान आर्थिक रूप से भी चीन को भारी चुनौती दे रहा है। मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में चीन को वास्तविक चुनौती जापान ही देगा। चीन की परेशानी इसलिए भी बढ़ी है कि भारत-जापान के बढ़ते रिश्ते चीनी आर्थिक हितों को सीधे नुकसान पहुंचाएंगे। शिंजो अबे के नरेंद्र मोदी के नजदीक रिश्तों पर निशाना लगाने के लिए चीनी राष्ट्रपति ने गुजरात में भारी निवेश की घोषणा की है। उधर वियतनाम और फिलीपिंस भी चीन के खिलाफ मोर्चा बनाने को तैयार है। क्योंकि दक्षिण चीन सागर के संसाधनों पर कब्जा करने के लिए चीन लगातार इनपर गलत दबाव बना रहा है। इसलिए क्षेत्रीय युद्ध की परिभाषा में सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया के कई देश हंै, जिनकी गोलबंदी भारत के साथ हो सकती है।
जिनपिंग के आदेश चीन के आंतरिक हालात को बयां करते हैं। इससे पता चलता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पकड़ पीपुल्स लिबरेशन आर्मी पर कमजोर हो रही है। जिनपिंग जब भारत में थे तो चुमार में घुसपैठ को लेकर नरेंद्र मोदी ने जिनपिंग से सख्ती से बात की। जिनपिंग ने मोदी की इस चिंता को समझा। उन्होंने दिल्ली से ही पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को वापस चीनी सीमा में लौटने के आदेश दिए। लेकिन जिनपिंग के इस आदेश का कोई असर नहीं हुआ। इससे चीनी राष्ट्रपति की भारी फजीहत हुई। सवाल उठ रहा है कि क्या पीपुल्स लिबरेशन आर्मी पाकिस्तानी सेना की राह पर चल रही है। पाकिस्तानी सेना हमेशा अपने सुप्रीम कमान की बात नहीं मानती है। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को सेना अपनी नोंक पर रखती है। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को रावलपिंडी स्थिति हेडक्वार्टर में जाकर हाजिरी लगानी पड़ती है। कहीं न कहीं चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और पीएलए के बीच तनाव है। इसका एक कारण चीनी सेना में भ्रष्टाचार भी है। बताया जाता है कि जिनपिंग ने कई भ्रष्ट सैन्य अधिकारियों पर कार्रवाई की। उनकी संपतियों को जब्त किया है। वहीं जिनपिंग ने अपने कुछ करीबियों को सेना में उच्च पद भी दिए हैं, जिससे सेना का एक तबका जिनपिंग से नाराज है।
चीन की समस्या दुनिया के सामने आ रही है। चीन की मजबूती का गुब्बारा फट रहा है। अलगाववाद और भ्रष्टाचार चीन की प्रमुख समस्या है। पश्चिमी चीन इस्लामी जेहाद का शिकार है। जेहादियों की ताकत को लेकर भारत ने चीन को पहले ही चेताया था। लेकिन चीन को अपने पुराने दोस्त पाकिस्तान पर बहुत विश्वास था। अब पता चल रहा है कि जेहादियों को ट्रेनिंग फाटा एरिया में तालिबान और आईएसआई ने दी है। ज्यादातर उइगर आतंकियों के पास आईएसआई द्वारा जारी पाकिस्तानी पासपोर्ट है। भ्रष्टाचार का आलम यह है कि जिनपिंग के भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई में 65 अरब डालर की संपत्ति बरामद हुई है। भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई के शिकार मंत्री, फौजी अधिकारी, राजदूत तक हुए हंै। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं से लेकर फौज तक चीन में भ्रष्ट हो गई है। बीते कुछ महीनों में कुछ चीनी राजदूतों को हटाया गया है। उनके ऊपर चीन में कार्रवाई की जा रही है। बताया जा रहा है कि ये चीनी राजदूत चीन के दुश्मन देशों से मिल गए थे। अभी हाल ही में आइसलैंड के राजदूत की जब आइसलैंड में वापसी नहीं हुई तो दुनिया की नजरें वहां गई। पता चला कि राजदूत जापानी हाथों में खेल रहे थे। उन्हें वापस चीन बुलाया गया। उनसे पूछताछ हो रही है। इसी तरह से कई और राजदूतों पर चीन की निगाह है जो चीन के दुश्मनों से मिले हुए हैं।