अग्रलेख

Update: 2014-10-04 00:00 GMT

     पश्चिम का पूरब से मिलन

  • भरतचन्द नायक

 
100घंटों में जिस तरह 50 राजकीय, वैदेशिक, वाणिज्यिक और सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर अमेरिका में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भविष्य की संभावनाओं का दिग्दर्शन कराते हुए साबित किया कि 21वीं शताब्दी एशिया और भारत की होगी। स्वामी विवेकानंद के बाद पहली बार भारत की अंतर्निहित ऊर्जा से विश्व रूबरू हुआ। समा कुछ ऐसा बंधा कि 5 दिन अमेरिका में भारत छाया रहा। विश्लेषकों का कहना है कि भारत में विदेशी अतिथियों के प्रवास पर जहां भारतीय मीडिया कुर्बान नजर आता है अमेरिका में प्रधानमंत्री के दौरे का समाचार किसी कोने में ही स्थान पाता है, लेकिन नरेंद्र मोदी पर अमेरिका सहित दुनिया के मीडिया ने कुछ अलग ही सलूक किया। नरेंद्र मोदी अग्रलेखों में छपे हुए दिखे। नरेंद्र मोदी ने सारे मिथक तोड़ दिये। एक बार तो मीडिया विश्लेषकों को यह आशंका भी पैदा हो गयी कि मोदी के सम्मान में उमड़ी भीड़ के समाचारों से कहीं राष्ट्रपति बराक ओबामा और मोदी के बीच संवाद और कार्यक्रम नजर से ओझल ना हो जाये, लेकिन मोदी का ग्राफ विश्व मीडिया में बेजोड़ बना दिया। उसी कुशलता और चातुर्य का परिचय देते हुए नरेंद्र मोदी ने भी संयुक्त राष्ट्र संघ की गरिमा और सम्मान को बढ़ाया लेकिन उसके असली उद्देश्यों में आये ठहराव की ओर विश्व की शक्तियों को सचेत कर दिया। आखिर विश्व की सर्वोच्च संस्था होते हुए आतंकवाद के मामले में विश्व संस्था नियम, कानून और नीति निर्धारित और उसका दृढ़ता से परिपालन कराने में विफल क्यों रही। आतंकवाद को लेकर अपनी ढपली अपना राग खुद संस्था की प्रासंगिकता पर एक टिप्पणी बन गया है।
भारत और अमेरिका दुनिया के दो बड़े लोकतंत्र है। अमेरिका अपने विकास के चरम पर है और सोवियत संघ के विघटन के पश्चात महाशक्ति के रूप में अपने को प्रथम पंक्ति में प्रथम मानता है जबकि भारत 65 करोड़ युवा शक्ति के साथ सवा अरब आबादी का ऐसा मुल्क है जो अपनी सनातन संस्कृति को सहेजता हुआ विकास की राह में प्रवेश कर रहा है। विकास के इस दौर में जहां उसने मेक इन इंडिया जैसे अभियान में कदम रखा है। वहीं भारत में निवेश की संभावनाएं धरातल पर उतर चुकी हैं। मोदी के दौरे के समय अमेरिका के कारपोरेट जगत ने कुछ समस्याएं बराक ओबामा को नोट करायी थीं जिनमें जटिल कानून, व्यवहारिक दिक्कतें हैं। यूएस चेंबर्स ऑफ कॉमर्स और पन्द्रह सौ संगठनों ने जो दिक्कतें बतायी थीं, उस दिशा में नरेंद्र मोदी पहले ही दुरूस्ती की ओर कदम बढ़ा चुके हैं, यह जानकर स्वाभाविक रूप से अमेरिकी उद्यमियों की चिन्ताएं कम हुई होंगी। नरेंद्र मोदी के अभियान के अंतर्गत करीब एक हजार पुराने कानून, कानूनी संशोधन लेखानुदान कानून खारिजी की सूची में दर्ज हो चुके हैं। शीतकालीन संसद के सत्र में यह काम निपटाया जाना प्रस्तावित है।
जैसी कि नरेंद्र मोदी की छवि का विश्वव्यापी विस्तार हुआ है हूबहू उसी छवि में दुनिया ने संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच पर मोदी को पाया है। उनकी देह भाषा के साथ दूरदर्शितापूर्ण तकरीर को सुनकर जहां पाकिस्तानी हुक्मरानों ने अपनी गलती स्वीकार की, वहीं पश्चिमी दुनिया की निगाहें अब भारत पर टिक गयी हैं। इसे पश्चिम का पूरब से मिलन कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। मोदी का अपना प्रकटीकरण और बिना नाम लिये निशाना कितना अचूक होता है कि लक्षित व्यक्ति अपने घावों को सहलाता रह जाता है। जब संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शरीफ की तकरीर हुई उन्होंने कश्मीर का पुराना राग आलापा। पाक प्रधानमंत्री इस मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने पर आमादा थे।
दूसरे दिन नरेंद्र मोदी का संबोधन था और राजनैतिक विश्लेषक हैरान थे कि भारत क्या जवाब देगा, लेकिन नरेंद्र मोदी ने एक तीर से दो निशाने ऐसे साधे कि लक्षित व्यक्ति चित हो गया। उन्होंने कहा कि यूएनओ ऐसे मसले उठाने का फोरम नहीं है। फिर दहशतगर्दी के बल पर किसी को बात करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। दहशतगर्दी मानवता के विरुद्ध अपराध है और इससे अधिकांश राष्ट्र आहत हैं, जबकि कुछ देशों ने इसे अपनी विदेश नीति का अंग बना रखा है। अपराध बोध से नवाज शरीफ का पसीना छूट गया। पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकार ने माना कि पाक और भारत के बीच सचिव स्तर की वार्ता में आये गतिरोध के लिये पाक दोषी हैं। मजे की बात यह कि नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट शब्दोंं में कहा आतंकवाद से दुनिया परेशान है लेकिन यूएनओ इसमें तमाशबीन बना बैठा है। कुछ मुल्क ऐसे भी हैं जो दहशतगर्दी को अपनी खुदगर्जी के चश्मे से देखकर इस बुराई को अच्छा भी बता रहे हैं। मोदी ने कहा कि आतंकवाद इन्सानियत पर बर्बर आक्रमण है, जिसका बिना भेदभाव के मुकाबला करना सामूहिक फर्ज है। अमेरिका जो तालिबान को अच्छा और एक फिरके को तालिबान बुरा बताता आ रहा है उसे भी समझ में आया कि ऊंट पहाड़ के नीचे आ चुका है।
बहरहाल नरेंद्र मोदी के अमेरिकी दौरे में जो कामयाबियां दिखी हैं उससे भारत में निवेश का रास्ता खुलने की उम्मीद की जा सकती है। जापान और चीन से जो समझौते हुए हैं उन्हें जोड़ा भी जाये तो 70 लाख डालर का निवेश बनता है, लेकिन भारत में चल रही तैयारियों, अधोसंरचना विकास की चुनौती बहुत बड़ी है, जिसमें किसी मुल्क की सरकारों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। ऐसे में नरेंद्र मोदी का न्यूयार्क, वाशिंगटन में कॉरपोरेट्स और कंपनियों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों से मुलाकात वास्तव में उत्साहजनक पहल है। केंद्र सरकार ने उनकी चिंताओं के प्रति संवेदनशील रूख अपनाकर उनके अनुकूल पर्यावरण बनाने की शानदार पहल करके उन्हें उत्साहित किया है। अमेरिका के मौजूदा नेतृत्व ने भारत में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व में आये निखार को परखने के लिये अपने राजदूतों को भेजा और नरेंद्र मोदी को करिश्मायी व्यक्तित्व, सशक्त नेता, लगनशील प्रशासक पाया है। यही कारण है कि बराक ओबामा अब नरेंद्र मोदी की ओर विश्व के मसले हल करने की दिशा में उम्मीदें लगा रहे हैं। नरेंद्र मोदी संकल्प करने के बाद टास्क को समय बद्धता में निपटाने के अभ्यस्त हैं। पश्चिमी सभ्यता इसका सम्मान करती है। ऐसे में अमेरिका और भारत के बीच जो सामंजस्य बना है। उसका भरपूर लाभ उठाया जा सकता है। यह बात अलग है कि भारत की अपनी स्वभावगत समस्याएं हैं। विश्व व्यापार संगठन में भारत ने सब्सिडी वाले मामले को रोक दिया है, जिससे अमेरिका आहत है। इसी तरह परमाणु नीति के बारे में भारत अपनी संप्रभुता से खिलवाड़ नहीं कर सकता। सबसे बड़ी बात यह है कि भारत की नीति जो भी है, उसमें प्रामाणिकता, नैतिकता और विश्व कल्याण की भावना निहित है। ऐसे में पश्चिम को भी भारत की प्रतिबद्धताओं के प्रति उदार भाव अपनाना होगा। समय की अनुकूलता का अधिकतम लाभ उठाना भी कुशलता की कसौटी है।
अमेरिका की सफल यात्रा से नरेंद्र मोदी ने जो उत्साह जगाया है और माहौल बनाया है उसे कायम रखना बहुत बड़ी चुनौती है। अतीत की समृद्धि पर कोई भी मुल्क उल्लासित तो हो सकता है स्वाभिमान से खड़ा नहीं हो सकता। इसके लिऐ तो हमें अपने पौरूष और सामथ्र्य की परीक्षा देना ही होगी। यहां पर एक्टिवनेस के साथ जिस तरह सादगी और स्पष्टवादिता से नरेंद्र मोदी ने राजनीति को एक अनूठा मोड़ दिया, विश्लेषकों का एक ही स्वर था मोदी इज रॉकिंग दी वल्र्ड।

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