घूसखोरी के आरोप पर कांग्रेस की चुप्पी क्यों
- राजनाथ सिंह 'सूर्य'
जिस कांग्रेस ने हरियाणा कैडर के दो सिपाहियों के राजीव गांधी के आवास दस जनपथ-में प्रवेश को मुद्दा बनाकर चंद्रशेखर की सरकार से समर्थन वापिस लेकर देश को 1994 में लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने के पूर्व ही चुनाव में जाने के लिए विवश कर दिया था, क्या कारण है कि वही कांग्रेस आम आदमी पार्टी के अराजक आचरण और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे पर 'घूसखोर होने का आरोप लगाने के बावजूद समर्थन वापिस लेने से कतरा रही है। अरविंद केजरीवाल ने दो पुलिस दरोगाओं को निलंबित करने की मांग को लेकर रेल भवन के सामने अपने मंत्रिमंडल के साथ धरने पर बैठने को 'नवक्रांति की संज्ञा भले ही प्रदान की हो लेकिन उनके लाखों लोगों को जुटाने की बार-बार की गई अपील का उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र पर भी प्रभाव नहीं पड़ा। रेल भवन में उनके साथ 200 से अधिक लोग कभी नहीं जुटे और पुलिस के घेरे के बाहर की संख्या कुछ सौ में सिमटकर रह गई वह भी वे लोग थे जो हरियाणा से आये थे।
रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण के समय उमड़ी भीड़ के कारण दिल्लीवासियों में अपनी पैठ का आंकलन आम आदमी पार्टी ने विधानसभा की 28 सीटें जीतने से भी अधिक किया था, लेकिन एक ही सप्ताह में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के आचरण ने दिल्लीवासियों की निगाह में आम आदमियों की पार्टी होने का दावा करने वालों के ''खास आचरण से उनकी साख को जो बट्टा लगाया है, उससे सबसे ज्यादा परेशानी उन लोगों को हो रही है जिन्होंने नरेंद्र मोदी के बाद अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री के लिए राहुल गांधी, मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी से भी अधिक मजबूत दावेदार के रूप में पेश किया था। दिल्ली में सरकार गठित करने, शपथ लेने और मेट्रो या ऑटो से पहले दिन सचिवालय आने के बाद जिस प्रकार का बदलाव दिखाई पड़ा, शायद उसे कार्य की सुविधा के रूप में लोगबाग हजम कर जाते लेकिन मंत्रियों के उत्पाती आचरण और मुख्यमंत्री की संविधान की शपथ और नैतिक दायित्व की मर्यादा के खिलाफ आचरण तथा गणतंत्र दिवस परेड का अभिजात्य वर्ग का समारोह करार देते हुए राजपथ पर लाखों आम आवाम को खड़ा करने के प्रगल्भित बयान ने देशभर में इस संगठन से शुचिता की राजनीति करने की अपेक्षा में, जो अनुकूलता दिखाई पड़ी थी, वह उसी प्रकार भस-भसाकर बैठ गई जैसे राख पानी डाल देने पर बैठ जाती है। निश्चय ही इस स्थिति से उन लोगों को भारी निराशा हुई होगी जो देश में चल रही परंपरागत राजनीति के विकल्प स्वरूप आम आदमी पार्टी के प्रति आशान्वित हुए थे। केजरीवाल की प्रगल्भ अभिव्यक्ति उनके कानून मंत्री सोमनाथ भारती की दबंगई के कारण अनुकूल जनमत के विपरीत दिशा पकडऩे की स्थिति को चाहे जितनी सौम्यता के साथ योगेंद्र यादव ने संभालने का प्रयास किया हो, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि रेल भवन के धरने से जिस हताशा के साथ तिनके का सहारा पाकर अरविंद ने वापसी की है उसने उनकी साख को गिराने का ही काम किया है। उम्मीद यह थी कि इस स्थिति से सबक लेकर पार्टी उन्माद का रास्ता छोड़कर सुशासन पर ध्यान देगी लेकिन गणतंत्र दिवस के एक दिन पूर्व दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में पुलिस की सलामी लेकर स्कूली बच्चों के सामने केजरीवाल ने जिस उद्दंडतायुक्त अभिव्यक्ति का सहारा लिया उसने इस संभावना पर पानी फेर दिया है। यही नहीं उन्होंने और उनके कानून मंत्री ने मीडिया पर पैसा लेने का आरोप लगाकर अपनी ही कब्र खोदने का काम किया है। वे भूल गए कि उनकी पार्टी मीडिया की ही देन है। अब मीडिया ने उनके उद्दंड आचरण पर जब ''पुन: मूसको भव:का आईना दिखाया तो उनके लिए असहनीय हो गया। जैसा कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी कहा है कि मर्यादा और शासन के दो दायित्व के निर्वाहन का कोई विकल्प नहीं हो सकता। लेकिन केजरीवाल से किसी को शालीनता की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। वे अपनी उद्दंडता की राजनीति को इतना बढ़ावा देने पर उतारू हैं जिससे ऊबकर कांग्रेस समर्थन वापिस ले ले। वैसे सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी उद्दंडता का संज्ञान ले लिया है पर कांग्रेस कब लेगी?
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपनी करारी हार से हताश कांग्रेस ने कम से कम दिल्ली में नरेंद्र मोदी के अभियान को रोकने की जिस उम्मीद से आम आदमी पार्टी को ''बिना शर्त और ''बिना मांगेसमर्थन दिया और केजरीवाल के गैर संवैधानिक आचरण के खिलाफ उप राज्यपाल को ज्ञापन भी-उसके बावजूद सरकार को समर्थन जारी रखकर कांग्रेस अपनी साख खोती जा रही है। माना यह जा रहा है कि दिल्ली की सत्ता संभालते ही पूर्व मुख्यमंत्री शीला कौल और उनके बहुत से साथियों को जेल भेजने की घोषणा में ''कानून को समझने के लिए समय के बहाने जो परिवर्तन दिखायी पड़ रहा है वही उसका कारण हो सकता है। क्योंकि राजनीतिक आंकलन कर्ताओं के साथ-साथ अब कांग्रेस को भी यह आभास हो रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को निर्णायक बढ़त प्राप्त करने में आम आदमी पार्टी बाधक नहीं बन सकती। आंकलनकर्ता यह भी कह रहे हैं कि कांग्रेस को अगले निर्वाचन में सौ सीटें भी नहीं प्राप्त होंगी। दिल्ली में आम आदमी पार्टी पर आरोपों की झड़ी लगाते रहने और निरंतर अपमान सहने की क्षमता उस पार्टी में कैसे आ गई है जिसने दो सिपाहियों को कारण बनाकर चंद्रशेखर की सरकार को गिरा दिया था। संभवत: उस समय का आंकलन था, राजीव गांधी के नेतृत्व में पुन: सत्ता में वापसी। यदि चुनाव के मध्य में राजीव गांधी की हत्या न हो गई होती और चुनाव प्रक्रिया एक महीने के लिए स्थगित न होती तो नरसिंह राव के नेतृत्व में उसे सत्ता संभालने का अवसर न मिलता। लेकिन जिस प्रकार राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेसी उम्मीदवार घोषित करने से कांग्रेस कतरा रही है उससे जहां यह स्पष्ट होता है कि विगत वर्षों में कई विधानसभा और वर्तमान में पांच विधान सभा निर्वाचन के परिणाम से वह अपने 'नेता' का भविष्य खराब होने के प्रति सजग है वहीं दिल्ली में विधानसभा के मध्यावधि निर्वाचन से भाजपा के सत्तासीन न होने की संभावना से भयभीत है। इस तथ्य से इंकार करना बेमानी होगी कि कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को भाजपा का रास्ता रोकने की नीयत से ही सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया है। पिछले दिनों आप पार्टी के अभियान से ऐसा लग रहा था कि वादों के निर्वाहन में दुरूहता का आभास कर वह सत्ता से निकलकर जनाकर्षण का केंद्र बने रहने के लिए व्याकुल है-कुछ लोगों का अभी यह अनुमान है कि वह इसी दिशा में आगे प्रयास जारी रखेगी क्योंकि पानी, बिजली, शिक्षा, आवास आदि के लिए उसने जो वायदे किए या भ्रष्टाचारियों को दंडित करने का जो दावा किया था, उसे पूरा करना संभव नहीं है। कांग्रेस उसे उसी के जाल में फंसे रहने देने के लिए समर्थन दे रही है लेकिन आम आदमी पार्टी जिस तरह से भाजपा विरोधी रणनीति पर चल रही है तथा कांग्रेस के ''काले कारनामों के प्रति मौन है उससे, भले ही नितिन गडकरी के इस आरोप को आधारहीन मान लिया जाय कि एक बड़े उद्योगपति घराने ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच सामंजस्य स्थापित किया है, यह बात बहुत स्पष्ट है कि सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे के खिलाफ अभिव्यक्ति के बावजूद दोनों मिलकर दिल्ली की सरकार चलाते रहेंगे यदि ऐसा न होता तो कांग्रेस उप राज्यपाल को केवल सोमनाथ भारती को हराने के लिए ज्ञापन न देती। भारती का आचरण यदि पद पर बने रहने का औचित्य खो चुका है तो अरविंद केजरीवाल का आचरण तो बर्खास्तगी के औचित्य को प्रतिपादित करता है।
कांग्रेस प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की चुनाव सम्पन्न होने से पूर्व की घोषणा को संविधान विरोधी और चुने हुए प्रतिनिधियों को उनके हक से वंचित किए जाने के रूप में आजकल प्रस्तुत कर रही है। संविधान की मर्यादा और संसद की गरिमा के प्रति कितनी संवेदनशील है कांग्रेस यह उसके अतीत से स्पष्ट है। चुने हुए प्रतिनिधियों के हक के दावे के साथ उसकी कितनी 'प्रतिबद्धता है उसके लिए राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की प्रक्रिया से स्पष्ट हो जाती है। इंदिरा गांधी की हत्या के समय राजीव गांधी कोलकाता में थे। अरूण नेहरू उनको वहां से साथ लेकर दिल्ली आये और सीधे राष्ट्रपति भवन गए जहां राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी। कांग्रेस संसदीय दल ने इंदिरा गांधी के दाह संस्कार के बाद उनकी नियुक्ति की पुष्टि उन्हें संसदीय दल का नेता चुनकर कर दी। कांग्रेस की संविधान में आस्था लोकतांत्रिक आचरण में ''विश्वास के तमाम उदाहरण दिए जा सकते हैं। उनके ब्यौरे में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह अपनी सत्ता और सत्ता में न रहने के बाद ''समर्थन के अनेक उदाहरण प्रस्तुत कर चुकी है। जनमानस को उसकी स्मृति भले ही न हो लेकिन कांग्रेस के निरंतर उसी आचरण पर बने रहने का जो अजूबा स्वरूप दिल्ली में दिखाई पड़ रहा है, उससे कोई भ्रमित नहीं है।
राजनाथ सिंह 'सूर्यÓ