अति महत्वाकांक्षा से घिरी आप
- संजीव पांडेय
जोकुछ जयप्रकाश नारायण और विश्वनाथ प्रताप सिंह के शिष्यों ने सत्ता में बैठने के सालों बाद किया था, वो आम आदमी पार्टी में अभी से ही दिख रहा है। सत्ता, टिकट नेतागिरी को लेकर संघर्ष शुरू हो गया है। बड़ा नेता कौन है, किसका क्या चरित्र है, आरोप प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं। कोई लोकसभा टिकट नहीं मिलने से नाराज हो गया है, तो कोई मुसलिम विरोधी सोच के कारण आरोपों के घेरे में है। मल्लिका साराभाई ने कुमार विश्वास पर सवाल उठाया तो विश्वास ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया। दिल्ली से पार्टी विधायक विनोद बिन्नी विद्रोह कर गए। सरकार बने 20 दिन नहीं हुए लेकिन विनोद बिन्नी ने कई गंभीर आरोप अरविंद केजरीवाल पर जड़ दिए। कई जगहों पर आप में अधिकारियों और अपराधियों के शामिल होने की सूचना है। इसमें कुछ अधिकारी अपने कार्यकाल में खासे बदनाम रहे हैं। अधिकारियों और अपराधियों को टिकट का लोभ आप की तरफ खींच ले आया है। वैसे तो आप का दावा है कि वे जातिविहीन, क्षेत्रमुक्त, भ्रष्टाचार विरोधी राजनीति कर रहे हैं। लेकिन अभी तक कार्यकलाप दावों को गलत बता रहे हैं। जाति और क्षेत्र का जहां छुपा इस्तेमाल इन्होंने किया वहीं भ्रष्टाचार का जिन पर ये आरोप लगाते थे उनसे समर्थन दिल्ली में लिया।
जेपी आंदोलन को याद करें। जेपी के पास न तो इंटरनेट था, न फेसबुक था न टीवी चैनलों का कवरेज। लेकिन आंदोलन की पहुंच देश के सुदूर गांवों में हो गई थी। अरविंद केजरीवाल के पास सारा का सारा कुछ है, लेकिन शहरों से बाहर इनके पास कोई कैडर और आधार नहीं है। बेरोजगारी से त्रस्त शहरी पढ़ा लिखा युवा, महंगाई से त्रस्त निम्न मध्य वर्ग, गरीब तबका, मध्य वर्ग, क्षेत्रवादी सोच से परेशान बिहार और यूपी की आबादी ने उन्हें दिल्ली में वोट किया। इसी योजना में थोड़ा फेरबदल कर केजरीवाल की टीम अब हरियाणा फतह करने जा रही है। लेकिन हालात जेपी के शिष्यों और वीपी सिंह के शिष्यों से भी बदतर हैं। अभी सफलता मिले चार दिन नहीं हुए लेकिन लड़ वैसे रहे हैं जैसे मौर्य साम्राज्य से भी बड़ा इलाका इनके कब्जे में आने वाला है।
जेपी की टीम के सदस्य जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद लड़ गए थे। राजनारायण, चरण सिंह, चंद्रशेखर जेपी टीम के सदस्य थे। इन नेताओं के अहंकार ने जनता पार्टी का बंटाधार कर दिया था। उस समय लालू, नीतीश और रामविलास राजनीति में आ गए थे। लेकिन कद काफी छोटा था। जनता पार्टी की सरकार गिर गई। जेपी के संपूर्ण क्रांति का नारा चकनाचूर हो गया। राजनारायण हाशिए पर चले गए। सिर्फ चरण सिंह के खिलाफ ताल ठोकते रहे। चरण सिंह किसान नेता से जाट नेता बन गए। हेमवती नंदन बहुगुणा को उनके शिष्यों ने हाशिए पर डाल दिया। कर्पूरी ठाकुर बिहार में दबंग पिछड़ों की राजनीति के शिकार हो गए। यह उस जेपी आंदोलन का हश्र था, जो वंशवाद और भ्रष्टाचार मिटाने, लोकतंत्र की बहाली के लिए और ग्राम स्वराज्य स्थापित करने के लिए शुरू हुआ था।
जेपी आंदोलन का बुरा हश्र होने के 9 साल बाद वीपी सिंह भ्रष्टाचार और वंशवाद मिटाने को निकले। जेपी की तरह ही वीपी भी कांग्रेसी रहे थे। जेपी आंदोलन के कई नेता वीपी सिंह के सहयोगी बने। नीतीश कुमार, लालू यादव, रामविलास पासवान, अजीत सिंह वीपी सिंह के साथ थे। लेकिन वीपी सिंह के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की हवा कुछ समय में ही निकल गई। वीपी सिंह बोफोर्स घोटाले में कुछ नहीं निकाल सके। देवीलाल और चंद्रशेखर से परेशान वीपी सिंह ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का त्याग कर दिया। मंडल आंदोलन का सहारा लिया, लेकिन कुर्सी फिर भी नहीं बची। भ्रष्टाचार हाशिए पर चला गया, जेपी और वीपी के एक खास सिपाही लालू यादव चारा घोटाले में जेल चले गए। भ्रष्टाचार और वंशवाद के खिलाफ यह दूसरा आंदोलन भ्रष्टाचार और वंशवाद का खुद प्रतीक बन गया।
अब आजाद भारत का तीसरा भ्रष्टाचार और वंशवाद विरोधी आंदोलन हो रहा है। राजनारायण, चरण सिंह, चंद्रशेखर, लालू यादव, नीतीश कुमार की जगह योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, अरविंद केजरीवाल, गोपाल राय, प्रशांत भूषण, शाजिया इल्मी, आशुतोष ने ले ली है। हालांकि यह सच्चाई है कि तीसरे आंदोलन के नेता न तो आंदोलन में कभी जेल गए न ही सड़कों पर तरीके से पुलिस की लाठियां खायी। नेहरू टोपी को डाल ये देश बदलने निकले हैं। लेकिन अभी तक इनकी विचारधारा स्पष्ट नहीं है। तमाम विचारों की खिचड़ी बनायी गई है। विदेश नीति, आर्थिक नीति, आंतरिक सुरक्षा नीति, कृषि नीति, रोजगार नीति को लेकर ज्ञान काफी कमजोर है। पुरानी सब्सिडी की राजनीति औऱ पुराने नारों को लिए ये नए आंदोलनकारी हैं। भ्रष्टाचार को लेकर जिन्हें गाली दे रहे थे उनके समर्थन से दिल्ली में सरकार बना ली। अब उसी कांग्रेस को हरियाणा में ये भ्रष्ट बताने में लगे हैं। दिल्ली में कांग्रेस का समर्थन लेते हंै और कांग्रेस को बड़ी बुराई और भाजपा को छोटी बुराई बताते हैं। लेकिन वो दिन दूर नहीं कि हरियाणा की राजनीति में भी दिल्ली दुहराया जाएगा। अगर योगेंद्र यादव को कुछ विधायकों की जरूरत मुख्यमंत्री बनने के लिए पड़ेगी तो इसी कांग्रेस से समर्थन लेंगे।
आम आदमी पार्टी के नेताओं में वैचारिक शून्यता है। कारपोरेट घरानों में सिर्फ अंबानी घराने पर इनका हमला हो रहा है। आंतरिक सुरक्षा पर इनके बयान विरोधाभाषी हैं। अरविंद केजरीवाल भारत माता की जय और वंदे मातरम का नारा लगाकर संघ परिवार के मतदाताओं को लुभाते हैं। वहीं प्रशांत भूषण नक्सल प्रभावित इलाके और जम्मू कश्मीर से सुरक्षा बल और सेना हटाने की मांग कर रहे हैं। प्रशांत भूषण के बयान राजनीतिक तौर पर नरेंद्र मोदी की मदद कर रहे हैं। इससे शहरी मध्य वर्ग आप से कटकर वापस भाजपा की तरफ जाएगा। इसे भूषण और मोदी के सांठगांठ के तौर पर भी देखा जा रहा है।
आप के पास देश के गांव देहात में जाने के लिए कर्मठ लोग नहीं हैं। सुविधाभोगी बेरोजगार, मध्यवर्ग, शहरी आबादी इनके लोकलुभावन नारों से प्रभावित है। बेरोजगारों को लगता है कि उन्हें नौकरी मिलेगी। गरीबों को लग रहा है कि बिजली पानी मुफ्त मिलेगा। यही अभी तक आम आदमी पार्टी मूलमंत्र है। लोकलुभावन योजना वामपक्ष और कांग्रेस की और नारा भाजपा का। लेकिन बेरोजगारी खत्म नहीं हो पायी तो यही युवा इन्हें कुछ महीने बाद गाली देंगे। महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त सुविधा भोगी मध्य वर्ग को अगर कुछ महीने में राहत नहीं मिली तो गाली देगा। वहीं गांव देहात में ये जहां इंटरनेट, बिजली, टीवी नहीं है वहां जाकर इनके ये सुविधाभोगी इंटरनेटी कारपोरेटी कार्यकर्ता कितना प्रचार कर पाएगा यह समय बताएगा।