जनमानस

Update: 2013-06-22 00:00 GMT

दलों के दलदल में...

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र में अपनी बात रखने और विरोध करने की, आंदोलन करने की स्वतंत्रता है। हमारे देश में बहुदलीय व्यवस्था है, जहां पर अनेक छोटे-छोटे दल भी अपनी बातें मनवाने के लिए आगे रहते हैं। कांग्रेस और भाजपा ही राष्ट्रीय दल हैं, जिन्हें अखिल भारतीय स्तर पर मान्यता है। यह देश का दुर्भाग्य है कि राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय दलों के बिना चल नहीं सकते। जनता स्थानीय हितों को ध्यान में रखकर करोड़पति, अरबपति नेताओं को चुनती है और यही लोग फिर ब्लेकमेल करते हैं। तोड़ताड़ करके बड़ी पार्टियां को मजबूर कर देते हैं कि हमारी बात मानों नहीं तो हम उधर जा रहे हैं। राष्ट्रीय हित गौण हो रहे हैं तथा स्थानीय मुद्दे ब्लेकमेल का कारण बनते जा रहे हैं। सत्ता सुंदरी को पाना है तो स्वार्थी ब्लेकमेलरों की बात मानना पड़ती है, जिसके पास चार पांच सदस्य हैं वे भी सीना तानकर पच्चीस-पचास करोड़ का मालिक बन ही जाता है। अपाहिज जनता मजबूर है, चुनने के लिए और पूंजीपति या उच्च वर्ग के लोग मजबूर हैं चक्रव्यूह बुनने के लिए। सभी गंगा जी में नहाकर पुण्य कमाना चाहते हैं, ताकि आने वाली सात पीढ़ी मुक्त हो जाए, वही जानता जो छोटे दलों के नेताओं को सिर आँखों पर बैठाकर रखती है। अंत में वे आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाते हैं और दोराहे पर खड़े रहकर देश की अस्मिता को भी दांव पर लगा देते हैं। सारा देश इस राजनीतिक फिल्म को देखकर चुप हो जाता है, इसके पास बचता ही क्या है? क्या हमारा देश छोटे राजनीतिक दलों की गाजर घास को साफ कर पाएगा या उनकी गोद में बैठकर बांसुरी बजाते रहेंगे? क्या हमारे देश की सामान्य व मध्यमवर्गीय जनता छोटे-छोटे दलों के दलदल को सुखा पाएगी या ब्लेकमेलर तैयार करती रहेगी? राष्ट्रहित बड़ा है या क्षेत्र हित? जरा सोचो तो सही। 
                                                                   राजेन्द्र कोचला, इन्दौर

Similar News