ज्योतिर्गमय

Update: 2013-05-08 00:00 GMT

आत्म परीक्षण

आत्म परीक्षण होता है अपने विचारों को तटस्थ देखना अपने कृत्यों की तटस्थता से जांच करना, विश्लेषण करना फिर आप यदि संतुष्ट हैं तो विचार कृत्य सही थे, परंतु यदि आपको ग्लानि हो रही है, पश्चाताप हो रहा है तो समझो कि सब कुछ गड़बड़ था। पर अब क्या हो सकता है विचार कर लेना, कृत्य कर लेना, बाण से निकले तीर के समान है जिसे वापस बुलाया नहीं जा सकता। इसलिए हमें हमेशा सजग रहना चाहिए एक प्रहरी की तरह जांचें, तौलें फिर बोलें या समीक्षा करके कृत्य हो। असल में अपने आप में इतना धैर्य नहीं होता कि यह सब हम देख कर करें। विचार मंथन, कार्य सब एक-दूसरे से जुड़े हैं। द्रौपदी के कुछ कड़वे शब्दों ने महाभारत कर दिया। ऐसे हजारों उदाहरण होंगे जहां कुविचार और शब्दों ने लड़ाई-झगड़े करा दिए। बाद में लोग पछताते हैं पर बाद में पछताने से क्या होता है जब चिडिय़ा चुग गई खेत। आदमी अपनी भावनाओं के प्रवाह में बह जाता है। इन्सान स्वयं ही अपना मित्र है स्वयं ही अपना सबसे बड़ा शत्रु। बाद में सोचने, पछताने से अच्छा है पहले ही सोच लिया जाए। सब कुछ अपने पर ही निर्भर है अपने से ही शुरू होता है अपने पर ही खतम। कहा है, जैसा हम सोचते हैं वैसे हम बन जाते हैं। यदि हम अपने बारे में नकारात्मक, निषेधात्मक विचार रखेंगे तो उसका असर हमारे स्वास्थ्य, स्थिति सब पर पड़ेगा तो फिर सकारात्मक क्यों न सोचें, शुभ क्यों न सोचें। किसी ने कहा कि गांधीजी के तीन बन्दर की जगह चार बंदर होने चाहिए थे। बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो और बुरा मत सोचो। यदि हम बुरा नहीं सोचेंगे तो बाकी सब अपने आप ठीक हो जाएगा। हर रोज हमें आत्म परीक्षण करना चाहिए तो बहुत से कष्टों से बच जाएंगे। यह एक ऐसा सत्य है जिसे हर एक इंसान को अपनाना चाहिए। एक साधारण आदमी से लेकर बड़े नेता को, ऑफिसर को कर्मचारी को जो भी जहां है, जिस काम को अंजाम दे रहा है उसमें यदि आत्म परीक्षण करें तो सब काम सही होंगे। मनुष्य कुछ नहीं विचारों का समूह है। जैसे विचार वैसा मनुष्य वैसे कृत्य, वैसे परिणाम फिर खुशी या गम, पश्चाताप, आदि-आदि। हमेशा ऊंचा सोचिए ऊंचाई पर पहुंचिए। कहा है मन एक कल्प वृक्ष है जो आप सोचते हैं वही आप पाते हैं। मन पारस पत्थर है विचार धातु जो एक-दूसरे के घर्षण से आएंगे तो स्वर्ण में परिवर्तन हो जाएगा। हम सभी स्वर्ण चाहते हैं पर पारस पत्थर से धातु के घर्षण के बिना यह कैसे संभव है। असल में तो हम इस बात से भी अनभिज्ञ रहते हैं कि हमारे पास पारस पत्थर है, कल्प वृक्ष हैं इसलिए हम यहां-वहां भटकते रहते हैं। कहीं नहीं पहुंच पाते तो हम आत्मपरीक्षण करते रहें और प्राप्त करें जो हम चाहते हैं। बस यही मेरा संदेश है।

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