जंगल में सजा माँ रतनगढ़ का दरबार

Update: 2013-04-15 00:00 GMT

दतिया | ग्वालियर चम्बल संभाग के   प्रसिद्व धार्मिक तीर्थस्थलों में शुमार जंगल में विराजी माँ रतनगढ़ वाली माता का दरबार नवदुर्गा उत्सव में धूमधम से सजा हुआ है। माँ रतनगढ़ के मंदिर पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं पूजा अर्चना कर मनोकामना पूर्ण होने की कामना लेकर पहुचते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पर आकर मनोकामना मांगने वाला कभी खाली हाथ नहीं जाता।
माता मण्डला देवी के नाम से प्रसिद्ध माँ रतनगढ़ वाली का मंदिर म.प्र. के साथ उत्तर प्रदेश के कई जिलों में भी प्रसिद्व है। जहंा हजारों की संख्या में भक्त आते हैं। दतिया जिला मुख्यालय से तकरीबन 70 किलो मीटर दूर स्थित तहसील सेंवढ़ा के अंतर्गत घने जंगल एवं पर्वतों की ऊॅची चोटी पर स्थित मॉ रतनगढ़ के दरबार में नवरात्र प्रारंभ होते ही हवन भजन, एवं देवी के नौ दिन चलने वाले अनुष्ठान पूरी आस्था के साथ शुरू हो गए है। देवी रतनगढ़ माता का मंदिर एेतिहासिक है। मान्यता के अनुसार 17 वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी के गुरू समर्थ रामदास ने यहां देवी की मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई थी। देवी मंदिर के ठीक पीछे कुॅवर बाबा का सिद्घ स्थान है। श्रृद्घालु देवी  के दर्शन के बाद कुॅअर बाबा के चबूतरे पर मत्था टेकने जरूर जाते है। बताया जाता है कि यहां पर लोग अपने दुख लेकर आते हैं लेकिन वह यहां से हमेशा चेहरे पर मुस्कुराहट लेकर ही वापिस जाते हैं।
ऐसे हुई माँ की स्थापना
इतिहास में उल्लेखित प्रमाणों की माने तो मुगल शासक औरंगजेब की कैद में शिवाजी आगरा में थे। तब सबसे पहले गुरू समर्थ रामदास रतनगढ़ आए थे। उन्होंने यहां पर माँ की आराधना की और इसके बाद शिवाजी कैद से भाग निकले।
एक प्राचीन कथा यह भी
बुन्देलखण्ड की उत्तरीवृत्त में विन्ध्य पर्वतमाला के छोर पर स्थित रतनगढ़ पहले परमार राजवंश की राजधानी हुआ करती थी। 13वी शताब्दी के प्रारम्भ में अलाउद्दीन खिलजी ने इटावा के रास्ते जब बुन्देलखण्ड पर आक्रमण किया उस समय रतनगढ़ के राजा रतनसेन परमार थे। राजा रतनसेन के एक अवयस्क राजकुमार और एक राजकुमारी थी। राजकुमारी का नाम ''माण्डूला था। खिलजी से युद्घ के दौरान राजकुल के लोग जब मारे गए । बस केवल राजकुमार एवं राजकुमारी ही जीवित रह गए थे। दुश्मनो के हाथ न लग पाए इसलिए दोनों ने घास-फूस एकत्रित कर आग लगाकर अपने प्राण त्याग दिए। जहां राजकुमारी ने प्राण त्यागे उसी जगह छोटी सी मढिय़ा बना दी गई थी और राजकुमार के प्राण त्यागने के स्थान पर एक चबूतरा। यही वह दो प्राचीन स्थान है जिन्हं देवी रतनगढ़ एवं कुॅवर बाबा के नाम से जाना जाता है। 

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