ज्योतिर्गमय

Update: 2013-03-25 00:00 GMT

मंत्रों का आधार

मंत्र की एक परिभाषा यह है कि जिसके उच्चारण से या बोलने से हमारे समस्त कार्य पूरे हो जाएं, वही मंत्र है। मंत्र की दूसरी परिभाषा है कि जिसके मनन से जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुटकारा मिल जाए, वही मंत्र है। वस्तुत: मंत्र शब्दों का एक सुंदर स्वरूप है। शब्दों के इस स्वरूप के रूप में ऋषियों ने एक ऐसा विज्ञान दिया है, जिसने हमें बहुत कुछ करने में समर्थ कर दिया है। मंत्र ध्वनि विज्ञान का एक परम शक्तिशाली आविष्कार है, ठीक वैसे ही जैसे आधुनिक मेडिकल साइंस में अल्ट्रासाउंड ध्वनि विज्ञान पर आधारित है। ऋषियों ने विभिन्न कार्य को सिद्ध करने के लिए विभिन्न सुंदर शब्द समूहों के रूप में भिन्न-भिन्न मंत्रों का निर्माण किया। ध्वनि विज्ञान को समझने के लिए एक व्यावहारिक उदाहरण यह है कि एक अभ्यासी गायक कोई गीत गाते हैं तो सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। इसके विपरीत वही गीत जब कोई नौसिखिया गाता है, तो लोग ऊबकर उठकर चले जाते हैं। संगीत हमें एक अलग प्रकार की प्रसन्नता देता है। मीठे बोल बोलने पर दूसरे व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। गाली देने पर हमें बुरा लगता है। गर्जना से डर लगता है और रोने पर दूसरे प्रकार का अनुभव होता है। इन सब बातों के मूल में ध्वनि का चमत्कार है।
अब आधुनिक वैज्ञानिक यह बात स्वीकार चुके हैं कि स्थूल की तुलना में सूक्ष्म अधिक शक्तिशाली है। किसी पदार्थ के सूक्ष्मतम कण को हम परमाणु कहते हैं। परमाणु में कितनी शक्ति निहित है, यह बताने की जरूरत नहीं है। ठीक इसी तरह मंत्रों की शक्ति भी सूक्ष्म होती है। सूक्ष्म शक्ति ही मंत्रों के विकास का वैज्ञानिक आधार रहा है। मंत्र एक ऐसी ईश्वरीय शक्ति है जो शब्द से प्रकट होती है और जो हमारे मन, परिवेश और वातावरण में सकारात्मक तरंगें छोड़ती है। मंत्रों में जो शब्द होते हैं उनकी एक पृथक ध्वनि होती है। मंत्र उच्चारण के लिए चित्त का साफ-स्वच्छ और स्वस्थ होना आवश्यक है। 

Similar News