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हो रहा है राजनीति के साथ वैचारिक बदलाव

हो रहा है राजनीति के साथ वैचारिक बदलाव
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जब प. बंगाल कम्युनिस्टों का मजबूत गढ़ बना हुआ था, तब भाजपा के नेता भी यह चर्चा करते थे कि कम्युनिस्ट किस प्रकार की रणनीति और संगठन का उपयोग करते हैं। आज कम्युनिस्ट नेता भाजपा की चुनावी रणनीति और संगठन को जानना चाहते हैं। 25 वर्ष पूर्व भाजपा का नारा था आज प्रदेश कल सारा देश। आज भाजपा का विजयी परचम पूरे देश में फहरा रहा है। पूर्वोत्तर में त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में चुनाव हुए, छोटा राज्य त्रिपुरा का राष्ट्रीय राजनीति में महत्व कम था, 25 वर्ष से यह कम्युनिस्ट सरकार का महत्वपूर्ण गढ़ माना जाता था, इसलिए राजनीतिक पंडित मानते थे कि चाहे प. बंगाल का कम्युनिस्ट गढ़ ध्वस्त हो गया है, लेकिन त्रिपुरा में माणिक सरकार बनी रहेगी। जब राष्ट्रीय विचारों से प्रेरित किशोर नेतृत्व ने मार्क्सवादियों के गढ़ को इतनी बुरी तरह ध्वस्त किया कि भारत के राजनीतिक इतिहास में दर्ज हो गया, इस संदर्भ में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने त्रिपुरा के चुनाव में टिकिट देते समय जन्मतिथि के लिए उनके सर्टिफिकेट देखते थे, क्योंकि वे बालक दिखाई देते थे, इसलिए संदेह होता था कि निर्धारित आयु सीमा से उनकी आयु कम न हो।
इसी तरह की बाल किशोर सेना ने त्रिपुरा के लालगढ़ को ध्वस्त कर दिया। राजनीति के जानकारों के लिए जिज्ञासा का सवाल यह है कि जिस त्रिपुरा में भाजपा का ठोस संगठन नहीं था, चार वर्ष पहले तक कोई प्रभावी नेतृत्व नहीं था, जो कम्युनिस्टों के संगठन और नेतृत्व के सामने टिक सके। ऐसा तीन-चार वर्षों में क्या हुआ, जब भाजपा के कार्यकर्ताओं ने जमी हुई कम्युनिस्ट सरकार को उखाड़ फेंका। यह राजनीतिक छात्रों के लिए शोध का विषय हो सकता है। इस जिज्ञासा का उत्तर देने की कोशिश की। भाजपा के समर्थित कार्यकर्ता और वहां के किशोरों की सेना तैयार कर विजय के लिए रणनीति तैयार करने वाले सुनील देवधर महाराष्ट्र के रहने वाले है। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक होने से संगठन के कार्य के लिए उन्हें उत्तरप्रदेश भेजा गया, उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा को शानदार जीत दर्ज कराने में देवधर का योगदान रहा। इसके बाद उन्हें त्रिपुरा का संगठन प्रभारी बनाकर भेजा गया। उन्होंने युवकों की टीम तैयार की, पन्ना (बूथ) प्रमुख नियुक्त किए गए। पचास मतदाताओं से सम्पर्क के लिए एक पन्ना प्रमुख नियुक्त किया।

इस प्रकार करीब चार वर्ष में संगठन का फैलाव त्रिपुरा में किया और माणिक सरकार के मुकाबले के लिए संगठन शक्ति तैयार की गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विशाल रैलियों और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के कुशल नेतृत्व ने त्रिपुरा से कम्युनिस्ट शासन को उखाड़ फेंका। इन चुनावों में इस फार्मूले को भी नकार दिया कि ईसाई आदिवासी भाजपा के विरोध में रहते हैं। राष्ट्रीय विचारों के साथ विकास के सपने ने सभी जाति वर्ग को एक कर दिया। अब जातिवाद, वंशवाद गई गुजरी बात हो गई है। नई युवा पीढ़ी भेड़-बकरी की तरह वोट नहीं देती। उसकी समझ और सपने हैं वह नेतृत्व को परखना जानती है। जो राजनीतिज्ञ इतने पाटीदार, इतने ब्राह्मण, इतने दलित इस तरह जातिवादी आधार पर समीक्षा या आंकलन करते हैं, उनको नई पीढ़ी ने नकारा है, भविष्य की राजनीति वर्गवादी, जातिवादी आधार पर नहीं चलेगी। जो इस आधार पर भविष्य का आंकलन करेंगे, वे गलत होंगे। जो राजनीतिक हाथ की जातिवादी या परिवार रेखा देखकर भविष्य बताते हैं, ऐसे पंडितों को भी लोग नकारने लगे हैं। सोशल मीडिया को भी जनता की नब्ज जातिवादी आधार पर परखना छोड़ना होगा। राष्ट्रीय सोच अर्थात राष्ट्रवादी विचार राष्ट्रीय सरोकारों से प्रेरित है। विकास का सपना राष्ट्रवादी विचार का सपना है, देश को महानता के शिखर पर ले जाने की संकल्प शक्ति देश के लिए जीने वाले नेतृत्व में आज भारत माता के दर्शन केशरिया साड़ी में हो रहे हैं। सूर्योदय की केशरिया किरणों का आलोक चारों ओर फैल रहा है। इतिहास में कई क्रांतियों का उल्लेख है, लेकिन लोकतंत्र में बदलाव के साथ वैचारिक बदलाव की शुरूआत हुई। कम्युनिस्ट अपने प्रभाव के लिए कैडर तैयार करते हैं।

जहां कम्युनिस्ट सरकार होती है, वहां शासन-प्रशासन में भी कम्युनिस्ट कैडर प्रभावी हो जाता है। कांग्रेस के साथ रहकर कम्युनिस्टों ने सुनियोजित तरीके से साहित्य और मीडिया में भी अपने विचार के लोगों को स्थापित कर महिमा मंडित कराया। वामपंथी विचार के लोगों ने इतिहास को तोड़ मरोड़कर भारत के इतिहास को गुलामी का इतिहास बना दिया। अतीत के गौरव को नष्ट-भ्रष्ट करने का पाप इन साम्यवादी विचारकों ने किया है। सहिष्णुता के नाम पर मेडल लौटाने वाले भी वामपंथी प्रजाति के बुद्धिजीवी है। ये जेएनयू में देश विरोधी नारा लगाने वालों के समर्थन में खड़े हो जाते हैं। सीमा क्षेत्र पूर्वांचल में ऐसे कम्युनिस्टों का शासन में रहना देश की अखंडता के हित में नहीं था। राष्ट्रीय विचारों से प्रेरित विकासवादी सरकार पूर्वांचल में होना राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी आवश्यक है। ताजी स्थिति यह है कि त्रिपुरा, नागालैंड के साथ मेघालय में भी भाजपा समर्थित एनडीए सरकार बन रही है। मिजोरम के अलावा पूर्वांचल के सभी राज्यों में भाजपा की सरकारें हो गई है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि केरल, प.बंगाल, कर्नाटक और उड़ीसा में जब तक भाजपा सरकार नहीं होगी, तब तक भाजपा का गोल्डन समय नहीं होगा। मई में कर्नाटक के चुनाव हैं, वहां यदि भाजपा ने कांग्रेस को पराजित कर दिया तो फिर कांग्रेस मुक्त भारत की स्थिति हो जाएगी। केरल में भाजपा का विजयी परचम फहराने के बाद कम्युनिस्टों के साथ देश विरोधी विचारों से भी मुक्ति मिलेगी। चाहे विचार कितने ही आकर्षक हों, लेकिन व्यवहार में जब वह अमानवीय और अत्याचारी हो जाते हैं तो उसके खिलाफ विद्रोह की स्थिति पैदा हो जाती है। भारतीय चरित्र में सहिष्णुता, उदारता के गुण है, यही कारण है कि भारत की जनता ने अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के बाद कथित सेकुलर विचारों को परखने के साथ उसकी पीड़ा को भी बर्दाश्त किया। जब उसे लगा कि सेकुलर राजनीति तुष्टीकरण का पर्याय हो गई है, यह भारत की संस्कृति, परम्परा यहां तक की जो लोग अपनी परम्परा और सनातन आदर्शों के अनुरूप जीवन जीते हैं, उनके लिए भी घातक होती जा रही है, हिन्दू विरोधी सेकुलर नीति के खिलाफ भी 2014 से लेकर उत्तर पूर्व के ये परिणाम क्रांतिकारी वैचारिक बदलाव को व्यक्त करते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्य में पूर्वजों के जीन के संस्कार रहते हैं, भारतीय जन जीवन में जब इन संस्कारों को प्रेरित करने वाले विचार मिलते हैं तो फिर सांस्कृतिक अवधारणा के अनुरूप उसके विचार व्यवहार में दिखाई देते हैं।

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद भारत के जनमन में है, लेकिन अब उसके अनुरूप राजनीतिक दिशा-दशा बदलने की इच्छा शक्ति का प्रकटीकरण हो रहा है, जिस राष्ट्रवादी दल को साम्प्रदायिक कहकर अछूत माना जाता था, जो बदलाव हुआ है, उसके कारण संस्कृति आधारित राष्ट्रवादी विचार राजनीति के केन्द्र में है, भारतीय जनता पार्टी के परचम के नीचे सभी अपने भविष्य की तलाश करने लगे हैं। यही कारण है कि मेघालय में भाजपा के केवल दो सदस्य जीते, लेकिन सभी छोटे दल भाजपा के साथ खड़े हो गए। इस कारण बहुमत का आंकड़ा पूरा कर वहां भी भाजपा की सरकार बन रही है। मेघालय में कांग्रेस ने चाहे 21 सीटों पर अपनी जीत दर्ज की हो, लेकिन बहुमत के लिए उसके साथ आने को कोई दल तैयार नहीं है। कांग्रेस अब अछूत होकर विधवा विलाप कर रही है। कांग्रेस, कम्युनिस्ट भारतीय राजनीति में ऐसे अछूत माने जाने लगे हैं, जिन्हें चिमटे से भी कोई छूना नहीं चाहते। लोकतंत्र में जन-बल ही नेतृत्व एवं दल के भविष्य की इबारत लिखते हैं। अब मेघालय सहित भारत के इक्कीस राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। कांग्रेस केवल तीन राज्यों में सिमट गई है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक)

Updated : 6 March 2018 12:00 AM GMT
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