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जेएनयू में उपस्थिति से नाराजगी क्यों?

जेएनयू में उपस्थिति से नाराजगी क्यों?
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डॉ. निवेदिता शर्मा

क्या यह माना जाए कि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय देश के अन्य विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के लिए तय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यूजीसी एवं अन्य नियमों के अलावा किसी अतिरिक्त विशेष नियम से चलता है? जब देश के प्राय: सभी उच्च शिक्षा केंद्रों विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में उपस्थिति की अनिवार्यता है तो जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्र इसमें क्यों छूट चाहते हैं? प्रश्न यह भी है कि जब यह विरोध कर रहे छात्र एवं छात्राएं कक्षा में उपस्थित होना ही नहीं चाहते हैं तो क्यों नियमित स्वाध्यायी विद्यार्थी के नाते अपनी डिग्री लेना चाहते हैं? क्यों न ऐसे छात्र जो किसी वजह से नियमित कक्षाओं का हिस्सा नहीं बन सकते और उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, वे यहां क्यों नहीं प्रवेश ले लेते हैं? न्यायालय के आदेश के मुताबिक प्रशासनिक भवन के सौ मीटर के दायरे में छात्र प्रदर्शन नहीं कर सकते, किंतु प्रदर्शनकारियों पर इसका कोई असर नहीं होता है। बेशर्मी तो यह है कि आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन के नेता कहते हैं कि अनिवार्य उपस्थिति का सर्कुलर वापस लिया जाए।

विद्या के मंदिर का किस तरह मखौल उड़ाया जा सकता है, यह यदि किसी को देखना है तो एक बार वह देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के नाम से बने केंद्रीय विश्वविद्यालय जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय अवश्य हो आएं। एक के बाद एक ऐसे कारनामें यहां से उजागर हो रहे हैं, जिन्हें टेलीविजन स्क्रीन पर देखकर और सुनकर आज यही लगता है कि क्या हम किसी विश्वविद्यालय के बारे में जान रहे हैं या उस स्थान का परिचय पा रहे हैं जोकि शिक्षा का मंदिर न होकर राजनीति का अड्डा है? देशद्रोह के नारे लगने तथा इसी प्रकार की गतिविधियों में कई बार नाम आने के बाद अब यहां का नया विषय यह है कि इस विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले कई छात्र-छात्राओं को कक्षा में 75 प्रतिशत उपस्थिति से नाराजगी है।

इन विद्यार्थियों की नाराजगी प्रशासन से इस हद तक बढ़ जाती है कि वह प्रशासनिक भवन का घेराव करते हुए स्टाफ तक को एक तरह से कैद कर लेते हैं। इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन एक पत्र जारी करता है और कहता है कि न्यायालय के आदेश के मुताबिक प्रशासनिक भवन के सौ मीटर के दायरे में छात्र प्रदर्शन नहीं कर सकते, किंतु प्रदर्शनकारियों पर इसका कोई असर नहीं होता है। बेशर्मी तो यह है कि आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन नेता कहते हैं कि अनिवार्य उपस्थिति का सर्कुलर वापस लिया जाए।

पहले तो यह समझ लेना होगा कि आखिर वर्ष भर में उच्च शिक्षा कैलेण्डर के अनुसार विद्यार्थी कितने दिन कक्षा में उपस्थित रहते हैं। वर्ष 2017-18 देखें या वर्ष 2018-19 का कैलेण्डर हो, समूचे वर्ष भर में कुल 52 सप्ताह में 52 रविवार के अवकाश हर किसी विद्यार्थी को मिलते हैं। इसके अलावा जो जयंतियां एवं त्यौहार हैं उनकी कुल संख्या 100 से अधिक है, इसमें भी बड़े उत्सव 25 के करीब है। इसके बाद परीक्षाओं की छुट्टियां भी होती है, यह संख्या भी हर विश्वविद्यालय में कम-ज्यादा 20 से 25 दिन की रहती हैं। महीने भर परीक्षाएं चलती हैं। इस प्रकार कुल 365 दिन में से कक्षाएं सिर्फ 220 दिन ही अधिकतम लगती हैं । उसमें भी उपस्थित होने की अनिवार्यता 75 प्रतिशत अर्थात सीधे-सीधे 12 माह में से अधिकतम 165 दिन की कुल उपस्थिति यहां के छात्रों से विश्वविद्यालय प्रशासन चाहता है। अब, बताओ भला, इसमें वह क्या गलत मांग कर रहा है?

क्या यह माना जाए कि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय देश के अन्य विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के लिए तय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यूजीसी एवं अन्य नियमों के अलावा किसी अतिरिक्त विशेष नियम से चलता है? जब देश के प्राय: सभी उच्च शिक्षा केंद्रों विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में उपस्थिति की अनिवार्यता है तो जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्र इसमें क्यों छूट चाहते हैं? प्रश्न यह भी है कि जब यह विरोध कर रहे छात्र एवं छात्राएं कक्षा में उपस्थित होना ही नहीं चाहते हैं तो क्यों नियमित स्वाध्यायी विद्यार्थी के नाते अपनी डिग्री लेना चाहते हैं? यूजीसी ने ऐसे सभी विद्यार्थियों के लिए डिस्टेंस एजुकेशन का विकल्प दिया हुआ है।

वास्तव में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में बेकार में आन्दोलन कर रहे इस छात्रों को पता होना चाहिए कि भारत में मुख्य क्लास रूम लर्निंग जिसमें छात्र को महाविद्यालय या विश्वविद्यालय जाकर कक्षा में नियमित उपस्थिति करनी होती है के अलावा डिस्टेंस लर्निंग भी है, जिसके अंदर छात्र पत्राचार से पढ़ाई करता है। आज भारत में कई डिस्टेंस यूनिवर्सिटीज हैं जो कि पत्राचार पाठ्यक्रम करवाते हैं तो दूसरी ओर कई रेगुलर विश्वविद्यालय भी कई तरह के कोर्स डिस्टेंस मोड से करती हैं। इन सब की यूजीसी से मान्यता प्राप्त संख्या 111 है। क्यों न ऐसे छात्र जो किसी वजह से नियमित कक्षाओं का हिस्सा नहीं बन सकते और उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, वे यहां क्यों नहीं प्रवेश ले लेते हैं?

इसी के साथ जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में जो लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि वर्तमान कुलपति विश्वविद्यालय के 'ओपन नॉलेज फ्लो' की संस्कृति को नष्ट करना चाहते हैं और छात्रों को कक्षा की दीवारों के भीतर सीमित रखने की साजिश कर रहे हैं। विश्वविद्यालय रैंक के मामले में अव्वल रहा है और देशभर के शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता तय करने वाली सरकारी संस्थान खुद इसे बेहतर मानती है। जेएनयू को अ++ ग्रेड दिया गया है तो उन्हें यह समझना होगा कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के भी अपने नियम कायदे हैं, ऐसे तो सभी विश्वविद्यालयों में 75 प्रतिशत उपस्थिति पर आन्दोलन होने लगेगा, तब हो गई पढ़ाई? देश के कई अन्य विश्वविद्यालयों को अ++ ग्रेड दी है तो क्या वहां भी अब जेएनयू की तरह छात्रों को अपनी उपस्थिति के विषय में विरोध करना चाहिए? जब बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया जैसे सभी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य है जोकि वहां के सभी छात्रों को सहज स्वीकार्य भी है तो यह जेएनयू में आज क्यों हंगामा हो रहा है?
समझने की बात यह है कि ये वेतन शिक्षकों को अद्यापन कार्य के लिए दिया जा रहा है। जब जेएनयू में बच्चों को नियमित कक्षा में पढ़ना ही नहीं है तो क्यों फिर उनके लिए इतनी फैकल्टी की सुविधा हो और क्यों बेकार में सरकार उन पर इतना खर्च करे, यह भी विचारणीय है। जेएनयू में हर छात्र पर सलाना सरकारी खर्च तीन लाख आता है और हर साल जेएनयू को लगभग 300 करोड़ रुपए सरकारी मदद के तौर पर दिए जाते हैं। क्यों न यह माना जाए कि आज यहां आन्दोलित छात्र इस तरह के व्यर्थ आन्दोलन कर देश की आम जनता का टैक्स से प्राप्त सरकारी अनुदान का पैसा बर्बाद कर रहे हैं? क्या ऐसे क्लास में नहीं जाकर देश में शिक्षा के गिरते स्तर में गुणवत्ता का सुधार होगा?
लेखिका पत्रकारिता के साथ अध्यापन कार्य से जुड़ी हैं।

Updated : 21 Feb 2018 12:00 AM GMT
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