पश्‍चिम बंगाल में दरकता ममता राज

पश्‍चिम बंगाल में दरकता ममता राज
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पश्‍चिम बंगाल में वर्षों कम्‍युनिष्‍ट पार्टी का राज रहने के बाद वहां की जनता का जिस तरह से वामपंथ से मोह भंग हुआ और मां, माटी, मानुष का ममता बनर्जी का नारा जिस तरह से उनपर भारी पड़ा था, वैसी ही स्‍थ‍ितियां इस राज्‍य में एक बार फिर बनने लगी हैं। उस समय जनता ने वामपंथियों का सही विकल्‍प ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को माना और उसे अपने विकास के लिए चुना था। कहना होगा कि अब वहां जनता के विश्‍वास में दरार आने लगी है और वह ममता की पार्टी का भी विकल्‍प इन दिनों भाजपा में खोज रही है। पश्‍चिम बंगाल में पहली बार यह देखा जा रहा है कि एक बहुत बड़ी आबादी जो कल तक भाजपा को साम्‍प्रदायिक मानकर उससे दूरी बनाए हुए थी, वह तेजी के साथ भाजपा से जुड़ रही है। दूसरी ओर केंद्र में मोदी सरकार होने से प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बने इस दिशा में भी इस समय पश्चि‍म बंगाल में विचार विनमय चल पड़ा है। इन सब परिस्‍थितियों के बीच ममता भी समझ चुकी हैं कि कैसे भी करके भाजपा को आगे बढ़ने से रोका जाए। शायद, यह ममता के लिए सत्‍ता जाने का डर ही है, जिसके कारण से वह भाजपा की केंद्र सरकार से इतनी भयभीत दिखाई दे रही है कि उसने केंद्र की योजनाओं तक के नाम बदल डाले हैं।

देखा जाए तो ममता ने थोक वोटबैंक के रूप में अपनी पहचान बना चुके अल्‍पसंख्‍यकों खासकर मुस्‍लिमों के वोट पाने के लिए अब तक राज्‍य में जो प्रयास किए, वे भी उसे पुन: सत्‍ता पर काबिज होने के लिए आज कम नजर आ रहे हैं। वस्‍तुत: इस संबंध में तथ्‍य यही हैं कि ममता ने राज्‍य में मुख्‍यमंत्री की कुर्सी सम्‍हालते ही मुसलमानों के प्रति विशेष उदारता दिखाना शुरू कर दिया। प्रदेश के सभी 2 हजार 480 पुस्तकालयों में नबी दिवस और ईद मनाना अनिवार्य कर दिया गया। सरकार ने हिन्‍दुओं को सरस्वती पूजा और दशहरा मनाने की अनुमति नहीं दी, जिसके बाद हिन्‍दूवादी संगठनों को न्‍यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा। हाईकोर्ट के आदेश के बाद ही राज्य के लोग दशहरा मना पाये।

इसी तरह से मुहर्रम की आड़ में नवरात्रि समाप्‍ति ‍के बाद मूर्ति विसर्जन पर ममता ने रोक लगाने का आदेश दिया। बंगाल के धूलागढ़ में जब समुदाय विशेष के लोगों ने हिन्दू परिवारों के घर में घुसकर मारपीट की, तब भी वहां की ममता सरकार तमाशबीन बनी रही । ऐसे ही हिंदुओं को लेकटाउन में रामनवमी उत्‍सव मनाने की अनुमति नहीं दी गई। मालदा के गुनहगारों को भी बचाने में ममता सरकार की भूमिका अहम मानी जाती है।

इस प्रकार अनेक अवसरों पर ममता सरकार यह साबित कर चुकी है कि वह पूरी तरह प्रदेश के अल्‍पसंख्‍यकों के हित में खड़ी है। पश्चिम बंगाल के 28 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता किसी प्रत्‍याशी के समर्थन में थोक वोट डालकर हार को जीत में बदल देने का माद्दा रखते हैं। इसी कारण ममता और उनकी पार्टी उन्हें खुश रखने की कोशिश करती हैं। पिछले अपने कार्यकाल को लेकर यह बात स्‍वयं ममता एवं उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने अंदर तक महसूस की थी। कई बार सार्वजनिक रूप से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं कहा भी कि चुनाव में मुसलमानों के समर्थन ने हमारी जीत में अहम भूमिका निभाई और इसकी बदौलत ही हमने 33 साल बाद वामपंथियों को सत्ता से बेदखल किया।
इतना करने के बाद भी अब ममता को लगने लगा है कि बंगाल की जनता के बीच उसकी हालत कमजोर है। अकेले मुस्‍लिमों के पक्ष में काम करने से बात नहीं बनने वाली है। किसी भी वजह से अल्‍पसंख्‍यकों के 28 फीसदी वोट बैंक की तुलना में अन्‍य 72 फीसदी में से यदि 55 फीसदी भी एक तरफ चले गए तो तृणमूल कांग्रेस की हार पक्‍की हो जायेगी। इसलिए अब उन्हें मुस्लिम वोट बैंक के अलावा उन वोटों पर भी ध्‍यान देना होगा जो कि बिखरा हुआ है। राज्‍य में वामपंथी भी दोबारा सत्‍ता में आने के लिए जहां अपनी ताकत जुटा रहे हैं, तो वहीं ममता को साफ दिख रहा है कि इस वक्‍त राज्‍य में वामपंथियों से अधिक सक्रिय भाजपा है। ऐसे में वह भाजपा के लिए कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ना चाहती, जिससे कि राज्‍य में उसकी पकड़ केंद्र की सत्‍ता के सहारे मजबूत हो सके। वह केंद्र की हर योजना और हर उस निर्णय का आज विरोध कर रही हैं, जिससे कि तृणमूल कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लग सके। यही वजह है कि उन्‍होंने केंद्र की योजनाओं का बंगालीकरण, स्‍थानीयकरण करना आरंभ कर दिया है, ताकि केंद्र की उन योजनाओं का लाभ भाजपा की बजाए तृणमूल कांग्रेस को मिल सके।

केंद्र की दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना का नाम बदलकर आनंदाधारा कर दिया। स्वच्छ भारत अभियान का नाम बदलकर निर्मल बांग्ला, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन को राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन एवं दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना का नाम बदलकर सबर घरे आलो कर दिया है। ममता यहीं नहीं रुकीं, उन्‍होंने प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का नाम भी बदलकर बांग्लार गृह प्रकल्प कर दिया है। इसके जरिए वह संदेश देना चाहती हैं कि उन्‍हें सबसे ज्‍यादा अपने प्रदेश के लोगों की चिंता है और केंद्र की भाजपानीत मोदी सरकार पश्चिम बंगाल के लिए कुछ नहीं कर रही है।
ममता भाजपा सरकार से किस तरह से डरी हुई हैं, इसका अनुमान केंद्र के हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम को लेकर उनके विरोध से भी लगाया जा सकता है। इस योजना में 10 करोड़ गरीब परिवारों को सालाना पांच लाख रुपये का कैशलेस हेल्थ इंश्योरेंस दिया जाना है। लेकिन ममता ने इसे बंगाल में लागू करने से इनकार कर दिया है। इस सर्वजन हिताय एवं सर्वजन सुखाय योजना को बंगाल में नहीं शुरू करके वे अपने वोट बैंक में किसी भी सूरत में भाजपा को सेंध लगाने से रोकना चाहती हैं। किंतु इसी के साथ उन्‍हें यह भी समझ लेना चाहिए कि जनता सब जानती है, बहुसंख्‍यक हिन्‍दू समाज की अवहेलना करके वह लम्‍बे समय तक सत्‍ता में नहीं बनी रह सकती। सरकार का उद्देश्‍य सबका साथ सबका विकास हो, तभी अच्‍छा है।

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