Home > Archived > बांग्लादेशी घुसपैठियों पर निर्णायक मूड में नमो सरकार

बांग्लादेशी घुसपैठियों पर निर्णायक मूड में नमो सरकार



अंतत: बांग्लादेशी घुसपैठियों के संदर्भ में असम की सर्वानंद सरकार ने व केंद्र की नमो सरकार ने अपना राष्ट्रवादी मास्टर प्लान लागू कर दिया है। 22 फरवरी 2014 को लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उस समय भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने असम के सिलचर में कहा था। बांग्लादेश से दो तरह के लोग भारत में आए हैं। एक शरणार्थी हैं जबकि दूसरे घुसपैठिये। अगर हमारी सरकार बनती है तो हम बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने के साथ ही घुसपैठियों को यहां से बाहर खदेड़ने का भी वादा करते हैं। भाजपा ने असम में लोकसभा व विधानसभा दोनों चुनावों में जाति, माटी, भेटी यानि जाति, जमीन और अस्तित्व की रक्षा करने के नाम पर वोट मांगे थे।

सत्ता में आने के बाद 19 जुलाई 2016 को नरेन्द्र मोदी सरकार के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 पेश किया। यह विधेयक 1955 के उस नागरिकता अधिनियम में बदलाव के लिए था, जिसके जरिए किसी भी व्यक्ति की भारतीय नागरिकता तय होती है। इस विधेयक में प्रावधान था कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोगों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा। इसका सीधा सा अर्थ यह था कि इसके जरिए बांग्लादेशी हिंदुओं को भारत की नागरिकता दी जानी थी। अब इस दिशा में ठोस कदम के रूप में एनआरसी यानि नैशनल रजिस्ट्रेशन आॅफ सिटिजन का पहला ड्राफ्ट 31 दिसंबर की रात सामने आया है। इस ड्राफ्ट में असम के कुल 3.29 करोड़ लोगों में से 1.9 करोड़ लोगों को जगह दी गई और उन्हें कानूनी तौर पर भारत का नागरिक मान लिया गया है। वहीं बचे हुए लोगों का प्रमाणीकरण हो रहा है जिसके बाद उनका नाम इस सूची में शामिल किया जाएगा। जो व्यक्ति इस सूची में अपना नाम दर्ज नहीं करवा पाएंगे या उनके पास इसके लिए जरूरी कागजात नहीं होंगे उन्हें असम का नागरिक नहीं माना जाएगा और उन्हें देश के बाहर जाना पड़ेगा। 1971 में जब पाकिस्तान विभाजन के पश्चात बांग्लादेश अस्तित्व में आया, उसके बाद से ही असम घुसपैठियों का विषय चर्चित रहने लगा था। असम के रास्ते घुसपैठिये देश में घुसकर देश के प्रत्येक हिस्से में जाकर बसने लगे थे। बांग्लादेश के निर्माण के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई व वहां की एक बड़ी आबादी भारत आकर बस गई थी, इसमें हिंदुओं के अलावा मुस्लिमों की भी बड़ी आबादी थी। 1971 के इस दौर में लगभग 10 लाख बांग्लादेशी असम में ही बस गए। 1971 के बाद भी बड़े पैमाने पर बांग्लादेशियों का असम में आना जारी रहा। बांग्लादेश के लोगों की बढ़ती जनसंख्या ने असम के स्थानीय लोगों में भाषायी, सांस्कृतिक व सामाजिक असुरक्षा की स्थितियां उत्पन्न कर दी। घुसपैठिये असम में नाना प्रकार से अशांति, अव्यवस्था, अपराध व उत्पात मचाने लगे। 1978 में असम के मांगलोडी लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव के दौरान चुनाव आयोग के ध्यान में आया कि इस चुनाव में मतदाताओं की संख्या में कई गुना वृद्धि हो गई है। चुनावी गणित व तुष्टिकरण की नीति के चलते सरकार ने 1979 में बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिक बना लिया।

असम में आॅल असम स्टूडेंट्स यूनियन आसू और असम गण संग्राम परिषद के नेतृत्व में बांग्लादेशी घुसपैठियों पर सरकारी नीति के विरोध में आन्दोलन हुआ और असम भड़क गया। आसू व अगप को असम की स्थानीय जनता ने बहुत प्यार व समर्थन दिया। छात्र संगठन आसू ने असम आंदोलन के दौरान ही 18 जनवरी 1980 को केंद्र सरकार को एक एनआरसी अपडेट करने हेतु ज्ञापन दिया। इस बड़े व हिंसक आन्दोलन की परिणति 1985 में असम में राजीव गांधी के साथ असम समझौते के रूप में हुई। 1999 में वाजपेयी सरकार ने इस समझौते की समीक्षा की और 17 नवंबर 1999 को तय किया गया कि असम समझौते के तहत एनआरसी को अपडेट किया जाना चाहिए। अटल जी की सरकार जाने के बाद 2005 में मनमोहन सरकार भी इस निर्णय पर कायम रही व समीक्षा हेतु बारपेटा और चायगांव में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया। असम के कुछ संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया और वहां हिंसा हो गई और असम की गोगोई सरकार इसमें विफल रही। इसके बाद सर्वानंद सोनोवाल ने 2013 में बांग्लादेश के घुसपैठ के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में उठाया और न्यायालय ने एनआरसी 1951 को अपडेट करने का आदेश दिया जिसमें 25 मार्च, 1971 से पहले बांग्लादेश से भारत में आने वाले लोगों को स्थानीय नागरिक माने जाने की बात कही गई थी और उसके बाद के असम में पहुंचने वालों को बांग्लादेश वापस भेजने के आदेश दे दिए गए थे।

सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद ही एनआरसी की समीक्षा व अपडेशन का कार्य प्रारम्भ हुआ और 1951 की जनगणना में शामिल अल्पसंख्यकों को राज्य का नागरिक मान लिया गया। 1951 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में आने वाले बांग्लादेशी शरणार्थियों के पास वैध कागजात नहीं थे। एनआरसी को अपडेट करने के दौरान पंचायतों की ओर से जारी नागरिकता प्रमाणपत्र को मान्यता नहीं दी जा रही थी। इसके बाद मामला असम हाईकोर्ट में पहुंच गया। हाई कोर्ट ने लगभग 26 लाख लोगों के पहचान के दस्तावेज अवैध करार दे दिए। इसके बाद मामला एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। असम की सर्वानंद सरकार ने न्यायालय के आदेशानुसार 31 दिसंबर 2017 को नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटिजंस एनआरसी का पहला ड्राफ्ट जारी कर दिया, जिसमें असम के कुल 3.29 करोड़ लोगों में से 1.9 करोड़ लोगों को कानूनी तौर पर भारत का नागरिक माना गया। यद्यपि रजिस्ट्रार जनरल आॅफ इंडिया शैलेष ने ड्राफ्ट को जारी करते हुए कहा है कि लोगों को घबराना नहीं चाहिए व इसके बाद और सत्यापन होगा व और ड्राफ्ट भी जारी होगा। सूची जारी होने के बाद असम सरकार के वित्त मंत्री और नागरिकता रजिस्टर के इंचार्ज हेमंत विश्व शर्मा ने कहा कि जिन लोगों का नाम एनआरसी रजिस्टर में नहीं है उन्हें हर हाल में देश छोड़ना होगा। अब देखना यह है कि हमारा देश एक दीर्घ प्रतीक्षा के बाद किस प्रकार और कब बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या से मुक्ति पायेगा।

Updated : 6 Jan 2018 12:00 AM GMT
Next Story
Top