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फेरबदल: राजनीति का नया फॉर्मूला

फेरबदल: राजनीति का नया फॉर्मूला
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंत्रिमण्डल के ताजा फेरबदल में अपनी चिर-परिचित शैली के अनुरूप भारतीय जन मानस ही नहीं अपितु अच्छे-अच्छे राजनैतिक पण्डितों को एक बार फिर चौंका दिया है। देश भर की मीडिया और कलमकारों ने न जाने कितने परिचित-अपरिचित नाम मंत्रिमण्डल में शामिल होने के लिए हवा में चलाए। लेकिन फेरबदल में जो नाम सामने आए उसे देख मीडिया, राजनैतिक विश्लेषक और मंत्रिमण्डल के सदस्य भी भौंचक्के रह गए हैं।

फेरबदल को देख लगता है कि पूर्व नौकरशाह, जो दक्षता का प्रतिमान हैं, कठोर प्रशासक हैं और काम को अंजाम तक पहुंचाने का हुनर जानते हैं, उन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ज्यादा भरोसा किया है।

इस फेरबदल से लगता है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी सरकार के काम को तेज गति से चलाने को आतुर हैं। वे नया इंडिया ही नहीं बल्कि फास्ट इंडिया के पक्षधर हैं। केरल के सेवानिवृत्त आयएएस कनाकन्नम को लेकर उन्होंने पूर्व नौकरशाह और अटलजी की सरकार में मंत्री रहे जगमोहन की याद ताजा कर दी। पूर्व केन्द्रीय गृह सचिव आरके सिंह सेवानिवृत्ति के बाद भाजपा में शामिल हुए और पहिली बार आरा से सांसद बने। उन्हें भी मंत्रिमण्डल में स्थान दिया गया है। वे सख्त प्रशासक के रूप में जाने जाते हैं। साफ कहना और मुंह पर कहना उनकी शैली है। काम को अंजाम तक पहुंचाने का साहस भी उनमें भरपूर है। जाट नेता और पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह भी अपनी कार्यशैली से देश की आर्थिक राजधानी में वाहवाही बटोर चुके हैं। सेवा निवृत्ति के बाद वे भाजपा में आए और जाट नेता अजीत सिंह को उनके घर में ही मात दी। वे काबिल अफसर रहे हैं। इसी तरह विदेश सेवा के अफसर हरदीप पुरी जो किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। उन्हें मंत्री बना कर सबको चौंकाया है। उनकी काबिलियत ही उन्हें इस मुकाम तक ले आई।

अब बात रही राजनेताओं और नए पुराने सांसदों की। उन्हें यह बात जरूर साल रही होगी कि नौकरशाहों को अभी तक उप राज्यपाल और राज्यपाल बनाया जाता रहा है किन्तु इस सरकार में पहिली बार सीधे सरकार में इतनी बड़ी संख्या में नौकरशाहों को शामिल किया गया है। यद्यपि कांग्रेस सरकार में मनमोहन सिंह भी प्रधानमंत्री बने और लगातार दस वर्षों तक रहे हैं।

हटाए गए मंत्रियों की कार्यशैली कैसी रही क्या रही और वे अपने मंत्रालय में क्या नया नहीं कर सके। यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री तक पहुंची और उन्होंने उनकी छुट्टी भी कर दी। रही बात ग्वालियर के नरेन्द्र सिंह तोमर की। तो उन पर मोदी और शाह की जोड़ी ने पूर्ण भरोसा किया है और विभागों के वितरण में उनको पूर्व के विभाग के साथ ही खनन मंत्रालय भी दे दिया है। जाहिर है कि उन्होंने अपने काम से प्रधानमंत्री को पूरी तरह से संतुष्ट किया है। गंगा की सफाई सिर्फ कागजों तक सीमित रही। इसलिए सुश्री उमा भारती से मंत्रालय लेकर तेजतर्रार मंत्री नितिन गड़करी को सौंपा गया है।

इस फेरबदल से मोदी और शाह का संदेश साफ है कि पढ़ो तो पढ़ो नहीं तो पिंजरा खाली करो। श्री मोदी जी काम करते हैं और अपने मंत्रियों से भी काम चाहते हैं। उन्हें जो नतीजे चाहिए वे सामने नहीं आ पा रहे हैं। अत: अब राजनेताओं को छोड़ पूर्व नौकरशाहों को जिम्मेदारी दी जा रही है।

विधायिका से ऊपर कार्यपालिका का वर्चस्व क्या मोदी जी के सपने को साकार कर सकेगा? वरिष्ठ सांसदों को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि क्या नौकरशाह उनसे श्रेष्ठ हैं। यद्यपि सरकार नौकरशाहों के भरोसे चलती है किन्तु अब नौकरशाह ही राजनेता बनकर सरकार चलाने में सफल हुए तो लोकतंत्र में यह एक नया प्रयोग होगा। ये नया रसायन विज्ञान मोदी-शाह ने तैयार किया है। इसके फार्मूले से लोकतंत्र कितना मजबूत होगा यह तो समय बताएगा लेकिन सरकार तेजी से काम करती नजर आएगी। ऐसी अपेक्षा है।

Updated : 4 Sep 2017 12:00 AM GMT
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