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जब हैरी मेट सेजल का पढ़िए फिल्म रिव्यु

जब हैरी मेट सेजल का पढ़िए फिल्म रिव्यु
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मुंबई। इम्तियाज अली के निर्देशन में बनी शाहरुख खान और अनुष्का शर्मा की फिल्म जब हैरी मीट्स सेजल अपने टाइटल से लेकर पूरे समय ये एहसास कराती रही कि इम्तियाज अली वो निर्देशक हैं, जो सालों पहले जब वी मीट बना चुके हैं। एक प्रतिभाशाली निर्देशक दोहराव का शिकार होकर कैसे बचकानी फिल्म बनाता है, ये फिल्म इसका जीता जागता उदाहरण है।

आम तौर पर बात कहानी की होती है। यहां कहानी के नाम पर जो कुछ है, वो इतना छोटा है कि एक लाइन में खत्म हो जाता है। कहानी के नाम पर दो किरदार हैरी (शाहरुख खान) और सेजल (अनुष्का शर्मा हैं) हैरी और सेजल की मुलाकात यूरोप में होती है, जहां हैरी एक टूरिस्ट गाइड है और सेजल अपनी मंगनी करने आई है।

भारत लौटने से पहले सेजल को एहसास होता है कि उसकी मंगनी की रिंग कहीं खो गई है। सेजल बिना रिंग लिए भारत लौटना नहीं चाहती। सेजल की रिंग ढूंढने में सेजल को हैरी की मदद की जरुरत होती है और इस रिंग की तलाश के दौरान दोनों में एक रिश्ता कायम हो जाता है, जो आगे जाकर एक लव स्टोरी में बदल जाता है।

इम्तियाज अली ने इस फिल्म का लेखन किया है, तो इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी वहीं हैं। उनसे इतने कमजोर लेखन की उम्मीद नहीं थी। शुरू के दस मिनट में ही कहानी का खाका तो समझ में आ जाता है, लेकिन उसके बाद फिल्म जलेबी की तरह गोल गोल घूमने लगती है और दूसरे हाफ में घनचक्कर बन जाती है।

इम्तियाज ने जब वी मेट को याद किया और उसी के हिसाब से छोटे छोटे सीन बनाकर आगे बढ़ते चले गए, लेकिन इस बार वे मार और मात दोनों खा जाते हैं, क्योंकि किरदार बेहद कमजोर हैं और इन किरदारों को शाहरुख खान और अनुष्का शर्मा ने और ज्यादा कमजोर बना दिया। दोनों को खुद भी पता नहीं चलता कि परदे पर वे क्या कर रहे हैं। शाहरुख खान परदे पर ये एहसास कराना नहीं छोड़ते कि वे रोमांटिक स्टार रहे हैं, लेकिन वे भूल जाते हैं कि रोमांटिक स्टार को भी कहानी की जरुरत होती है, जो इस फिल्म से नदारद है।

अनुष्का शर्मा ने वही किया, जो उनसे करने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने किरदार को समझने की जरुरत ही नहीं समझी। वे भी निराश करती हैं। ये तय करना मुश्किल हो जाता है कि शाहरुख ज्यादा निराश करते हैं या अनुष्का।

अब तक इम्तियाज की फिल्मों का संगीत अच्छा होता था। इस बार प्रीतम ने उनको भी चलताऊ धुनों से काम चलाऊ बना दिया। एक भी गाना न सुनने में अच्छा है, न परदे पर अच्छा लगता है। सारे ही गाने जबरदस्ती के ठूंसे हुए लगते हैं। शाहरुख खान ने इस बार एक और नेक काम कर लिया। उनको भी अब इमरान हाशमी बनने का शौक चर्राया है। तकनीकी रूप से भी फिल्म अच्छी नहीं। एडीटिंग बुरी और कमजोर है। ये लोकेशन पहले कई फिल्मों में दिखाई जा चुकी हैं।

बिना कहानी वाली इस फिल्म को शाहरुख खान अच्छी ओपनिंग दिला दें, लेकिन आगे जाकर बाक्स आफिस पर ये फिल्म निराश ही करेगी। शाहरुख के फैंस भी ऐसी फिल्म से शायद ही खुश हों। ये शाहरुख और अनुष्का के लिए झटका है और इम्तियाज अली के लिए सबसे बड़ा सदमा।

Updated : 4 Aug 2017 12:00 AM GMT
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