Home > Archived > फिर देर किस बात की?

फिर देर किस बात की?

फिर देर किस बात की?
X


प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कूल-कूल रहने वाले प्रदेश के सहृदय, संवेदनशील एवं विनम्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुंह से ‘उल्टा टांग दूंगा’ वाला वाक्य अचानक नहीं निकला। निश्चित तौर पर कहीं न कहीं प्रशासनिक मशीनरी ने ऐसा कुछ जरूर किया है कि मुख्यमंत्री के मुंह से इतनी कठोर बात निकली। शिवराज सिंह चौहान भाषण जरूर लंबा-चौड़ा देते हैं किन्तु अपने स्वभाव के अनुरूप विवादों से और अनावश्यक कुछ भी बोलने से बचते हैं। लेकिन अचानक उनके मुंह से ये बात अनायास तो नहीं निकली। किसानों के भूमि संबंधी राजस्व मामले, बंटवारा, सीमांकन और नामांतरण के लंबित पड़े मामलों से आहत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का गुस्सा भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में फूट पड़ा और उनके मुंह से निकल गया कि ‘उल्टा टांग दंूगा’। ये सुभाषित वाक्य मुख्यमंत्री जी के मुखारबिन्द से प्रस्फुटित होते ही विपक्ष ने इसे लपक लिया और बयानों का दौर प्रारंभ हो गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुंह से निकला यह कठोर वाक्य इस बात का संकेत दे रहा है कि कहीं न कहीं नौकरशाही बेलगाम हो चुकी है। कई बार के निर्देशों का भी उस पर कोई असर नहीं हो रहा है। शायद इसीलिए मुख्यमंत्री ने सख्त लहजे में कड़क भाषा का प्रयोग किया हो। लेकिन शिवराज सिंह चौहान विगत 12-13 वर्षों से प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। अब उन्हें अच्छा प्रशासनिक अनुभव भी हो चुका है।

कई मुख्य सचिव उनके साथ काम भी कर चुके हैं। मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने तेज-तर्रार मुख्य सचिव विजय सिंह को एक झटके में ही वल्लभ भवन से हटा कर ग्वालियर के मोतीमहल स्थित राजस्व मण्डल का रास्ता दिखा दिया था। फिर अब ऐसी क्या मजबूरी है। उनके हाथ में तो सबकुछ है। बे-लगाम नौकरशाही पर लगाम लगाने के कई हथकण्डे उन्हें पता हैं। दो-चार पर सख्त कार्रवाई कर प्रदेश भर में सख्ती का संदेश जा सकता है। फिर ऐसा करने में सोच-विचार क्यों? उन्हें आदेश ही तो देना है। दो-चार पर हुई सख्ती पूरे प्रदेश का वातावरण ठीक कर देगी। फिर देर किस बात की। यदि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान या उनके सलाहकार इतना कहने मात्र से सबकुछ ठीक होने का मन बनाकर बैठे हों तो यह उनका भ्रम है। क्योंकि प्रदेश की आय ए एस लॉबी इस तरह की पुलिसिया भभकी को समझ चुकी है और उसे डर व भय कहीं दिखाई नहीं देता। इसके पीछे जो कारण समझ में आते हैं उनमें एक तो यह कि मुख्यमंत्री जी के जो खास सिपहसालार हैं और जिनके माध्यम से जो आयएएस जिलों की कमान संभाले हैं वे मुख्यमंत्री के प्रति अपनी निष्ठा न दिखाते हुए उसके प्रति निष्ठावान रहते हैं जिसने उसे कलेक्टरी दिलवाई है। इसीलिए कई जिलों में पदस्थ कलेक्टर जनहितकारी एवं कल्याणकारी योजनाओं से विमुख होकर उन्हें धरातल पर मूर्तरूप देने में आना-कानी कर रहे हैं और तो और श्योपुर से हटाए गए पन्नालाल सोलंकी फिर से श्योपुर पहुंच गए। हरदा से हटाए गए कलेक्टर को दो-चार दिन बाद फिर हरदा का कलेक्टर बनाया गया। दतिया से हटे कलेक्टर प्रकाश जांगड़े कुछ माह बाद फिर कलेक्टरी पा गए। आखिर ये सब क्या है। अत: मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को चाहिए कि वह अब सख्त कार्रवाई की बात मंचों से कहने के वजाय मैदान में करके दिखाएं अन्यथा ऐसे बयान न केवल उनकी प्रशासनिक विफलता की ओर इंगित करेंगे बल्कि प्रशासनिक अमला और बेलगाम होगा।

Updated : 26 July 2017 12:00 AM GMT
Next Story
Top