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परिवहन विभाग का उपकार रजिस्टर गायब, कृतार्थी परेशान

परिवहन विभाग का उपकार रजिस्टर गायब, कृतार्थी परेशान
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ग्वालियर। परिवहन विभाग में कटर प्रथा समाप्त होने एवं एंट्री बंद हो जाने के बाद कई तरह के नजारे देखने को मिल रहे हैं। परिवहन मुख्यालय के अतिरिक्त सभी आरटीओ कार्यालयों एवं सूर्यवंश के अतिरिक्त आयुक्त के यहां से संचालित तीन उपकार रजिस्टर अचानक गायब हो गए हैं। इन रजिस्टरों में इन्द्राज कृतार्थी अब बुरी तरह परेशान हैं। उपकार रजिस्टर में दर्ज जो महानुभाव मंथली लिफाफे तो पाते ही थे साथ ही होली-दिवाली एवं तीज त्यौहारों पर भी इनकी अच्छी सेवा हो जाती थी, वे अब परिवहन मंत्री को कोस रहे हैं। इस कारोबार के बंद हो जाने के बाद उपकार रजिस्टर से संरक्षित एवं संधारित करने वाले एक बाबूजी भी परेशान हैं। इस काम के चलते बाबूजी की भी पौ-बारह थी। यजमान को हजार दिए और दो हजार की एंट्री कर ली। बीच में ही माल हजम। कभी-कभी तो यह भी कह देते थे कि इस माह नोटबंदी की वजह से कहीं से पैसे आए ही नहीं और बीच में ही बाबूजी गड़प कर जाते थे। अब उनका भी बैण्ड बज गया। लेनदार व देनदार दोनों ही परिवहन मंत्री की सख्ती से नाखुश हैं। मंत्री को बद्दुआएं भी दे रहे हैं। कृतार्थी कह रहे हैं कि रजिस्टर को संभाल कर रखो। आगे-पीछे व्यवस्था फिर से चालू होगी। तब यही रजिस्टर काम आएगा। क्योंकि रजिस्टर में एंट्री कराने में भी एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है।

उपकार रजिस्टर में जिन लोगों के नाम दर्ज थे उनके जलवे देखते ही बनते थे। महंगी कार में घूमना, महंगे शौक पालना, काला चश्मा, कीमती मोबाइल के साथ-साथ उनके बच्चे भी पब्लिक स्कूलों में पढ़ रहे हैं। हराम में मिलने वाले पैसे को भी अपना व्यवसाय बताने वाले ऐसे लोग इसी उपकार रजिस्टर की बदौलत अपने बच्चों को आईआईटी व संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी करा रहे थे। भ्रष्ट संपदा के बंद हो जाने से इन कृतार्थियों के सपने चकनाचूर हो गए हैं। इन्हीं में से कुछ ऐसे भी थे जो ट्रेक सूट पहनकर पत्नी के साथ जीवाजी विश्व विद्यालय की सैरगाह कर जॉगिंग भी करते थे। अधिकारियों के साथ घूमना भी इनकी दिनचर्या में शामिल था। लेकिन अब मुंह छिपाकर बैठ गए हैं।

उपकृत होने वाले कुछ लोग इस प्रथा के समाप्त होने और उपकार रजिस्टर के गायब होने के बाद विभागाध्यक्ष को दोषी मान रहे हैं। कहते हैं कि इतनी अति कर दी कि सब कारोबार ही चौपट करके माने। चौथे स्तंभ के तथाकथित कतिपय लोगों का यही एक व्यवसाय बन गया था। न अखबार न समाचार और बन गए पत्रकार। अकेले हिन्दी ही नहीं बल्कि अंग्रेजी, उर्दू भाषा के पत्रकार भी उपकार रजिस्टर की शोभा बढ़ाने वालों में थे।


Updated : 4 Jun 2017 12:00 AM GMT
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