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रेलवे के अधिकांश वॉकी-टॉकी खराब, दो हादसों के बाद आए नए वॉकी टॉकी

रेलवे के अधिकांश वॉकी-टॉकी खराब, दो हादसों के बाद आए नए वॉकी टॉकी
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सिग्नल नहीं मिलने पर दौड़कर भेजते थे सूचनाएं

पहली खेप में आए 80 वॉकी टॉकी, मिलने लगे चालकों को


ग्वालियर। वॉकी-टॉकी सेट के फेर में रेलवे का संचार सिस्टम उलझ गया है। कुछ साल पहले ही लाए गए वॉकी-टॉकी में अधिकांश खराब हो चुके हैं। कभी बैटरी डिस्चार्ज, तो कभी तकनीकी गड़बड़ी। नतीजा, चालकों की आॅपरेटर व अन्य संबंधित कर्मियों से ठीक से बात नहीं हो पाती। यही नहीं चालक या कोई कर्मी मोबाइल का प्रयोग नहीं कर सकता है। इसके बावजूद रोज हजारों किलोमीटर का सफर तय करती हैं ट्रेनें। यह हाल है ग्वालियर रेलवे स्टेशन का। चलती ट्रेन में गार्ड व ड्राइवर के बीच बातचीत का एकमात्र जरिया होता है वॉकी-टॉकी। वॉकी-टॉकी की खराबी किसी दिन बड़े हादसे की वजह बन सकती है। लेकिन सूत्रों की माने तो रेलवे ने पहली खेप में 80 वॉकी टॉकी ग्वालियर रेलवे को उपलब्ध कराएं है। ज्ञात हो कि कुछ माह पहले रेलवे स्टेशन पर शंटिंग कराते समय शंट बुरी तरह घायल हो गया था।

अभी तक यार्ड में शंटरों के पास जो वॉकी टॉकी है उससे भी सही तरीके से बात नहीं हो पाती। क्योंकि सिग्नल कमजोर है। स्पष्ट बातचीत में इससे बाधा आती है। जिसके चलते कई बार भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। नाम न छापने की शर्त पर रेलवे के एक कर्मचारी ने बताया कि वॉकी-टॉकी सही नहीं रहने के कारण दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। सबसे ज्यादा परेशानी शंटिंग के दौरान हो रही है, लेकिन अभी तक रेलवे ने नए वॉकी टॉकी नहीं मंगवाए हैं।

सूचनाओं के लिए है जरूरी

पॉइंट्स मैन, चालक और गार्ड के लिए वॉकी-टॉकी सिस्टम आपस में बातचीत के लिए बहुत जरूरी है। चलती ट्रेनों में यदि कोई गड़बड़ी होती है, तो कर्मचारी तत्काल वॉकी-टॉकी के माध्यम से संबंधित अधिकारी को इसकी सूचना देता है। अधिकारी स्वयं टीम को लेकर मौके पर पहुंच कर गड़बड़ी ठीक कर देते हैं, लेकिन वॉकी-टॉकी के खराब रहने से सूचनाएं सही समय पर नहीं पहुंच सकती हैं।

रफ्तार व सुरक्षा के लिए है सिस्टम

रेल अधिकारियों के अनुसार वर्ष 2002 में रेलवे की रफ्तार देने और यात्रियोंं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वॉकी-टॉकी सिस्टम को लांच किया गया था। कोहरे के दिनों में जब सिग्नल नहीं दिखाई देता है, तो गार्ड व ड्राइवर स्टेशन के अधिकारियों से वॉकी-टॉकी पर सिगनल की जानकारी देकर ट्रेन की स्पीड मेंटेन रखते थे।

पहले मोटोरोला कंपनी के इस्तेमाल होते थे सेट

पहले मोटोरोला आदि कंपनियों के सेट इस्तेमाल किए जाते थे। गार्ड को यह सुविधा स्थाई रूप से है। लेकिन चालक को शुरू के स्टेशन पर ही वॉकी मिलती है। गार्ड बाहर से ही बैटरी फुल चार्ज कर लाते हैं, लेकिन चालक को मौके पर ही वॉकी मिलने से बैटरी बैक अप की गारंटी नहीं रहती। बैटरी कमजोर रहने से गाड़ी चलने के कुछ देर बाद ही ड्राइवर-गार्ड का संपर्क भंग होने लगता है।

मोबाइल पर है रोक

चलती ट्रेन में चालकों के सरकारी मोबाइल के प्रयोग पर रोक है। सुरक्षा कारणों से गाड़ी खुलते ही चालकों को अपना मोबाइल आॅफ कर लेने का आदेश है। ऐसा इसलिए किया गया है कि चलती ट्रेन में चालक का ध्यान भंग न हो।

Updated : 10 Jun 2017 12:00 AM GMT
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