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जंगलों को बचाने ऊर्जा वन विकसित करने की तैयारी

जंगलों को बचाने ऊर्जा वन विकसित करने की तैयारी
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ग्वालियर, न.सं.। संरक्षित और आरक्षित वन क्षेत्रों में होने वाली वृक्षों की अवैध कटाई रोकने के लिए वन विभाग प्रत्येक वन परिक्षेत्र में पांच से दस हैक्टेयर जमीन पर एक-एक ऊर्जा वन विकसित करेगा। इसके लिए तैयारियां प्रारंभ कर दी गई हैं। इस संबंध में बजट के लिए प्रस्ताव बनाए जा रहे हैं।

यहां बता दें कि संरक्षित और आरक्षित वन क्षेत्रों में लकड़ी माफिया के अलावा जलाऊ लकड़ी प्राप्त करने के लिए आसपास के ग्रामीणजन भी वृक्षों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे जंगल उजड़ रहे हैं। अत: जंगलों को सुरक्षित बनाए रखने के लिए वन विभाग ने प्रदेश व्यापी एक योजना तैयार की है, जिसके तहत प्रत्येक वन परिक्षेत्र (रेंज) में खाली पड़ी पांच से दस हैक्टेयर जमीन पर ऊर्जा वन विकसित किए जाएंगे। इन वनों में बारिश के दिनों में दखिनी और शुभ बबूल के बीज बोए जाएंगे। बबूल की यह दोनों प्रजाति ऐसी हैं, जिनके पौधे तेजी से बढ़ते हैं और दो से तीन साल में वृक्ष का रूप ले लेते हैं। वन विभाग का मानना है कि ऊर्जा वन विकसित करने से न केवल पशु पक्षियों को लाभ होगा अपितु आसपास का क्षेत्र भी हरियाली से आच्छादित होगा, जिससे लोगों को शुद्ध वातावरण भी मिलेगा। इसमें खास बात यह है कि आसपास के गांवों के लोग जरूरत के अनुसार ऊर्जा वनों से जलाऊ लकड़ी नि:शुल्क प्राप्त कर सकेंगे, जिससे जंगलों की भी सुरक्षा हो सकेगी।

ग्वालियर में चार स्थानों का चयन
ग्वालियर वन मंडल में चार स्थानों पर ऊर्जा वन विकसित किए जाना हैं। इसके लिए वन परिक्षेत्र ग्वालियर में सुसेरा, वन परिक्षेत्र घाटीगांव दक्षिण में बड़ागांव, वन परिक्षेत्र घाटीगांव उत्तर में घेंघोली में स्थान का चयन किया गया है, जबकि वन परिक्षेत्र बेहट में अभी जगह का चयन किया जाना है। बताया गया है कि शासन से अभी केवल एक ऊर्जा वन के लिए करीब चार लाख का बजट मिला है, जबकि तीन ऊर्जा वनों के लिए अभी बजट आना शेष है। इसके लिए प्रस्ताव मांगे गए हैं।

तेजी से बढ़ते हैं दखिनी व शुभ बबूल
विभागीय अधिकारियों के अनुसार दखिनी और शुभ बबूल ऐसी प्रजाति हैं, जिनके जंगल एक बार तैयार होने के बाद फिर कभी नष्ट नहीं होते हैं क्योंकि पशु इनको कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। इनके पौधे तेजी से बढ़ते हैं और जब ये फलना शुरू होते हैं, उसके बाद इनके पौधे स्वत: विकसित होते रहते हैं। इसके अलावा इनका पेड़ काटने के बाद जो ठूंठ बच जाता है, उससे भी दोबारा शाखाएं निकलने लगती हैं और कुछ ही समय में दोबारा पेड़ तैयार हो जाता है।

Updated : 11 May 2017 12:00 AM GMT
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