प्रतिष्ठा की लड़ाई में जनता की फजीहत

शहर में इन दिनों नगर निगम आयुक्त और पूर्व विधायक के बीच गंदे पानी को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है और दोनों के बीच यह विवाद इतना बढ़ चुका है कि आए दिन कोई न कोई हंगामा खड़ा हो जाता है। प्रतिष्ठा को लेकर छिड़ी इस जंग में दोनों का नुकसान भले ही न हो लेकिन ं इसे लेकर जहां सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग हो रहा है, वहीं जनता की समस्याओं का भी निराकरण नहीं हो पा रहा है। एक जनता की समस्याओं को गिनाना शुरू करता है, तो दूसरा इसे नाक का बाल बनाकर मानने को तैयार ही नहीं है। रोज एक नया बखेड़ा खड़ा होने से निगम का पूरा अमला बेवजह परेशान हो रहा है, वहीं समस्याओं का अंबार लगता जा रहा है।
पूर्व विधायक हों या निगम आयुक्त दोनों का संबंध सीधा जनता से होता है। दोनों ही जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि एक का जुड़ाव सीधे जनता से है तो दूसरा सरकार के अधीन होकर जनता से जुड़ा होता है। दोनों का ही उद्देश्य जनता की सेवा करना ही होता है, तब ऐसे में किसी विषय को लेकर प्रतिष्ठा बना लेना कहां तक उचित है? पूर्व विधायक का कहना है कि उनके क्षेत्र में गंदे पानी की समस्या काफी दिनों से है और एक जनप्रतिनिधि के नाते जनता उनसे शिकायत कर रही है। बकौल पूर्व विधायक इस शिकायत का निराकरण कराने के लिए वे जनता के साथ कई बार संबंधित अधिकारियों से चर्चा कर चुके हैं, लेकिन जब कोई सुनने को तैयार नहीं हुआ तब वे निगमायुक्त के पास गए। लेकिन जिस तरह का बर्ताव उनके साथ हुुआ वह अशोभनीय था।
एक जनप्रतिनिधि होने के नाते समस्या का शांतिपूर्ण समाधान होना चाहिए था, लेकिन निगमायुक्त शायद इस वजह से इस समस्या का निराकरण करने से हिचकिचा रहे हैं कि उनके राज में सब ठीक चल रहा है, कहीं कोई समस्या नहीं है। ऐसा मान लेना शायद ठीक नहीं है। पूर्व विधायक के साथ निगमायुक्त का यह पहला विवाद हो, ऐसा भी नहीं है। पार्षदों को जेल भिजवाने का मामला रहा हो या फिर ईओडब्लू कार्यालय पर कचरा फेंकने का मामला हो। इन तीनों ही घटनाओं को देखने से लगता है कि कहीं न कहीं कमियां बताने वालों के साथ दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई की गई या की जा रही है। अगर ऐसा ही रहा तो भविष्य में कोई समस्या ही नहीं बता पाएगा, तब शहर का क्या होगा, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। यदि यह भाव अधिकारियों में रहेगा तो यह जनता के हित में नहीं रहेगा। समस्या तो रहनी ही हैं। एक समस्या का निराकरण होगा तो दूसरी समस्या खड़ी हो जाएगी। प्रदेश की भाजपा सरकार भले ही जनहितैषी हो, लेकिन सरकार के काम प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से ही होते हैं। ऐसे में प्रशासनिक अधिकारियों को चाहिए कि वे समस्या का निराकरण अपना कर्तव्य समझते हुए तो करें ही साथ ही समस्या बताने वाले जनप्रतिनिधियों से मिलकर भी समस्याओं का निराकरण करें। क्योंकि जनता की समस्याओं से इनका भी सीधा संरोकार होता है। तभी शहर में स्वस्थ परम्परा कायम हो सकती है।