बालू के खनन पर कब नकेल कसेगी सीबीआई

दो दशकों में तेजी से फैला बालू का कारोबार, रात के अंधेरे में हो रही उठान
रामकिशोर भार्गव - झांसी। अदालत के आदेश के बाद सीबीआई की राडार वैसे तो बालू माफियाओं के हर घाट पर होगी। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर हो रहे इस अवैध खनन पर कार्यवाही अभी तक बड़े स्तर पर देखने को नहीं मिली और लगातार अवैध खनन की खबरें आ रही हंै। इससे लग तो यह रहा है कि क्या इन बालू माफियाओं के हाथ सीबीआई से भी लम्बे हो चले हैं। जनपद की ऐसी कोई घाट नहीं बची जहां से दिन न सही रात में जरूर अवैध खनन हो रहा है। वह भी पुलिस की नाक के नीचे। हांलाकि सीबीआई का डर पुलिस को भी है नतीजन बड़ी सतर्कता से कार्य को अन्जाम दिया जा रहा है। जिससे सरकार के राजस्व को बड़े पैमाने पर हानि पहुंचा कर काले धनकुबेर बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन सीबीआई के खौफ से अब रात में बालू उठान हो रही है। साथ ही निकटवर्ती मध्यप्रदेश के ओरछा की बेतवा नदी को भी निशाना बनाया जाने लगा है।
सूबे के अन्य जनपदों की अपेक्षा बुन्देलखण्ड के झांसी में सबसे ज्यादा फलने फूलने वाले अवैध बालू के इस कारोबार का संज्ञान हाईकोर्ट में आने के बाद मिले सीबीआई की जांच के निर्देश के बाद भी यहां बालू का खनन रुकने का नाम नहीं ले रहा है। जिसके दुष्परिणाम देखने को भी मिल रहे हैं। सड़कें जर्जर हालात का रूप ले चुकी हैं। बार-बार सुधारने के बाद भी अमानक तरीके से भरे बड़े बड़े कन्टेनरों ने हाईवे तक को हिला कर रख दिया है। सड़क के जिस ओर से भरे कन्टेनर जाते हैं वह सड़क ऊंट की पीट जैसे उठ गयी है। नतीजन राहगीरों से टोल वसूलने के बाद भी सरकार और प्रशासन इसे रोकने में नाकाम साबित हो रहे है। और राहगीर परेशानियां भुगतने को मजबूर हैं। खनन माफियाओं की इस मनमानी का खामियाजा यहां की भोली भाली जनता को भुगतना पड़ रहा है।
बालू के इस अवैध खनन का सबसे ज्यादा असर यहां के किसानों पर पड़ रहा है नदियों के किनारों के कटाव ने खेतों को छोटा कर दिया। खनन से खेती की जमीनें बंजर होती जा रही हंै। वैसे जनपद झांसी के एरच घाट, रामनगर घाट, बबीना थाना क्षेत्र के सुकुआं ढुकुआं बांध, शेखर और बघौरा घाट समेत कई ऐसी घाटें है जहंा से रोजाना दिन रात अवैध खनन कर करोड़ों के बारे न्यारे किये जा रहे हंै।
इस काम में लगे कारोबारी भी इसमें सीबीआई को रिस्क बताने से नहीं चूक रहे, लेकिन पुलिस के संरक्षण को बड़ी ताकत मान रहे हैं और ऐसा भी नहीं है कि अकेली पुलिस ही इसमें शामिल हो बल्कि सूत्रों की माने तो पिछले दो दशकों से फले फूले इस अवैध करोबार को सत्तापक्ष का साथ मिलता रहा है। यह कारोबार पिछली सन 2007 की बसपा सरकार में परवान चढ़ा और इसके बाद 2012 में आई सपा सरकार में सैफई, इटावा, और मैनपुरी के साथ लगभग एक बिरादरी ने इसकी जिम्मेवारी सम्भाल ली। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इनके फलते फूलते इस काले कारोबार के पीछे की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। सूत्रों पर यकीन करें तो पता चलता है कि इस पर अंकुश लगाने वाले जिम्मेदार अधिकारियों के पास भी होने वाली कमाई का एक हिस्सा जाता रहा है जिसके चलते जिम्मेदार लोग मौन साधे हुये हैं और सब कुछ जानते हुये भी अनजान बने रहते हंै।
समय समय पर पुलिस भी छुटभैयों को पकड़ कर अपनी पीठ ठोकती रही है लेकिन असल माफियाओं की पर हाथ डालना शायद उनकी मजबूरी रही हो या चांदी के जूतों की चकाचौंध। कुछ भी हो अब सीबीआई से उम्मीद बांधी जा सकती है कि दूध का दूध और पानी का पानी हो। वैसे सीबीआई ने कई जनपदों में रिपोर्ट दर्ज कर जांच आरम्भ की है तब से लोगों के मन में उम्मीद तो जागी है कि शायद अब इस झांसी जनपद में हो रहे अवैध खनन से मुक्ति मिलने के साथ काले कारोबार बालों को उनके अन्जाम तक पहुंचाया जा सकेगा। लेकिन कब तक यह समय के गर्भ में है और लोगों को इन्तजार है।
सीबीआई का डर पुलिस को भी
किसी भी थाना क्षेत्र में बिना पुलिस की मर्जी से कोई भी अवैध कारोबार संचालित होना नामुमकिन रहता है। कहते हैं कि पुलिस पाताल भी खंगाल सकती है। ऐसी स्थिती में जनपद के लगभग प्रत्येक थाना क्षेत्रों हो रहे बड़े पैमाने के इस अवैध खनन को आखिर पुलिस रोकने में नाकाम क्यूं साबित हो रही है। इसका सीधा जवाब है, ऊपर की कमाई। लेकिन जब से सीबीआई को न्यायालय ने जांच सौंपी है तब से पुलिस के अन्दर भी सीबीआई का खौफ साफ झलकने लगा है। थानों के कार्यखासों के पास बनी ट्रेक्टर ट्रलियों और डम्फरों की लिस्ट छोटी हो चली है। इसके बाद जो भी बची है उन्हें भी आगाह किया जा रहा है कि भाई फंसो तो तुम जानो। सिर्फ हम नहीं पकड़ेंगे। अब ऐसी स्थिती में सीबीआई कैसे काम करेगी। यह समय के गर्त में है।