आंखों को नम करती बिटिया की चिट्ठी

स्व. आलोक तोमर और स्वदेश का परस्पर स्नेह संबंध
ग्वालियर। स्वर्गीय आलोक तोमर और स्वदेश परस्पर स्नेह संबंधों का एक खूबसूरत एहसास है आज आलोक तोमर हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी यादें आज भी हर उस व्यक्ति के जेहन में हैं जो उनसे किसी ना किसी रूप में मिला है। आलोक, जिस भिण्ड की धारा के दैदीप्यमान नक्षत्र होकर पत्रकारिता को आलोकित करके गए है ऐसे बिरले लोग ही होते हैं। उनके पत्रकारिता जीवन की प्रथम पाठशाला यहीं से प्रारंभ हुई। ्न‘स्वदेश’ से प्रारंभ हुई उनकी पत्रकारिता ने देश में अच्छा नाम कमाया उनकी मजबूत कलम ने कई लोगों को झुकने पर मजबूर किया, तो कई मजबूर लोगों को मजबूत भी बनाया। आज स्वर्गीय आलोक तोमर हमारे बीच नहीं है। लेकिन आलोक के आलेख आज भी जीवित हैं। स्व. श्री तोमर की बिटिया अध्याशा रॉय तोमर वर्तमान में ग्लिच एडवरटाइजिंग एजेंसी नई दिल्ली में वरिष्ठ प्रबंधक हैं। एक बिटिया ने अपने पापा को एक चिट्ठी लिखी है। स्वदेश के आग्रह पर उन्होंने इसे भेजा है स्वर्गीय आलोक तोमर का पुण्य स्मरण करते हुए हम इसे प्रकाशित कर रहे है।
आज से 6 वर्ष पहले आप हमारे बीच से चले गए थे, उसके बाद मैंने गाड़ी चलाना सीखी, कॉलेज जाने लगी। पढ़ाई पूरी करने के बाद स्नातक फिर स्नातकोत्तर की डिग्री मिली। उसके बाद मुझे पहली नौकरी मिली (सोचती हूं कि में उपयुक्त हूं ) फिर मैंने दो पालतू डॉग पाले। एक का नाम पिक्सी और दूसरे का ओला नाम रखा। मेरी जब भोली-भाली 15 वर्ष की अनुभवहीन उम्र थी, जब में सोचती थी कि दुनिया में खूब खेल और मस्ती होती है तब ही पापा आप छोड़कर मुझे चले गए थे, अब मैं 25 वर्ष की हूं। जीवन इतना कठिन और अकेला हो सकता है, ये सबक आपने पापा मुझे छोड़कर सिखाया है। इसके अलावा आपने मुझे सिखाया था कि जितनी ईमानदारी से आप अपने लिए किसी बात के लिए खड़े होते हो उतनी ही ईमानदारी से किसी अन्य के लिए भी होना। आप ही ने सिखाया कि तत्परता चापलूसी हेतु नहीं, हमेशा क्रूरतापूर्वक ईमानदार होकर लिखना। मेरी बड़ी बंगाली आँखें मुझे माँ द्वारा दी गई हैं, बाकी सब आपका है। मैं अच्छी तरह से लिख सकती हूँ, लोगों के लिए और अपने लिए खड़ी हो सकती हूं, अपने आप को कार्य हेतु बाध्य कर लेती हूं क्योंकि यह भी सब आपने किया था। मुझे लगता है आपके बजाए मैं जिंदगी की अच्छी परिचालक हूं क्योंकि जिसकी में आशा करती हूं उसे प्राप्त कर सकती हूं अब यादें क्षीण हो रही हंै, लेकिन भावनाएं नहीं, मुझे अभी भी आपके कदमों, आपका कुर्ता,आपके चुटकुले (‘‘पापा, आई’एम हंग्री’’ ओके, देन आई’ एम चेकोस्लोवाकिया) आज भी आप इन यादों के साथ अभी भी मेरे मन ही मन में जीवित हैं और हमेशा रहेंगे, मुझे नहीं पता कि यहां कोई स्वर्ग है, लेकिन अगर है, तो हम फिर से मिलेंगे।
आपकी बिटिया
अध्याशा रॉय तोमर
