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जन्म दिन पर विशेष : न दैन्यं, न पलायनं

जन्म दिन पर विशेष : न दैन्यं, न पलायनं
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भारत के राजनीतिक इतिहास में अटल बिहारी वाजपेयी का संपूर्ण व्यक्तित्व शिखर पुरुष के रुप में दर्ज है। दुनिया में उनकी पहचान एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार व लेखक के रुप में है। राष्ट्रीय विचारधारा में पले - बढ़े अटल जी उसे कभी अपने से ऊँचा नहीं होने दिया। राजनीति में उदारवाद के सबसे बड़े समर्थक माने गए हैं। विचारधारा की कीलों से कभी अपने को नहीं बांधा। राजनीति को दलगत और स्वार्थ की वैचारिकता से अलग हट कर अपनाया और उसको जिया। जीवन में आने वाली हर विषम परिस्थितियों और चुनौतियों को स्वीकार किया। नीतिगत सिद्धांत और वैचारिकता का कभी कत्ल नहीं होने दिया। राजनीतिक जीवन के उतार चढ़ाव में उन्होंने आलोचनाओं के बाद भी अपने को फिट किया। राजनीति में धुर विरोधी भी उनकी विचारधाराओं और कार्यशैली के कायल थे। लेकिन पोखरण जैसे आणविक परीक्षण कर तीसरी दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका और दूसरे मुल्कों को भारत की शक्ति का एहसास कराया। आपातकाल के दौरान डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की श्रीनगर में मौत के बाद सक्रिय राजनीति में दखल दिया।

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसंबर को हुआ था। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी शिक्षक थे। उनकी माता कृष्णा जी थी। वैसे वे मूलत: उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के बटेश्वर गांव के रहने वाले थे। लेकिन पिता जी मध्य प्रदेश में शिक्षक थे। इसलिए उनका जन्म वहीं हुआ। लेकिन उत्तर प्रदेश से उनका राजनीतिक लगाव सबसे अधिक रहा। प्रदेश की राजधानी लखनऊ से वे सांसद थे।

अटलजी को श्रेष्ठ सांसद और लोकमान्य तिलक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। कविताओं को लेकर उन्होंने कहा था मेरी कविता जंग का ऐलान है। पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है। उनकी कविताओं का संकलन मेरी इक्यावन कविताएं खूब चर्चित हुई जिसमें....हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा...खास चर्चा में रही। राजनीति में संख्या बल का आंकड़ा सर्वोपरि होने से 1996 में उनकी सरकार सिर्फ एक मत से गिर गई और उन्हें प्रधानमंत्री का पद त्यागना पड़ा। यह सरकार सिर्फ तेरह दिन तक रही। बाद में उन्होंने प्रतिपक्ष की भूमिका निभायी। इसके बाद हुए चुनाव में वे दोबारा प्रधानमंत्री बने। संख्या बल की राजनीति में यह भारतीय इतिहास के लिए सबसे बुरा दिन था। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी विचलित नहीं हुए, उन्होंने इसका मुकाबला किया।
अटल बिहारी वाजपेयी गैर कांग्रेसवादी सरकार के इतर पहले प्रधानमंत्री बने जिन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता से भाजपा को देश में शीर्ष राजनीतिक सम्मान दिलाया। दो दर्जन से अधिक राजनीतिक दलों को मिलाकर उन्होंने राजग बनाया था जिसमें 80 से अधिक मंत्री थे। इस सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। उन्हीं अटल जी की देन है कि भाजपा नरेंद्र मोदी की अगुवाई में देश का नेतृत्व कर रही है।

अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में कभी भी आक्रामकता के पोषक नहीं थे। वैचारिकता को उन्होंने हमेशा तवज्जो दिया। राजनीति के शिखर पुरुष अटलजी मानते हैं कि राजनीति उनके मन का पहला विषय नहीं था। लेकिन वे चाहकर भी इससे पलायित नहीं हो सकते थे। क्योंकि विपक्ष उन पर पलायन की मोहर लगा देता। वे अपने राजनैतिक दायित्वों का डट कर मुकाबला करना चाहते थे। यह उनके जीवन संघर्ष की भी खूबी थी। वे एक कुशल कवि के रुप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे। लेकिन बाद में इसकी शुरूआत पत्रकारिता से हुई। पत्रकारिता ही उनके राजनैतिक जीवन की आधारशिला बनी। उन्होंने पांचजन्य,स्वदेश, राष्टÑधर्म और वीर अर्जुन जैसे अखबारों का संपादन किया। अपने कॅरियर की शुरूआत पत्रकारिता से की।1957 में देश की संसद में जनसंघ के सिर्फ चार सदस्य थे। जिसमें एक अटल बिहारी वाजपेयी भी थे। संयुक्तराष्टÑ संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण देने वाले अटलजी पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे। हिन्दी को सम्मानित करने का काम विदेश की धरती पर अटल ने किया।
उन्होंने सबसे पहले 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। बाद में 1957 में गोंडा की बलरामपुर सीट से जनसंघ उम्मीदवार के रुप में जीत कर लोकसभा पहुंचे। उन्हें मथुरा और लखनऊ से भी लड़ाया गया। लेकिन पराजय का सामना करना पड़ा। अटल जी ने बीस सालों तक जनसंघ के संसदीय दल के नेता के रुप में काम किया।

इंदिरा जी के खिलाफ जब विपक्ष एक हुआ बाद में जब देश में मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो अटल जी को भारत की विदेश नीति बुलंदियों पर पहुंचाने के लिएं विदेश मंत्री बनाया गया। इस दौरान उन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता की छाप छोड़ी। बाद में 1980 में जनतापार्टी से नाराज होकर पार्टी का दामन छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। उसी साल उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी। इसके बाद 1986 तक उन्होंने भाजपा के अध्यक्ष पद का कुशल नेतृत्व किया। इंदिरा गांधी के कार्यों की सराहना की थी। कहा जाता है कि संसद में इंदिरा गांधी को दुर्गा की उपाधि उन्हीं की तरफ से दी गई। उन्होंने इंदिरा सरकार की तरफ से 1975 में लादे गए आपातकाल का विरोध किया था। लेकिन बांग्लादेश के निर्माण में इंदिरा गांधी की भूमिका को सराहा था। उनका साफ कहना था कि जिसका विरोध जरुरी था उसका विरोध किया और जिसकी प्रशंसा चाहिए थी उसे वह सम्मान मिलना चाहिए। लेकिन आज के राजनीतिक संदर्भ में यह विचार लागू नहीं होता। अब तो सिर्फ आलोचना ही राजनीति का मुख्य विषय है । अटल हमेशा से समाज में समानता के पोषक थे। विदेश नीति पर उनका नजरिया साफ था। वह आर्थिक उदारीकरण एवं विदेशी मदद के विरोधी नहीं थे। लेकिन वह देशहित के खिलाफ हो ऐसी नीति को बढ़ावा देने के वह हिमायती नहीं रहे। उन्हें विदेश नीति पर देश की अस्मिता से कोई समझौता स्वीकार नहीं था।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री रहे लालबहादुर शास्त्री जी की तरफ से दिए गए नारे जय जवान जय किसान में एक नारा अलग से जय विज्ञान भी जोड़ा। देश की सामरिक सुरक्षा पर उन्हें समझौता स्वीकार नहीं था। वैश्विक चुनौतियों के बाद भी राजस्थान के पोखरण में 1998 में पांच परमाणु परीक्षण किए। इस परीक्षण के बाद अमेरिका, आस्टेलिया और यूरोपीय देशों की तरफ से भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया गया। लेकिन उनकी दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति इन परिस्थितियों में भी उन्हें अटल स्तंभ के रुप में अडिग रखा। कारगिल युद्ध की भयावहता का भी डट कर मुकाबला किया और पाकिस्तान को धूल चटायी।

दक्षिण भारत के सालों पुराने कावेरी जल विवाद का हल निकाला। इसके बाद स्वर्णिम चतुर्भुज योजना से देश को राजमार्ग से जोड़ने के लिए कॉरिडोर बनाया। मुख्य मार्ग से गांवों को जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना बेहतर विकास का विकल्प लेकर सामने आयी। कोंकण रेल सेवा की आधारशिला उन्हीं के काल में रखी गई थी। भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी एक अडिग, अटल और लौह स्तंभ के रुप में आने वाली पीढ़ी को सीख देते रहेंगे। हमें उनकी नीतियों और विचारधाराओं का उपयोग देशहित में करना चाहिए। बदले राजनीतिक महौल में भाजपा और काँग्रेस के साथ समता , समानता और उदारवादी अटल बिहारी वाजपेई की नीतियों पर अमल करना चाहिए।

लेखक: स्वतंत्र पत्रकार हैं

Updated : 25 Dec 2017 12:00 AM GMT
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