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यात्री कोचों में बायो-टॉयलेट के लक्ष्य से पिछड़ा भारतीय रेलवे: कैग

यात्री कोचों में बायो-टॉयलेट के लक्ष्य से पिछड़ा भारतीय रेलवे: कैग
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नई दिल्ली। भारतीय रेल के यात्री कोचों में बायो-टॉयलेट बनाने को लेकर भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट मंगलवार को संसद में पेश की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि बायो-टैंक की खरीद में विलम्ब और रेलवे प्रशासन द्वारा डिजाइन का मानकीकरण नहीं करने के कारण लक्ष्य के अनुसार कोचों में बायो-टॉयलेट नहीं लगाए जा सके।

कैग की रिपोर्ट संख्या 36-2017- भारतीय रेल के यात्री कोचों में बायो-टॉयलेट का अधिष्ठापन पर रिपोर्ट आज संसद में पेश की गई। भारतीय रेल 1,19,630 ट्रैक के अपने नेटवर्क पर प्रतिदिन 22.21 मिलियन यात्रियों को ले जाते हुए 54,506 कोचों (डीजल इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट/डीजल हाइड्रोलिक मल्टीपल यूनिट सहित) के बेड़े के साथ लगभग 13,313 यात्री रेलगाड़ियां चलाती है। भारतीय रेल में यात्री कोचों में प्रयुक्त हो रही परम्परागत टॉयलेट प्रणाली फ्लश-टाइप है। इसमें असंसाधित मानव अपशिष्ट (मैला) को प्रत्यक्ष रूप से ट्रैक और प्लेटफार्म एप्रन पर छोड़ दिया जाता है। परिणामस्वरूप, स्टेशनों पर जैविक प्रदूषण और गंदगी भरा वातावरण रहता है, जिसके कारण यात्रियों को असुविधा होती है और ट्रैक के उचित प्रबंधन में कठिनाई आती है।

लेखा परीक्षा की रिपोर्ट के पैरा 2.3 के अनुसार 100 प्रतिशत यात्री कोचों को बायो-टॉयलेट के साथ बनाने के लक्ष्य के प्रति भारतीय रेल में तीन उत्पादन इकाइयों ने वर्ष 2016-17 में बिना बायो-टॉयलेट के 5.7 प्रतिशत कोच बनाए। वर्ष 2016-17 में 6.7 प्रतिशत लिंक होफमान बुश (एलएचबी) कोच भी बिना बायो-टॉयलेट्स के बनाए गए।

रिपोर्ट के पैरा 2.4 में बताया गया है कि 2014-15 से 2016-17 के दौरान जैव-शौचालयों के रेट्रोफिटमेंट के लिए आवंटित निधि की उपयोगिता प्रतिशतता 34 प्रतिशत और 71 प्रतिशत के बीच थी। वर्ष 2016-17 के लिए रेल मंत्रालय ने 30,000 जैव-शौचालय लगाने के लक्ष्य की घोषणा की, जिसमें से 20,000 बायो-टॉयलेट्स रेट्रोफिटमेंट के माध्यम से लगाए जाने थे। रेलवे बोर्ड ने 2016-17 के दौरान 60,000 बायो-टॉयलेट्स लगाने के लिए आंतरिक लक्ष्य निर्धारित किए, जिसमें से रेट्रोफिटमेंट के लिए 50,000 का लक्ष्य था। 20,000 बायो-टॉयलेट्स के लक्ष्य और 50,000 बायो-टॉयलेट्स के आंतरिक लक्ष्य के प्रति, विभिन्न क्षेत्रीय रेलवे ने, रेट्रोफिटमेंट के माध्यम से 22,198 जैव-शौचालय लगाने का लक्ष्य प्राप्त किया। यद्यपि पांच क्षेत्रीय रेलवे ने प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा निर्धारित और मॉनीटर किए गए लक्ष्यों को पार किया अन्य क्षेत्रीय रेलवे द्वारा लक्ष्य को प्राप्त करने में एक से 67 प्रतिशत की कमी रही। पूर्व मध्य रेलवे (67 प्रतिशत), उत्तर मध्य रेलवे (49 प्रतिशत), उत्तर रेलवे (42 प्रतिशत), दक्षिण-पूर्वी रेलवे (44 प्रतिशत) और पश्चिमी रेलवे (43 प्रतिशत) में 30 प्रतिशत से अधिक की कमी थी।

रिपोर्ट के पैरा 2.4.2 के मुताबिक 2016-17 में, कैरिज कार्यशालाओं में पीओएच के दौरान रेट्रोफिटमेंट के लिए 16,800 जैव-शौचालयों के लक्ष्य के प्रति विभिन्न क्षेत्रीय रेलवे 12,828 जैव-शौचालय लगाने का लक्ष्य प्राप्त कर सकी है। बायो-टैंकों की खरीद में देरी की वजह से कोचों में लक्ष्य के अनुसार जैव-शौचालय नहीं लगाए जा सके।

पैरा 2.5 के अनुसार भारतीय रेल द्वारा ग्रीन ट्रेन स्टेशन और ग्रीन कॉरिडोर की अवधारणा प्रस्तुत की गई थी। ग्रीन ट्रेन स्टेशनों में, सभी शुरू होने वाली, समाप्त होने वाली, बाइपास होने वाली और प्लेटफ़ॉर्म रिटर्न ट्रेनों में 100 प्रतिशत जैव शौचालय लगे कोच होना अपेक्षित था। ग्रीन कॉरिडोर में पटरियों को मानव अपशिष्ट रहित भी बनाना था। हालांकि, निर्धारित स्टेशनों और कॉरिडोर में इन नियमों का पालन नहीं किया गया।

पैरा 3.1.1.2 के अनुसार क्षेत्रीय रेलवे द्वारा यात्री कोचों में जैव-शौचालयों के रेट्रोफिटमेंट की अपर्याप्त प्रगति के कारण, रेलवे बोर्ड ने इन-सर्विस कोचों में लगभग 80,000 जैव शौचालयों की आपूर्ति और उनकी फिटमेंट के लिए थोक में ऑर्डर करने का निर्णय लिया। रेलवे बोर्ड द्वारा नौ फर्मों को ऑर्डर दिए गए जिनमें से सात फर्मों के प्रति क्षेत्रीय रेलवे द्वारा वर्ष 2015-16 और 2016-17 के दौरान दिए गए खरीद आदेश के प्रति आपूर्ति की गई सामग्री की मात्रा और गुणवत्ता के संबंध में शिकायतें लंबित थीं। 33,783 जैव-शौचालयों जिनकी मार्च, 2017 तक 16 क्षेत्रीय रेलवे को आपूर्ति की जानी थी के प्रति फर्मों द्वारा केवल 14,274 जैव-शौचालयों की आपूर्ति की गई थी। इनमें से 12,016 जैव-शौचालय मार्च 2017 तक कोचों में लगाए गए थे।

रिपोर्ट में बताया गया है कि नवम्बर 2009 में रेलवे बोर्ड ने व्यवहार्यता अध्ययन, तकनीकी-आर्थिक विश्लेषण और पर्यावरण के अनुकूल शौचालयों के कार्यान्वयन के लिए कार्य योजना तैयार करके भारतीय रेल में पर्यावरण के अनुकूल उपयोग हेतु शौचालयों का निर्णय लेने के लिए कोर ग्रुप की स्थापना की। अन्य प्रकार के शौचालयों के अलावा कोर ग्रुप ने यात्री कोचों में फिट किए जाने वाले उचित बायो-टॉयलेट के विकास के लिए जैव-क्रमबद्धता (बायो-डाइजेस्टर) प्रौद्योगिकी को अपनाने की सिफारिश की (जनवरी 2010)। 'बायो-डाइजेस्टर' पर्यावरण अनुकूल ढंग से मानव अपशिष्ट के निपटान के लिए विकसित की गई एक प्रौद्योगिकी है। यह प्रौद्योगिकी ग्वालियर स्थित रक्षा अनुसंधान और विकास स्थापना (डीआरडीई) और तेजपुर स्थित रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला (डीआरएल) द्वारा विकसित की गई थी।

एक 'बायो-टॉयलेट', (बायो-डाइजेस्टर प्रौद्योगिकी के द्वारा) एक पर्यावर्णीय-अनुकूल अपशिष्ट प्रबंधन समाधान है, जो ठोस मानव अपशिष्ट को जैविक अवक्रमण द्वारा बैक्टेरियल इनोकुलम की सहायता से बायो-गैस और पानी में बदल देता है। यह स्टेशनों पर रेलवे ट्रैक और प्लेटफार्म एप्रैन पर कोच शौचालयों मानव अपशिष्ट की प्रत्यक्ष निकासी को रोकता है और प्लेटफॉर्म एप्रन और रेल गाड़ियों को साफ करते समय मैनुअल सफाई से बचाता है।

भारतीय रेलवे द्वारा यात्री कोचों में बायो-टॉयलेट के अधिष्ठापन के लक्ष्य की प्राप्ति और बायो-टॉयलेट के उचित अनुरक्षण और रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए कोचिंग डिपो और कार्यशालाओं में अवसंरचना की पर्याप्तता के मूल्यांकन की समीक्षा के लिए यह लेखापरीक्षा की गई थी।

Updated : 19 Dec 2017 12:00 AM GMT
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