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बांग्लादेश सीमा पर तारबंदी में ढिलाई पर सरकार की खिंचाई : सुप्रीम कोर्ट

बांग्लादेश सीमा पर तारबंदी में ढिलाई पर सरकार की खिंचाई : सुप्रीम कोर्ट
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-नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) के प्रकाशन की तिथि 31 दिसंबर से आगे नहीं बढ़ाएगी सरकार
नई दिल्ली। असम में नागरिकता और अवैध आप्रवासियों को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भारत-बांग्लादेश सीमा पर कंटीले तार लगाये जाने की धीमी प्रगति पर नाराजगी जताई है। जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस आरएफ नरीमन की बेंच ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा कि वो नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) के प्रकाशन की तिथि 31 दिसंबर से आगे नहीं बढ़ाएगी। कोर्ट ने कहा कि पिछले तीन सालों में कई बार एनआरसी के प्रकाशन की तिथि बढ़ाई जा चुकी है लेकिन ये अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है।

दरअसल केंद्र सरकार एनआरसी के प्रकाशन की तिथि 31 जुलाई करने की मांग कर रहे थे जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। जब कोर्ट आदेश लिखवाने लगी तो अटार्नी जनरल ने आपत्ति जताते हुए कहा कि कोर्ट अपने एक्जीक्युटिव शक्तियों से बाहर जाकर आदेश दे रही है। कोर्ट को ये अधिकार नहीं है कि वो इसकी तिथि तय करे। उसके बाद कोर्ट ने अटार्नी जनरल के इस बयान को अपने रिकॉर्ड में दर्ज करते हुए आपत्ति खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि 31 दिसंबर तक एनआरसी का जितना प्रकाशन हो जाए उतना कीजिए और जो बचेगा उसे बाद में प्रकाशित कीजिएगा।

पिछले 13 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने असम के मुख्यमंत्री की इस बात के लिए फटकार लगाई थी कि उन्होंने नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजन (एनआरसी) के प्रकाशन की तिथि पहले ही तय कर ली। सुप्रीम कोर्ट को पहले सूचना दी गई थी कि एनआरसी का प्रकाशन 31 मार्च 2018 तक किया जाएगा लेकिन मुख्यमंत्री ने इसे तीन महीने पहले ही 31 दिसंबर 2017 तक कर दी है। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी 31 दिसंबर तक एनआरसी के प्रकाशन की अनुमति दे दी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मसले पर वो दो साल से ज्यादा समय लगा चुकी है और इसमें किसी का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने असम में अवैध आप्रवासियों की समस्या से निपटने के लिए एनआरसी के प्रकाशन का आदेश दिया था। असम सरकार के वकील ने कहा कि मुख्यमंत्री का मकसद सुप्रीम कोर्ट के काम में हस्तक्षेप करने का नहीं था।

भारत पाकिस्तान सीमा पर कंटीले तारों को लगाने की निगरानी कर चुके मधुकर गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट के आग्रह को अस्वीकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने उनसे भारत बांग्लादेश सीमा पर कंटीले तारों को लगाने की निगरानी करने का आग्रह किया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से अनुरोध किया है कि कंटीले तारों को लगाने की निगरानी करने के लिए नामों का सुझाव दें।

असम सम्मिलित महासंघ और की ओर से दायर असम में नागरिकता और अवैध आप्रवासियों को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रही है ।

नागरिकता कानून की धारा 6(ए) की संवैधानिकता और असम में प्रवेश कर रहे अवैध आप्रवासियों की नागरिकता का मानक क्या हो ये तय करने के लिए याचिका दायर की गई है। नागरिकता तय करने के लिए पहला सवाल ये है कि जो बांग्लादेशी 1951 में भारत आए उन्हें नागरिकता दी जाए या जो 1971 के बाद आए उन्हें । दूसरा ये कि जो विदेशी 1971 के बाद भारत में पैदा हुए उन्हें नागरिकता दी जाए या नहीं । याचिका में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकार ने अब तक इस बारे में कोई रुख तय नहीं किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर 2014 को अपने आदेश में केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वो भारत-बांग्लादेश सीमा पर कंटीले तारों का बाड़ लगाये ताकि अवैध आप्रवासियों को भारत की सीमा में घुसने से रोका जा सके। केंद्र सरकार ने इस बारे में सात फरवरी को जो हलफनामा दायर किया था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने हलफनामे को एक भ्रमपूर्ण कार्रवाई बताया था। कोर्ट ने कहा था कि असम सीमा से लगे तेरह किलोमीटर से ज्यादा के गलियारे में कंटीले तारों का बाड़ लगाने का काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है और केंद्र कह रहा है कि इसके लिए तीन साल का समय और चाहिए।

Updated : 30 Nov 2017 12:00 AM GMT
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