रजिया, पद्मावती और सेक्युलरिज्म
भारतीयत्व के पुनर्जागरण अभियान से उत्पन्न स्वाभिमान भावना की ज्यों-ज्यों मान्यता बढ़ती जा रही है, हीन भावना से ग्रस्त समुदाय की विक्षिप्तता बढ़ती जा रही है। इस विक्षिप्तता का ही नमूना है पद्मावती फिल्म में ऐतिहासिकता और सामाजिक भावना के विपरीत चित्रण के विरोध को कलात्मक अभिव्यक्ति की संवैधानिक अधिकार पर कुठाराघात बताना। इसी विक्षिप्त मानसिकता का एक और उदाहरण है रांची की एक युवती रजिया के योगाभ्यास में आस्था और उसका प्रशिक्षण देने के प्रयास को इस्लामी मान्यता विरोध न केवल बताना अपितु उस पर हिंसक हमला करना जिसके कारण झारखंड सरकार को उसे सुरक्षा प्रदान करना पड़ी है। यह हमला उस समय हो रहा है जब इस्लाम का मक्का मदीना सऊदी अरब ने इस्लामी विद्वानों का एक सम्मेलन यह निर्धारित करने के लिए आहूत करने का फैसला किया है कि हदीस के कौन से ऐसे निर्देश हैं जो कालवाह्य हो चुके हैं और उन्हें त्याग देना चाहिए। वैसे तो भारत के वर्तमान इस्लाम मतावलम्बियों को छोड़कर दुनियाभर के इस्लामिक आस्था वाले देशों ने टर्की द्वारा बीसवीं सदी के प्रारंभ में खलीफा को अपदस्थ कर अतातुर्क कमालयाश्य ने जिस बदलाव की शुरूआत की थी भारत जैसे समन्वयवादी सनातन परंपरा के कारण ही चाहे इस्लाम हो या ईसाइयत उसकी सभी प्रकार की आस्थाओं वाले समुदाय का अस्तित्व है जो इस्लामी आस्था वाले देशों में नहीं देखा जा सकता है फिर भी भारत में इस्लामी देशों से सैकड़ों गुना दकियानूसी का बोलबाला बना हुआ है। एक समय था जब सऊदी अरब में घर में सत्यार्थ प्रकाश रखने वाले को मृत्यु दण्ड दिया गया था वहीं सऊदी अरब में जहां दुनियाभर के इस्लामपंथी हज के लिए जाते हैं अब हदीश से कालवाह्य निर्देशों को विलुप्त करने के लिए विद्वानों का समागम करा रहा है। रजिया का दोष क्या है? यही कि तन मन दोनों से स्वस्थ रहने के लिए अति प्राचीनकाल से भारत में चले आ रहे योगाभ्यास को उसने अपनाया है और उसका प्रशिक्षण भी दे रही है। कठमुल्ले की धमकी आवास पर पत्थरबाजी के बावजूद उसने अपने संकल्प पर अडिग रहने का जो साहस दिखाया वह दर्शाता है कि तीन तलाक के मसले पर सर्वोच्च न्यायालय से अनुकूलता पाने वाली मुस्लिम महिलाओं की सफलता के संघर्ष को आगे बढ़ाता है।
चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का स्वाभिमान और अस्मिता की रक्षा के लिए जौहर भारत भर में गूंजी एक अमरकथा है। तैमूर महमूद गजनवी, मोहम्मद गोरी के समान ही आततायी आक्रमणकर्ता अलाउद्दीन खिलजी अहमद के सामने झुकने के बजाय जौहर कर स्वाभिमान बचाने वाली रानी पद्मावती को असक्ताभाव में दिखाने का प्रयास का जितना विरोध हो रहा है वह कम है। कम इसलिए है क्योंकि कुछ कलात्मकता का स्वतंत्रता का पक्षधर बनकर जिन लोगों ने हिन्दू देवी-देवताओं का अश्लील चित्र बनाने वाले मकबूल फिदा हुसैन का जैसा विरोध करना चाहिए था, वैसा नहीं किया यद्यपि हुसैन को महान कलाकार साबित करने वालों की मुखरता के खिलाफ कुछ लोगों के खड़े हो जाने मात्र से उन्हें भारत वापसी का साहस नहीं हुआ लेकिन अभारतीयता के प्रति ऐसे अनुरागियों के हौसले अभी पस्त नहीं हुए हैं। भारतीयत्व के पुनर्जागरण के खिलाफ सम्मान वापसी का अभियान चलाकर असफल होने और भारतीय जनमानस में पुनर्जागरण के प्रति बढ़ती अनुकूलता ने उन्हें विनष्ट होने वालों के समान विक्षिप्त बना दिया है। वे जहां अपने वस्त्र फाड़ रहे हैं वहीं पत्थरबाजी पर भी उतारू हंै, पद्मावती का मामला उनके अपने वस्त्र फाड़ने के ही समान है और रजिया के योगाभ्यास में आस्था पर कठमुल्लों के हमले पर चुप रहना पत्थरबाजी को प्रोत्साहन प्रदान कर रहा है। लेकिन यह पहला अवसर नहीं है। अभारतीयत्व के प्रति आस्थावान गिरोह जैसे तब भी चुप रहा जब हालैण्ड की एक पत्रिका में मोहम्मद साहब का कार्टून बनाने या म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों को उद्वासित करने पर विभिन्न नारों में इस्लाम मतावलम्बियों ने आगजनी या तोड़फोड़ की थी। भारत के टुकड़े टुकड़े करने का नारा लगाने वालों के समर्थन और कश्मीर के अलगाववादियों से सहमति के आचरण के कारण यद्यपि ऐसे तत्वों का समाज में प्रभाव कम हुआ है तथापि अपनी वाचालता के बल पर प्रचार माध्यमों में अभी भी उनका न केवल अस्तित्व बना हुआ है, बल्कि संजीवनी भी मिल रही है। योगाभ्यास के प्रति इस्लामी देशों में बढ़ती अनुकूलता और कठमुल्लापन के खिलाफ जागृति की चर्चा करने पर भारत का मुसलमान प्रतिकूल बना रहे इसलिए कुछ जागरूकता का दावा करने वाले मौलाना मौलवियों का सम्यक बनकर खड़े हो रहे लोगों के कारण ही भारत में जो सनातन सर्वधर्म समभाव का अवधारणा से युक्त है सेक्युलरवादियों को हीनभावना ग्रस्त मानने पर विवश हो रहा है।
भारतीय मात्र मर्यादाओं के विपरीत दृश्य दिखाना सिनेमाजगत में आम चलन बन चुका है। अब पूर्वजों को अपमानित करने वाली फिल्मों की भरमार होने लगी है। प्राय: प्रत्येक चलचित्र में एक ऐसा मुसलमान चरित्र जरूर रहता है जो मैं मुसलमान हूं इसलिए ईमानदार और वफादार हूं का दावा करता हुआ जरूर दिखाया जाता है। मजहब, सम्प्रदाय के आधार पर ऐसा दावा का दृश्य किसी अन्य समुदाय के लिए किसी में भी निर्मित नहीं किया जाता। जो लोग पद्मावती फिल्म विरोध पर कानून की अवहेलना करने का तर्क दे रहे हैं उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन तलाक के सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को न मानने का फतवा देने वालों के खिलाफ मुंह नहीं खोला और न ही वे रजिया की नागरिक स्वतंत्रता के अधिकार के पक्ष में खड़े हुए हैं। ऐसे लोगों द्वारा संविधान, न्यायालय या नागरिक स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता का दावा मसलहतन होने के कारण समाज को ग्राह्य नहीं है उनमें बढ़ती विक्षिपत्ता का यही कारण है। इस विक्षिप्तता से संभावित क्षति को बचाने के लिए जहां भारतीयत्व के प्रति आस्था को सुदृढ़ बनाने वाले उपायों को प्रखरता के साथ अपनाए तो रखना आवश्यक है कहीं इस विक्षिप्तता से उत्तेजित न होकर संयम भी बनाए रखना जरूरी है। वे अपने कपड़े स्वयं ही फाड़कर नंगे हो रहे हैं। भारतीय संस्कृति और संस्कार किसी उपासना पद्धति पर आधारित किसी के प्रति दुराग्रह पर निर्भर नहीं है। वह नदी के प्रवाह के समान है जैसा कि कारसेवक संघ के अध्यक्ष आजम खां ने पिछले दिनों अयोध्या में रामजन्मभूमि पर मंदिर बनाये जाने का समर्थन करते हुए कहा है कि हमने उपासना पद्धति बदली है पूर्वज और संस्कृति नहीं बदले हैं, का भाव जागृत करने के प्रयास की आवश्यकता है। तब न मकबूल फिदा कोई चित्रकार कुस्तित अभियक्ति वाले चित्र बना सकेगा न मान्य पूर्वजों को हीनतायुक्त दिखाने के लिए पद्मावती जैसे चलचित्र बनाने का साहस होगा और न योगाभ्यास से तन और मन दोनों को स्वस्थ बनाए रखने के उपाय योगाभ्यास के प्रति किसी आस्थावान को धमकी देने का कोई साहस कर सकेगा। इसके लिए आवश्यक है कि कतिपय भौतिक सुखों में अभाव का भयादोहन के प्रयास की असलियत और नीयत समझ के समाज ने जिस दिशा में कदम बढ़ाया है उनके मार्ग में आने वाली इन बाधाओं को दूर करने के लिए मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम मर्यादित आचरण का अनुशरण न भय न दैन्य अपनी परंपराओं के स्वाभिमान के साथ खड़े होकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं यह पिछले कुछ वर्षों में स्पष्ट हो चुका है। इस पथ से विरत करने वालों के मंसूबों को असफल करने के लिए हमें रजिया के साथ और पद्मावती चलचित्र के खिलाफ खड़ा होना चाहिए। भारत पूर्वजों का अपमान नहीं सहेगा।