इन्फोसिस के नारायणमूर्ति को पछाड़ घड़ी डिटर्जेंट के मालिक दिग्गज उद्योगपतियों से निकले आगे

इन्फोसिस के नारायणमूर्ति को पछाड़ घड़ी डिटर्जेंट के मालिक दिग्गज उद्योगपतियों से निकले आगे
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कानपुर। प्रख्यात मैग्जीन फोर्ब्स इंडिया ने भारत के शीर्ष 100 अमीरों में घड़ी समूह के निदेशक मुरली बाबू को भी शामिल किया है जिन्होंने कानपुर का नाम रोशन कर दिया। प्रख्यात मैग्जीन फोर्ब्स इंडिया के ताजा अंक में भारत के शीर्ष 100 सबसे अमीर उद्योगपतियों में कानपुर शहर के मुरलीधर और बिमल ज्ञानचंदानी 75वें पायदान पर खड़े हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो कानपुर के दोनों दिग्गज देश के 75वें सबसे अमीर शख्स हैं। अपनी मेहनत और जबर्दस्त रणनीति के दम पर उन्होंने आनंद महिन्द्रा और इंफोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति को भी पीछे छोड़ दिया है।

मुरली और बिमल बाबू डिटर्जेन्ट ब्रांड घड़ी, नमस्ते इंडिया, रेड चीफ के मुखिया हैं। 5500 करोड़ रुपये का घड़ी समूह खड़ा करने वाले मुरली बाबू को ‘डिटर्जेन्ट किंग’ कहा जाता है। यह उपलब्धि सिर्फ कानपुर के लिए ही नहीं बल्कि पूरे यूपी के लिए गौरव का विषय है क्योंकि फोर्ब्स में नाम दर्ज कराने वाले दोनों भाई उत्तर भारत में एकमात्र हैं। गर्व का विषय यह भी है कि फोर्ब्स ने उन्हें ‘सेल्फ मेड पर्सन’ से नवाजा है। यानी ऐसी शख्सियत जिसने जमीन से आसमान तक का सफर अपने दम पर तय किया है।

दो साल में 48 अरब रुपये बढ़ गई नेटवर्थ

नोटबंदी, जीएसटी के बावजूद दो साल में उनकी नेटवर्थ में लगभग 48 अरब का इजाहै। वर्ष 2015 में उनकी नेटवर्थ 1.22 अरब डालर (80 अरब रुपये लगभग) थी। वर्ष 2017 में फोर्ब्स के मुताबिक उनकी नेटवर्थ 1.96 अरब डालर (128 अरब रुपये लगभग) हो गई। इतना ही नहीं, फोर्ब्स की सूची में उन्होंने तीन पायदान की छलांग भी लगाई है। उनके समूह की रफ्तार का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मात्र दो साल में कारोबारी साम्राज्य 4000 करोड़ रुपये से बढ़कर 5500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा हो गया है। मुरलीबाबू के बेटे मनोज ज्ञानचंदानी प्रोडक्ट, दूसरे बेटे राहुल और बिमल ज्ञानचंदानी के बेटे रोहित ऑपरेशंस और मार्केटिंग की जिम्मेदारी संभालते हैं।

दिग्गज उद्योगपतियों से निकले आगे

सफलता की उड़ान किसे कहते हैं, ये कोई घड़ी समूह से सीखे। फोर्ब्स की फेहरिस्त में दिग्गज उद्योगपति आनंद महिन्द्रा और इंफोसिस के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति का नाम मुरली बाबू से नीचे आ गया है। अमीरों की फेहरिस्त में नंदन नीलकेणि, इमामी समूह के अग्रवाल बंधु, यस बैंक के राना कपूर और मैनकाइंड फार्मा के रमेश जुनेजा सहित तमाम बड़े नाम भी नीचे खिसक गए हैं। पहले नारायणमूर्ति मुरली बाबू से 24 पायदान ऊपर थे। आनंद महिन्द्रा भी उनसे चार रैंक ऊपर थे।

ढाई दशक में खड़ा किया घड़ी का साम्राज्य

मुरलीबाबू और बिमल ज्ञानचंदानी ने 1988 में घड़ी साबुन की नींव डाली थी। घड़ी उस दौर में बाजार में उतरा, जब सिर्फ और निरमा का एकछत्र राज था। 2012 में घड़ी ने अपने सेगमेंट के टॉप ब्रांड व्हील को शिकस्त दे दी। हिन्दुस्तान लीवर के इस दिग्गज ब्रांड को पछाड़ने के बाद घड़ी डिटर्जेन्ट बाजार का बादशाह बन गया। पहली उनकी कंपनी का नाम श्री महादेव सोप इंडस्ट्री प्राइवेट लिमिटेड था, जिसे 2005 में बदलकर रोहित सरफेंक्टस प्राइवेट लिमिटेड का जन्म हुआ। डिटर्जेन्ट पाउडर की 8 लाख मीट्रिक टन सालाना उत्पादन क्षमता है, जो देश में किसी भी डिटर्जेन्ट कंपनी की तुलना में सबसे ज्यादा है। समूह ने होमकेयर बाजार में भी कदम रख दिए हैं। हरिद्वार में इसकी यूनिट स्थापित हो गई है। जहां शैम्पू, हेयर आयल, टूथपेस्ट, शेविंग क्रीम, हैंड वाश, फ्लोर क्लीनर और टॉयलेट क्लीनर सहित दर्जनों उत्पाद बन रहे हैं।

रणनीति आई काम

1970 के दशक में निरमा ने सस्ते डिटर्जेन्ट के रूप में प्रचार की आक्रामक रणनीति बनाई, जो हिट हो गई। 20 साल तक निरमा का इस सेगमेंट पर एकछत्र कब्जा कहा, जिसके अभेद्य किले को उसी के नुस्खे से घड़ी ने तोड़ा। सफलता के लिए पैसा ही हो, जरूरी नहीं। हिन्दुस्तान लीवर और प्रॉक्टर एंड गैम्बल जैसे मल्टीनेशनल समूह के सामने घड़ी कुछ नहीं था। इसलिए रणनीति के तहत घड़ी ने यूपी की मार्केट पर ही फोकस किया। देश की कुल मांग का 18 प्रतिशत यूपी से आता है, इसलिए खामोशी के साथ घड़ी ने पहले यूपी का किला फतह किया, फिर मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार में जंग जीती।

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