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जगदगुरु श्री निम्बार्काचार्य श्री ‘श्रीजी’ महाराज का गोलोकगमन

जगदगुरु श्री निम्बार्काचार्य श्री ‘श्रीजी’ महाराज का गोलोकगमन
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*ब्रजवृंदावन सहित देशभर के वैष्णव संप्रदायों में शोक की लहर
*सलेमाबाद, किशनगढ़ में रविवार को होगा अंतिम संस्कार

किशनगढ़।
अखिल भारतीय निंबार्कपीठ, सलेमाबाद के पीठाधीश्वर व जगदगुरु श्री निम्बार्काचार्य पीठ के वर्तमान आचार्य श्री राधासर्वेश्वरशरण देवाचार्य ‘श्रीजी महाराज’ का शनिवार को गोलोकधाम में गमन हो गया। उनके निधन के समाचार से समस्त वैष्णव सम्प्रदायों, भक्तों, राजनीतिक, सामाजिक व ब्रजमंडल के संतगणांे में शोक की लहर दौड़ गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार शनिवार प्रातः दैनिक कार्य से निवृत्त होने के बाद अचानक श्रीजी महाराज की तबीयत बिगड़ गई। युवाचार्य श्यामशरण महाराज सहित उनके शिष्यों ने तुरंत किशनगढ़ के मार्बल सिटी अस्पताल पहुंचाया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
श्रीजी महाराज कई दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। खून की कमी और अल्सर की समस्या के चलते कई दिनों से वह पीठ से बाहर नहीं निकले थे। श्रीजी महाराज के देवलोक गमन की सूचना मिलते ही देशभर में शोक की लहर दौड़ गई। भारतवर्ष के सभी शंकराचार्यो, वैष्णवाचार्यो और निंबार्कपीठ के जुड़े भक्त उनके अंतिम दर्शनों के लिए सलेमाबाद स्थित निंबार्कधाम में उमड़ने लगे हैं। देशभर से साधु संत, विभिन्न पीठों के पीठाधीश्वर सलेमाबाद के लिए रवाना हो गए। श्रीजी महाराज की पार्थिव देह को भक्तों, श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए रखा गया है। रविवार को श्रीजी महाराज का वेदोक्त विधि से अंतिम संस्कार किया जाएगा। मुखाग्नि सलेमाबाद पीठ के उत्तराधिकारी युवाचार्य श्यामशरण महाराज देंगे।
इधर श्रीजी महाराज के निधन की खबर के बाद बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने के चलते सुरक्षा की दृष्टि से भारी पुलिस बल निंबार्क तीर्थ में तैनात किया गया। पुलिस लाइन अजमेर सहित कई थानों की पुलिस को सलेमाबाद भेजा गया। श्रीजी महाराज का ब्रज-वृंदावन से विशेष लगाव था। वृंदावन सीमा पर आने पर वह अपनी पादुकाओं को त्याग दिया करते थे। वृंदावन में ही दवानल कुंड के आश्रम में उन्होंने वैदिक संस्कृति की शिक्षा प्राप्त की थी। कुंभ का अवसर हो या किसी संत का निमंत्रण श्रीजी महाराज ब्रजप्रवास को आतुर रहते थे। उनके निधन से ब्रज की विरक्त संत परंपरा के क्षेत्र में बड़ी हानि हुई है।
श्रीजी महाराज का जीवन दर्शन
श्रीजी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1986 को वैशाख शुल्क प्रतिप्रदा 10 मई 1929 को सलेमाबाद गांव के श्री रामनाथ जी इंदौरिया गौड़ ब्राह्मण तथा श्रीमति सोनी बाई (स्वर्णलता) के घर हुआ। जन्म नक्षत्र के अनुसार उनका नाम उत्तमचंद रखा गया परंतु एक दिन एक महात्मा उनके घर दीक्षा लेने आए। उनकी माताजी की गोद में श्रीजी महाराज को देखकर महात्मा ने कहा कि मैया तेरा ये बालक तो साक्षात रतन है। इसके बाद घरवालों ने उत्तमचंद की बजाय रतनलाल नाम रख लिया। सात जुलाई 1940 रविवार को 11 वर्ष एक माह 28 दिन की आयु में वैष्णवी दीक्षा आचार्य श्री बालकृष्ण शरण देवाचार्य से ली। वैष्णवी दीक्षा के बाद इनका नाम राधा सर्वेश्वरशरण पड़ा और युवराज पद पर आसीन हुए। विक्रम संवत 2000 में पांच जून 1943 में बालकृष्ण शरण देवाचार्य जी के देवलोक गमन पर आचार्य पीठ पर आरूढ़ हुए। 1944 में विक्रम संवत् 2001 मातृ 15 वर्ष की आयु में कुरुक्षेत्र में आयोजित सूर्य सहस्त्र रश्मि महायज्ञ सम्मेलन के अध्यक्ष बने।
भारतीय संस्कृति के क्षेत्र में अनेंको उल्लेखनीय कार्य
श्रीजी महाराज ने देशभर में कईं संस्कृति विद्यालय, महाविद्यालयों की स्थापना की थी। शांत और सरल स्वभाव के श्रीजी महाराज ने देशभर में जगह-जगह मंदिर और आश्रम बनवाए।1975 में प्रथम अखिल भारतीय विराट् धर्म सम्मेलन, 1993में अद्र्धशताब्दी पाटोत्सव स्वर्ण जयन्ती महोत्सव, 2004 में विशाल धर्म सम्मेलन आदि।
35 से अधिक पुस्तकों का किया लेखन
श्रीजी महाराज ने 35 पुस्तकों का लेखन किया। वेद, उपनिषद, सांख्य, ज्योतिष, भारतीय संगीत की विभिन्न राग-रागिनियों, दर्शन आदि उनका विशेष वैदुष्य था। उन्होंने युग्मतत्त्वप्रकाशिका नामक संस्कृत व्याख्या 2. श्रीयुगलगीतिशतकम् 3. उपदेश दर्शन 4. श्रीसर्वेश्वर सुधा बिन्दु 5. श्रीस्तवरत्नाञ्जलि 6. श्रीराधामाधवशतकम् 7. श्रीनिकुञ्ज सौरभम् 8. हिन्दू संघटन 9. भारत-भारती-वैभवम् 10. श्रीयुगलस्तवविंशतिरू 11. श्रीजानकीवल्लभस्तव 12. . श्रीहनुमन्महिमाष्टकम् 13. श्रीनिम्बार्कगोपीजनवल्लभाष्टकम्
14. भारतकल्पतरु 15. श्रीनिम्बार्कस्तवार्चनम् 16. विवेकवल्ली 17. नवनीतसुधा 18. श्रीसर्वेश्वरशतकम् 19. श्रीराधाशतकम् 20. श्रीनिम्बार्कचरितम् 21. श्रीवृन्दावनसौरभम् 22. श्रीराधासर्वेश्वरमंजरी 23. श्रीमाधवप्रपाष्टकम् 24. छात्र-विवेकदर्शन 25. भारत-वीर-गौरव 26. श्रीराधासर्वेश्वरालोक 27. श्रीपरशुराम-स्तवावली 28. श्रीराधा-राधना 29. मन्त्रराजभावार्थ-दीपिका 30. आचार्य पंचायतनस्तवनम् 31. राधामाधवरसविलास (महाकाव्य) 32. गोेशतकम् 33. सीतारामस्तवादशर्रू 34. स्तवमल्लिका 35. श्रीरामस्तवावली 36. श्रीमाधवशरणापत्तिस्तोत्रम् आदि-आदि
श्रीजी विशेषण
आचार्य पीठ के आचार्यों को ’’श्रीजी’’ महाराज के नाम से सम्बोधित किया जाता है। आचार्य पीठ के आचार्यों को ’’श्रीजी’’ महाराज उच्चारित करने की परम्परा निम्बार्काचार्य श्री गोविन्दशरण देवाचार्य जी के समय मे प्रचलित हुई थी, क्योंकि एक बार जब आप श्री की पधरावणी जयपुर महाराजा के यहाँ हुई थी। तब एक दिन आचार्य श्री सदुपदेश के लिये रनिवास में विराज रहे थे। उस समय महल में केवल रानियाँ एवं दासियाँ थी। वहाँ पर आचार्य श्री के अतिरिक्त अन्य कोई भी पुरुष नहीं था। उसी समय किसी विरोधी ने जयपुर महाराजा के कान भरते हुये कहा ’’महाराज रनिवास में आचार्य श्री के अतिरिक्त अन्य कोई भी पुरुष नहीं है। वहाँ पर केवल रानियाँ एवं दासियाँ ही है।’’ परिणाम स्वरूप जब सशंकित महाराजा ने महल में जाकर देखा तो वे आश्चर्य चकित रह गये। वहाँ महाराजा ने स्वयं अपनी आँखों से देखा कि आचार्य श्री राधिकाजी (श्रीजी) स्वरूप में विराज रहें है। यह देखकर जयपुर महाराजा अपने आप बहुत लज्जित हुये और आचार्य श्री को समस्त बात बताते हुये क्षमा याचना करने लगे। आचार्य श्री ने महाराज को क्षमा करते प्रभु भक्ति प्राप्त होने का आशीर्वाद प्रदान किया। उपरोक्त घटना के पश्चात इस पीठ के आचार्य गणों को सम्माननीय ’’श्रीजी विशेषण’’ से सम्बोधित किया जाने लगा।

Updated : 15 Jan 2017 12:00 AM GMT
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