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धर्म और संस्कृति के आधार पर राष्ट्र बना भारत: मुक्तिबोध

धर्म और संस्कृति के आधार पर राष्ट्र बना भारत: मुक्तिबोध
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'राष्ट्र से राष्ट्रवाद तक' विषय पर हुआ व्याख्यान

ग्वालियर। भारत और विश्व के अन्य देशों के राष्ट्र बनने में बड़ा अंतर है। भारत अपनी धर्म और संस्कृति के आधार पर राष्ट्र बना है, जबकि दुनिया के तमाम देश भाषा, पंथ, सम्प्रदाय, एक समान पूजा पद्धति और परिस्थितियों के आधार पर राष्ट्र बने। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मध्य भारत के प्रांत सह कार्यवाह हेमंत जी मुक्तिबोध ने राष्ट्रोत्थान न्यास द्वारा हमारी सांस्कृतिक अस्मिता से जुड़े विषयों पर आयोजित तीन दिवसीय ज्ञान प्रबोधिनी व्याख्यानमाला के पहले दिन शनिवार को तराणेकर सभागार, राष्ट्रोत्थान न्यास भवन, नई सड़क में 'राष्ट्र से राष्ट्रवाद तक' विषय पर मुख्य वक्ता की आसंदी से अपने व्याख्यान में कही।

श्री मुक्तिबोध ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को जब भारत को स्वतंत्रता मिली। उसके बाद बड़ी चूक हुई। हमने राष्ट्रीय पशु, राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय ध्वज आदि तो तय किए, लेकिन राष्ट्र और राष्ट्रभाषा अपरिभाषित रह गई और भारत को नया नाम इण्डिया दे दिया गया। यानी जो भारत था, उसे राज्यों का एक समूह बता दिया। इसके साथ ही राष्ट्र, राष्ट्रवाद, राष्ट्रीयता को लेकर अनेक भ्रांतियां पैदा की गईं। ये जो गड़बड़ी हुई, उसे हम लोग पिछले 70 सालों से भोगते आ रहे हैं। इससे पहले अतिथियों द्वारा कार्यक्रम का शुभारंभ मां भारती के समक्ष दीप प्रज्वलन कर किया गया। तत्पश्चात राष्ट्रोत्थान न्यास के अध्यक्ष प्रो.राजेन्द्र बांदिल ने न्यास की गतिविधियों तथा व्याख्यान माला के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर मंच पर राष्ट्रोत्थान न्यास के न्यासी त्र्यम्बक केलकर भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कुमार संजीव ने किया, जबकि आभार प्रदर्शन बसंत कुंटे ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में शहर के गणमान्य नागरिक एवं विद्यालयों और महाविद्यालयों के छात्र-छात्राएं भी उपस्थित थे।

हो रहा है हिन्दुओं को बांटने का प्रयास

मुख्य वक्ता श्री मुक्तिबोध ने कहा कि समाज में असहिष्णुता और आर्यों को बाहरी बताकर हिन्दुओं को बांटने तथा भारत के इतिहास को विकृत करने के प्रयास हो रहे हैं, जबकि भारत के इतिहास में असहिष्णुता का एक भी उदाहरण नहीं मिलता। आर्य बाहर से नहीं आए थे, वे यहीं के थे, लेकिन आर्यों को लेकर व्यापक स्तर पर झूठ फैलाने का प्रयास किया जा रहा है। श्री मुक्तिबोध ने कहा कि हमें बाहर का बताने वालों ने बाहर के लोगों के साथ क्या किया? उन्हें अपने गिरेवान में झांकना चाहिए। श्री मुक्तिबोध ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर भी सवाल उठाए और कहा कि ऋषि अरविंद और महात्मा गांधी ने जिस शिक्षा की अवधारण की थी, वैसी शिक्षा पद्धति विकसित नहीं की गई। यह इसलिए हुआ क्योंकि आजादी के बाद कम्युनिस्ट विचारधारा के नूर हसन 12 सालों तक भारत के शिक्षा मंत्री रहे। उन्होंने जो शिक्षा पद्धति विकसित की, उसमें एक भी बिन्दु ऐसा नहीं है, जिससे बच्चों और युवाओं में राष्ट्र भाव की भावना जागृत हो।

आज 'हिन्दुत्व-एक वैज्ञानिक जीवन दृष्टि' विषय पर होगा व्याख्यान
राष्ट्रोत्थान न्यास द्वारा हमारी सांस्कृतिक अस्मिता से जुड़े विषयों पर आयोजित तीन दिवसीय ज्ञान प्रबोधिनी व्याख्यानमाला के द्वितीय दिवस 25 सितम्बर, रविवार को शाम छह बजे से 'हिन्दुत्व-एक वैज्ञानिक जीवन दृष्टिÓ विषय पर व्याख्यान होगा, जिसमें मुख्य वक्ता श्री भगवती प्रकाश शर्मा, कुलपति, पेसीफिक विश्वविद्यालय, उदयपुर होंगे।

Updated : 25 Sep 2016 12:00 AM GMT
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