पारिवारिक समाजवाद के कुनबे में जंग

*संजीव पांडेय
समाजवादी पार्टी की जंग ने लोगों को हैरान कर दिया है। वैसे क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में कुनबे की लड़ाई आम बात है। डीएमके, शिवसेना से लेकर अकाली दल इसके उदाहरण हैं। लेकिन समाजवादी पार्टी की जंग में नुकसान ज्यादा होगा। राज ठाकरे भी बाहर गए खत्म होने के कगार पर है। वहीं अकाली दल में मनप्रीत बादल बाहर गए और बाद में कांग्रेस की शरण में चले गए। लेकिन शिवपाल अखिलेश की जंग इतनी जल्दी समाप्त नहीं होगी। आर्थिक रूप से मजबूत दोनों नेता जंग को लंबा ले जाएंगे। शिवपाल लंबी राजनीति करेंगे, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन सबसे ज्यादा कष्ट मुलायम सिंह को है। भाई और बेटे की लड़ाई में वो धर्मसंकट में फंस गए है। चुनाव से ठीक पहले नुकसान की संभावना है।
मुलायम सिंह अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। सिर्फ पारिवारिक कुनबे को बढ़ाने वाले मुलायम को अब पारिवारिक कुनबा ही कष्ट दे रहा है। मुलायम सिंह को राजनीति के गलियारे में स्वार्थी नेता माना जाता रहा। उन्होंने अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए अपने राजनीतिक गुरूओं को धोखा दिया। उनसे धोखा खाने वालों में हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे लोग शामिल हैं। यही नहीं मुलायम सिंह को वीपी सिंह के प्रकोप से बचाने वाले चंद्रशेखर को भी मुलायम सिंह ने धोखा दिया। यही नहीं कम्युनिस्टों से राजनीतिक संरक्षण लेने वाले मुलायम सिंह ने एक समय में सीपीएम का साथ भी छोड़ा। राजनीति में हित साधने के लिए भाजपा से सांठगांठ के आरोप भी मुलायम सिंह पर लगे। यही नहीं समय-समय पर कांग्रेस को झटका भी दिया तो कांग्रेस को सहयोग भी दिया। जहां सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने से रोका वहीं परमाणु करार पर अपने निकट के सहयोगी कम्युनिस्टों को छोड़ दिया। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए मात्र कुछ दिन के लिए ममता बनर्जी से गठबंधन किया और बाद में कांग्रेस के पाले में चले गए।
आज नहीं तो कल मुलायम सिंह की पार्टी बंटेगी। दरअसल अखिलेश यादव पार्टी पर पूरी तरह से कब्जा चाहते हैं। शिवपाल यादव इसमें बाधा हैं। मुलायम का परिवार दो खेमे में बंट गया। चचेरे भाई रामगोपाल शिवपाल के विरोधी हंै। इसलिए अखिलेश के समर्थक हैं। लेकिन राजनीति के जानकार बताते हैं कि अखिलेश मौके पर रामगोपाल को भी किनारे लगाएंगे। क्योंकि रामगोपाल अखिलेश के साथ इसलिए हंै कि वो शिवपाल के विरोधी हैं। शिवपाल और रामगोपाल के बीच पार्टी में वर्चस्व को लेकर लड़ाई है। मथुरा में जवाहर बाग कांड की पटकथा के बीच शिवपाल और रामगोपाल में आपसी तनाव था। जयगुरूदेव के उत्तराधिकार के विवाद में दोनों भाई दखल दे रहे थे। मुख्य मंदिर पर शिवपाल के करीबी का कब्जा हो गया था। वैसे में रामगोपाल पर जवाहरबाग वाले गुट को संरक्षण देने का आरोप था। मौके पर जब विवाद हुआ तो मामला सामने आया। बताया जाता है कि मथुरा के अधिकारियों पर रामगोपाल का दबाव था।
राजनीतिक रणनीति को लेकर शिवपाल और अखिलेश में विवाद है। अखिलेश अब साफ सुथरी छवि को लेकर आगे चलना चाहते हैं। अखिलेश के सलाहकारों ने अखिलेश के दिमाग में भर दिया है कि शिवपाल के लोगों के कारण पार्टी की बदनामी काफी हुई है। भ्रष्ट अधिकारियों को शिवपाल के लोग संरक्षण देते हैं। यही नहीं राज्य में हर जिलों में सक्रिय भूमाफिया को भी शिवपाल का संरक्षण है। यही कारण था कि मुख्तार अंसारी को लेकर अखिलेश यादव ने स्टैंड ले लिया। शिवपाल मुख्तार अंसारी को पार्टी में लाना चाहते थे। अखिलेश ने विरोध किया। वो पूरे प्रदेश में संदेश देना चाहते थे कि वे माफिया के खिलाफ हैं। वैसे पिछले विधानसभा चुनावों के ठीक पहले डीपी यादव का विरोध कर अखिलेश ने संदेश दिया था कि वो उस राजनीति में विश्वास नहीं रखते जो उनके पिता मुलायम सिंह और शिवपाल रखते हैं। निश्चित तौर पर इससे अखिलेश की छवि में सुधार हुआ। विरोधी जातियां भी इस बात को दबी जुबान स्वीकार करती रही कि अखिलेश यादव मुलायम और शिवपाल की राजनीति में विश्वास नहीं रखते।
समाजवादी पार्टी की लड़ाई का सीधा असर उत्तर प्रदेश में राजनीति कर रहे भाजपा, कांग्रेस और बसपा पर पड़ेगा। इससे तीनों दलों के केलकुलेशन में फर्क पड़ेगा। इस लड़ाई से जहां सीधे तौर पर फायदा बसपा को होगा, वहीं भाजपा नुकसान में जाएगी। दरअसल भाजपा को सीधा लाभ तब होगा जब मुस्लिम मतदाता कन्फ्यूज हो जाएं। अगड़ी जातियों में कोई कन्फ्यूजन न रहे। लेकिन समाजवादी पार्टी की लड़ाई बढ़ी और टूट हुई तो मुस्लिमों का कन्फ्यूजन दूर हो जाएगा। वो एक साथ समाजवादी पार्टी को छोड़ बसपा की तरफ जाएंगे। क्योंकि दलित मुस्लिम समीकरण ही यादव मुस्लिम समीकरण के अभाव में भाजपा को हराने में कामयाब होगा। वहीं अगड़ी जातियां अगर कांग्रेस की तरफ झुकी तो निश्चित तौर पर भाजपा को नुकसान होगा। भाजपा चाहती है कि उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के बीच यह संकेत जाए कि लड़ाई समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच है।
दरअसल समाजवादी पार्टी की जंग में अमर सिंह की भूमिका पर सवाल उठा है। अमर सिंह जैसे ही पार्टी में वापस आए परिवार में जंग तेज हुई। चाचा शिवपाल और भतीजा अखिलेश आमने-सामने आ गए। अखिलेश ने अमर सिंह पर भी हमला बोला है। अमर सिंह को परिवार में कलह बढ़ाने वाला माना जाता है। अमिताभ बच्चन के परिवार में कलह बढ़ाने का आरोप अमर सिंह पर लगा। मुलायम सिंह की पार्टी में उनके बढ़ते वर्चस्व के बाद उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया। रामगोपाल यादव और आजम खान उनके धुर विरोधी थे। जब अमर सिंह दुबारा पार्टी में लौटे तब भी आजम खान और रामगोपाल ने विरोध किया था। आज भी फिर अमर सिंह निशाने पर हैं। मुलायम सिंह को सभी संभालने की कोशिश कर रहे है। लेकिन उनके खराब स्वास्थ्य ने उन्हें मजबूर किया है। समय-समय पर उन्हें सीबीआई का भी भय दिखाया जाता है।