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यह हमारी धार्मिक मर्यादा है

यह हमारी धार्मिक मर्यादा है

सामान्य बोलचाल की भाषा में हम और हमारा समाज धार्मिक महानुभावों की बातों व उपदेशों को जीवन में उतारने की लम्बी चौड़ी बातें करते हैं, लेकिन यथार्थ में वास्तविकता इससे कोसों दूर नजर आती है। धार्मिक मान्यताओं, रीति रिवाजों और महानुभावों की बातों को ही हम विवाद का विषय बनाने से नहीं चूकते। हाल ही में उज्जैन के श्वेताम्बर जैन मंदिर के ट्रस्ट ने लड़कियों को जीन्स स्कर्ट में मंदिर में नहीं भेजे जाने का निवेदन समाज से क्या किया, जैसे भूचाल आ गया। इस पर तमाम विवाद खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। महिलाओं की स्वतंत्रता हर क्षेत्र में जायज है और इससे हम भी इंकार नहीं करते, लेकिन बेवजह किसी भी बात पर विवाद खड़ा करना और उसे तूल देना किसी भी लिहाज से अच्छा नहीं कहा जा सकता।

अपनी संस्कृति पर अडिग रहकर ही हम अपनी राष्ट्रीय अस्मिता को सुरक्षित रख सकते हैं। भारत का सांस्कृतिक प्रवाह लाखों वर्षों का होने से समय के अनुसार बदलाव को हमने स्वीकार किया है, हमारी मर्यादाओं के मूल्य भी नए सोच के साथ स्थापित होते रहे। यह भी सच्चाई है कि भारत की दुनिया में विशेष सांस्कृतिक पहचान है, दुनिया के लोग भारत की संस्कृति और आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करने की ओर आकर्षित भी हो रहे हैं। इसके साथ यह भी सही है कि अन्य देशों के भौतिक विकास की दौड़ में हम भी दिखाई दें, लेकिन हमारी सांस्कृतिक पहचान को स्थिर रखना हम सबका दायित्व है, क्योंकि यह पहचान ही हमें दुनिया के बीच विशेष बनाती है। कौन क्या पहने, कौन किस प्रकार का भोजन करे, यह व्यक्ति की मनोवृत्ति का सवाल है। जो हमारे आस्था के केन्द्र मंदिर, गुरुद्वारा हंै, वहां जाने की मर्यादा हमारे धर्म-संस्कृति के व्याख्याता साधु-संतों ने स्थापित की है।

इसी से प्रेरित होकर उज्जैन के श्वेताम्बर जैन मंदिर के ट्रस्ट ने मंदिर में आने वाली माता-बहनों से निवेदन किया है, वे लड़कियों को जीन्स स्कर्ट में मंदिर में नहीं भेजें, भारतीय संस्कृति के परिधान साड़ी या सलवार-कुर्ती पहनकर ही मंदिर में आएं। यह निर्देश नहीं निवेदन ट्रस्ट की ओर से जारी हुआ। इस बारे में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लेकर तर्क-कुतर्क के साथ नियमों का संदर्भ भी दिया जा सकता है। दक्षिण के कई मंदिरों में भी भारतीय परिधान से ही महिला-पुरुष दर्शन करने जाते हैं। गुरुद्वारों में सिर पर रुमाल रखकर ही जाना होता है। यह हमारी धार्मिक परम्परा से जुड़ा सवाल है जिससे नियम नहीं, हमारी धार्मिक मर्यादा, परम्परा और श्रद्धा है।

Updated : 1 Sep 2016 12:00 AM GMT
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