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राजनीति में भी है भ्रष्टाचार

राजनीति में भी है भ्रष्टाचार

*जयकृष्ण गौड़

हाल ही में समन्वय समिति की बैठक में अनुषांगिक संगठनों के प्रमुख पदाधिकारियों ने भाग लिया। इसमें रा.स्व. संघ के सरकार्यवाह श्री सुरेश जी जोशी (भैयाजी जोशी) एवं सह सरकार्यवाह श्री कृष्णपाल जी ने संबोधित किया। इस बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं भाजपा संगठन के प्रमुख पदाधिकारियों के साथ मंत्रीगण भी उपस्थित थे।

समन्वय बैठकों में अक्सर समाज के क्षेत्र में कार्य कर रहे संगठनों का कार्य विवरण प्रस्तुत किया जाता है। कहीं कोई कमी है तो उसके निराकरण की पहल होती है। भाजपा भी संघ की विचार भूमि पर खड़ा राजनैतिक संगठन है, उसकी गतिविधियां ठीक दिशा मेें चलें और राजनैतिक प्रदूषण से ग्रसित भाजपा न हो, इसका प्रयास संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी करते हैं। यह जाहिर है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सहित अधिकांश केन्द्रीय एवं भाजपा राज्यों के मंत्री संघ के स्वयंसेवक हैं और वे इस पहचान पर गर्व करते हैं। इसलिए राजनैतिक क्षेत्र के कार्यकर्ता भी अपने दायित्व का निर्वाह निष्ठा एवं प्रमाणिकता से करें यह अपेक्षा संघ की रहती है। समन्वय समिति की बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय एवं मप्र के वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव आदि ने ब्यूरोक्रेसी (प्रशासकीय) के भ्रष्टाचार की शिकायत की। हालांकि संघ द्वारा आहूत समन्वय समिति का प्रचार मीडिया में नहीं होता है।

जो बातें मीडिया में प्रमुखता से प्रसारित हुई, उससे यही बात सामने आई कि अफसरशाही से मंत्री स्तर राजनेता भी त्रस्त हंै। सरपंच के संदर्भ के साथ कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि बीस प्रतिशत रिश्वत लिये बिना काम नहीं होते। इससे यह वास्तविकता उजागर हो गई कि सरकारी कार्य बिना भ्रष्टाचार के नहीं होते। आये दिन पटवारी से लेकर कर्मचारी एवं अफसरों को रंगे हाथ रिश्वत लेने के समाचार मिलते है। उन पर कार्रवाई भी होती है। बिना रिश्वत के कोई सरकारी काम नहीं हो सकता। यह धारणा ही नहीं वरन् वास्तविकता है। प्रशासकीय अदला बदली भी होती है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी कई बार कह चुके हैं कि वे भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेंगे। इसके बाद भी प्रशासकीय भ्रष्टाचार पर पूरी तरह लगाम नहीं लग सकी है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा है कि प्रशासकीय बदलाव से ही विकास कार्यों को गति मिलेगी और प्रशासन में कसौटी आयेगी। केन्द्र सरकार के मंत्रियों के कार्यों की समीक्षा स्वयं प्रधानमंत्री करते हंै, इसलिए केन्द्र सरकार के कार्यों में कसावट आई है और किसी केन्द्रीय मंत्री के बारे में भ्रष्टाचार की शिकायत भी नहीं है। कांग्रेस सरकारों के पचास वर्ष के कार्यकाल और भाजपा की केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों की तुलनात्मक ढंग से समीक्षा करें तो भाजपा सरकार की स्थिति और कार्य पूर्व की कांग्रेस सरकारों से बेहतर है। विकास, कानून व्यवस्था और सुरक्षा के मामले में जो कार्य भाजपा सरकार ने किये वह कार्य पांच दशक में भी कांग्रेस कर नहीं सकी। समन्वय समिति की बैठक की जो चर्चा और शिकायत की बातें मीडिया के द्वारा सामने आई उससे यह सवाल उभरता है कि क्या केवल ब्यूरोक्रेसी में भ्रष्टाचार है क्या राजनेता दूध के धुले हैं?

यदि राजनेता पूरी तरह प्रमाणिक है तो फिर भ्रष्टाचार पर नियंत्रण क्यों नहीं हो पाता? जो मंत्री विधायक था सरपंच जनता के बीच जाते है और उनके कारनामों को भी समझती है। क्या क्षेत्र के लोग यह नहीं जानते कि विधायक सरपंच बनते ही मकान की ऊंचाई और शान शौकत बढ़ जाती हंै, चुनाव में विजय प्राप्त करते ही विधायक, सरपंच आदि के पास पंद्रह बीस लाख की चमकीली गाडिय़ां कहां से आ जाती है? वे जैसे ही आम लोगों के बीच में विशेष हो जाते है तो उनको शायद यह लगता है कि वैभव भी बढ़ाने की जिम्मेदारी आम लोगों की है। उनके कार्यक्रमों से लेकर उनकी परिक्रमा करने वालों का खर्च भी आम लोगों द्वारा ही वहन किया जाना चाहिए। चुनावी खर्च से लेकर विजयी होने के बाद के होने वाले व्यय भी क्षेत्र के लोगों पर रहता है। क्योंकि विधायक, सांसद, मंत्री जनता के विशेष सेवक हंै? यह सब जानते है कि चुनाव से ही भ्रष्टाचार प्रारंभ होता है, चाहे चुनाव आयोग द्वारा चुनावी खर्च की राशि निर्धारित हो, लेकिन सांसद, विधायकों का चुनावी खर्च कई करोड़ तक होता है। इसकी वसूली आम लोगों से की जाती है। पार्टी भी धनपतियों से करोड़ों का चंदा वसूल करती है। वे भी इस स्वार्थ से मोटा चंदा देते है कि सत्ता में आने के बाद उनके आड़े टेढ़े काम हो सकें। हमारे यहां विचित्र स्थिति है कि चाहे शिक्षा, विज्ञान का क्षेत्र हो या टेक्नोलॉजी का विषय हो, इन सब क्षेत्र में सर्वगुण सम्पन्न राजनेता को माना जाता है, उस पर वे भाषण देते है, उनकी गलत बातों का भी श्रोता विरोध इसलिए नहीं कर पाते कि वे विशेष है, अधिकार प्राप्त है।

इन दिनों राजनीति में जो आ रहे हैं, विशेषकर सत्तापक्ष की पार्टी में भर्ती होने वालों की भीड़ बढ़ रही है। राजनीति में ही उनको महत्वाकांक्षा और अपना आर्थिक वैभव बढ़ाने का अवसर मिलता है, यह धारणा नये कार्यकर्ताओं की रहती है। यह अतीत की बात हो गई कि विचारों से प्रेरित होकर किसी दल में प्रवेश करते थे। महत्वाकांक्षा, पद प्रतिष्ठा राजनीति का स्वाभाविक चरित्र हो गया है। इसमें समाज सेवा या देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा का अभाव है। इस स्थिति में बदलाव कैसे हो? इसका चिंतन सामाजिक एवं राजनैतिक नेतृत्व को करना है। रा.स्व. संघ के बारे में कहा जा सकता है कि वह देश के लिए जीने वाले देशभक्त स्वयंसेवकों को समाज जीवन के हर क्षेत्र में प्रभावी बनाना चाहता है। इसी दृष्टि से उसका अनुष्ठान गत ९१ वर्षों से चल रहा है। उसके सार्थक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। इसी संदर्भ में चाहे चिन्तन बैठक हो या समन्वय बैठक की कार्यपद्धति के माध्यम से संघ अपने स्वयंसेवकों को निष्ठा, प्रमाणिकता से अपने दायित्व के निर्वाह की ओर प्रेरित करता है। इस संदर्भ में सरकार्यवाह भैयाजी जोशी का यह कथन दिशा बोध कराता है कि संघ ने हमेशा सिद्धान्तों को आधार माना है। विचारों के अनुरूप स्वयंसेवकों का जीवन हो, यही संस्कार और अपेक्षा संघ की है।

समन्वय समिति की बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और संगठन महामंत्री रामलाल जी भी उपस्थित हुए, इसलिए इस बैठक की कार्यवाही की जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा होना आम लोगों को स्वाभाविक है। हमारा मीडिया राजनैतिक बातों पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है। यह मानकर चला जाता है कि राजनैतिक बातों को ही लोग पसंद करते है। संघ का कार्य सामाजिक है, लेकिन संघ की कार्यपद्धति में से भी राजनैतिक बातें तलाशने में मीडिया लगा रहता है। यह तलाश इसलिए अधिक हो गई कि प्रधानमंत्री अधिकांश भाजपा के मुख्यमंत्री और मंत्री संघ के स्वयंसेवक है। इस बैठक में ब्यूरोक्रेसी के भ्रष्टाचार की शिकायत की बाते मीडिया को मिली और यही सुर्खियां बन गई। हालांकि श्रेष्ठ व्यक्ति से ही आदर्श समाज बनता है, ऐसी स्थिति में ही भ्रष्टाचार की बुराई दूर हो सकती है।

लेखक-राष्ट्रवादी लेखक और वरिष्ठ पत्रकार

Updated : 30 Aug 2016 12:00 AM GMT
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