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यूनीसेफ की रिपोर्ट

यूनीसेफ की रिपोर्ट


यह सही है कि पिछले दस सालों में मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार में जितना काम हुआ है, इससे पहले कभी नहीं हुआ। कुपोषण के कलंक को खत्म करने के प्रयास हों या जन्म मृत्यु दर में अंतर को घटाने की कवायद, प्रदेश सरकार के प्रयास सराहनीय कहे जाएंगे। प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं पर केन्द्रित यूनीसेफ की ताजा रिपोर्ट इस दिशा में और प्रयासों की जरूरत की ओर इशारा करती है। बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनिसेफ द्वारा हाल में जारी दुनिया में बच्चों की स्थिति 2016 की रिपोर्ट में प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं के आंकड़े जारी किए हैं, जो बताते हैं कि इस क्षेत्र में अभी और काम किए जाने की जरूरत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में जन्म से पांच वर्ष तक की आयु के प्रति हजार बच्चों में 69 की मौत होती है। इनमें से ग्रामीण इलाकों के 75 और शहरी इलाके के 40 बच्चे होते हैं। मरने वालों में बालिकाओं की संख्या ज्यादा है। यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार 52 है। वहीं जन्म के एक माह के भीतर प्रति हजार में से 36 बच्चे मौत का शिकार हो जाते हैं। इसी तरह पांच वर्ष की आयु तक के 42.8 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं। वहीं 42 प्रतिशत बच्चे नाटे हैं। बच्चों की स्थिति तथा उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए किए जाने वाले कार्यो को बताने के लिए यूनिसेफ द्वारा दुनिया में बच्चों की स्थिति 2016 को वैश्विक रूप से जारी किया गया है। मध्यप्रदेश सहित 13 राज्यों में इस रिपोर्ट को जारी किया गया, जहां यूनिसेफ काम करती है। राजधानी भोपाल में स्कूल शिक्षा मंत्री दीपक जोशी की उपस्थिति में यूनीसेफ की तरफ से जारी किया गया। अच्छी बात यह है कि सरकार इन आंकड़ों को लेकर गंभीर है। स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी ने कहा कि राज्य सरकार समाज के हर वर्ग के कल्याण के लिए काम कर रही है, यूनिसेफ के जो आंकड़े हैं, उन्हें भी ध्यान में रखकर आगे काम करेगी। राज्य में पांच वर्ष की आयु तक के बच्चों में से 379 बच्चे हर रोज मौत का शिकार बन रहे हैं। वहीं देश में हर रोज मरने वाले बच्चों की संख्या 3287 है। हालांकि सरकार इन आंकड़ों के प्रति गंभीर है, लेकिन उसे ये भी देखना होगा कि सरकार के प्रयासों में चूक कहां और किस स्तर पर हो रही है। इस बात को भी देखना होगा कि बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर प्रदेश में चलाए जा रहे अभियान कहीं महज दिखावा तो नहीं बन गए। आम तौर पर सरकार के प्रयास अच्छी मंशा के बावजूद धरातल पर सार्थक नहीं हो पाते हैं, ऐसा व्यवस्थागत खामियों की वजह से होता है और सरकार चाहते हुए भी असफल साबित हो जाती है। प्रदेश की शिवराज सरकार हर वर्ग और सामाजिक सरोकारों के प्रति संवेदनशील है, मुख्यमंत्री की जन के बीच लोकप्रियता का एक बड़ा कारण यह भी है। उम्मीद की जानी चाहिए प्रदेश सरकार यूनीसेफ के आंकड़ों के मद्देनजर व्यवस्थागत खामियों पर भी नजर रखेगी।

Updated : 2 July 2016 12:00 AM GMT
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