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रामायणकालीन शिक्षा का लक्ष्य था व्यक्तित्व का समग्र विकास

भारतीय शिक्षण मण्डल के प्रांतीय अभ्यास वर्ग का समापन

ग्वालियर। रामायण काल में शिक्षा का लक्ष्य व्यक्तित्व का समग्र विकास करना था। जिससे श्रीराम जैसा व्यक्तित्व विकसित हो सका। समूची मानवता का त्रास हरने वाली इस शिक्षा में गुरुकुलों का विशेष महत्व था। इसके माध्यम से शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण बनाया जाता था।

यह बात शिक्षाविद् उमाशंकर पचौरी ने बुधवार को भारतीय शिक्षण मण्डल द्वारा जैन छात्रावास में आयोजित प्रांतीय अभ्यास वर्ग के समापन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में कही। श्री पचौरी ने कहा कि विश्वामित्र जैसे मुनि समाज की सुरक्षा के लिए अग्नेयास्त्रों का निर्माण किया करते थे। परंतु ये अस्त्र श्रीराम जैसे चरित्रवान व्यक्तित्व को सौंपे जाते थे। शिक्षा में चरित्र पर सर्वाधिक बल दिया जाता था। चरित्रवान व्यक्ति ही आदरणीय माना जाता था।

अभ्यास वर्ग में नागपुर कार्यालय के जितेन्द्र बझे ने एकात्मता स्तोत्र, प्राण विद्या-परिचय व समूह चर्चा कराई। आगामी नियोजन आशुतोष कुंभराज वाले व पंकज नाफड़े ने किया। मध्यभारत के विभिन्न जिलों के 70 प्रतिभागी अभ्यास वर्ग में शामिल हुए। आभार जीतेन्द्र वझे ने व्यक्त किया। कार्यक्रम में मुख्यरूप से मंडल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नाटियाजी, मीडिया प्रभारी निशिकांत सुरंगे, डॉ. स्वाती पेंडसे, इमरान खान, मृदुल ठाकरे, माधुरी गुप्ता, नितिन विटवेकर सहित मण्डल से जुड़े कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी उपस्थित थे।

Updated : 9 Jun 2016 12:00 AM GMT
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