प्रदेश में 5 माह में मरे 15 बाघ

प्रदेश में 5 माह में मरे 15 बाघ
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प्रदेश में 5 माह में मरे 15 बाघ


ग्वालियर। वर्ष 2006 से पहले तक मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट कहलाता था। तब यहां देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा सबसे ज्यादा टाइगर (बाघ) थे। यहां 10 राष्ट्रीय उद्यान, पांच टाइगर रिजर्व और 25 अभयारण्यों में पिछले पांच माह में जिस तेजी से बाघों की संदिग्ध मौत के मामले सामने आए हैं, वो चौकाने वाले हैं। वन विभाग की वेबसाइट से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश में जनवरी से मई तक 15 बाघों की मौत हो चुकी है, जिनमें सात नर, चार मादा, तीन शावक शामिल हैं, जबकि एक बाघ के केवल अस्थि अवशेष मिलने से यह पता नहीं चल सका है कि वह नर था या मादा। पिछले पांच सालों की बात करें तो सूत्रों के अनुसार म.प्र. में करीब 85 बाघों की मौत हो चुकी है।

म.प्र. अब तीसरे नम्बर पर
बाघों की संख्या के मामले में म.प्र. अब तीसरे नम्बर पर पहुंच गया है। वर्तमान में कर्नाटक पहले और उत्तराखंड दूसरे नम्बर पर है। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की गणना के अनुसार वर्ष 2006 में म.प्र. में 300 बाघ थे, जो वर्ष 2010 में घटकर 257 रह गए। इसके बाद वन्य प्राणी प्रबंधन की सक्रियता के फलस्वरूप वर्ष 2014 में बाघों की संख्या बढ़कर 308 तक पहुंच गई, जिनमें 232 बाघ प्रदेश के टाइगर रिजर्व में और 71 बाघ टाइगर रिजर्व के बाहर हैं, लेकिन पिछले पांच माह में ही 15 बाघों की मौत से बाघों की संख्या बढ़ाने के प्रयासों को तगड़ा झटका लगा है। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार चंूकि भारत में वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या दोगुना बढ़ाने का लक्ष्य है। ऐसे में म.प्र. में बाघों के प्रबंधन में उत्तरोत्तर सुधार की बेहद जरूरत है।
पन्ना टाइगर रिजर्व बना मिसाल
बाघों के संरक्षण व प्रबंधन के मामले में दूसरा अच्छा पहलू यह भी है कि विलुप्त होती बाघ की प्रजाति को बचाने के लिए मध्यप्रदेश में किए जा रहे प्रयासों को अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है। खासकर पन्ना टाइगर रिजर्व को बाघों की आबादी बढ़ाने में काफी प्रसिद्धि मिली है। विश्व के जिन देशों में बाघ विलुप्त हो रहे हैं। उन देशों में बाघों को फिर से बसाने के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व को एक मिसाल मानते हुए कई देशों के प्रतिनिधि पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन से प्रशिक्षण ले रहे हैं। इसी कड़ी में हाल ही में वल्र्ड वाइल्ड लाइफ फण्ड के नौ सदस्यीय अध्ययन दल ने पन्ना टाइगर रिजर्व पहुंचकर बाघों को बसाने के लिए कैसे काम किया जाता है। इसका प्रशिक्षण लिया। ये दल कम्बोडिया, वियतनाम और थाईलैण्ड जैसे देशों में बाघों के संरक्षण और उनको फिर से बसाने का काम करेगा।

दतिया व श्योपुर में भी हैं दो बाघ
राजस्थान के बाघों को लगता है ग्वालियर व चम्बल अंचल की आवोहवा भा गई है। राजस्थान के रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से आया एक नर बाघ पिछले करीब पांच साल से श्योपुर जिले के कूनो अभयारण्य में विचरण कर रहा है तो दूसरे नर बाघ ने पिछले करीब दो साल से दतिया जिले के सेंवढ़ा के जंगलों को अपना रहवास बना रखा है। वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदेश के अन्य टाइगर रिजर्व से लाकर कूनो और सेंवड़ा के जंगलों में यदि एक-एक मादा बाघ छोड़ दी जाए तो यहां भी बाघों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। सन्नी शाह, समन्वयक, विश्व प्रकृति निधि (डब्ल्यू डब्ल्यू एफ) पश्चिमी भारतीय बाघ भू स्थल के अनुसार रणथम्भौर के दो बाघों में से एक कूनो में तो दूसरा सेंवढ़ा के जंगलों में है। इसके अलावा रणथम्भौर से समय-समय पर श्योपुर के जंगलों में बाघों का आना-जाना बना रहता है।

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