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राहुल की ताजपोशी और कांग्रेस की बेचैनी

राहुल की ताजपोशी और कांग्रेस की बेचैनी

देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस में इस समय बेचैनी सी छाई हुई है। इसी बेचैनी के चलते कांगे्रस का केन्द्रीय नेतृत्व अपने राजनीतिक उत्थान के लिए मंथन करता दिखाई दे रहा है। देश के प्रचार तंत्र ने यह साफ संकेत दे दिया है कि राहुल गांधी कांगे्रस प्रमुख की भूमिका में जल्दी ही आ सकते हैं। वैसे तो कांगे्रस को पिछले कई वर्षों से राहुल गांधी और उनके आसपास रहने वाले नेता ही चलाते आ रहे हैं, इसलिए यह कहना कि राहुल को जिम्मेदारी दी जा सकती है, किसी भी प्रकार से न्यायोचित नहीं कही जा सकती, उन्होंने जिम्मेदारी तो पहले ही संभाल ली है। यह बात अलग है कि उनकी सक्रियता कांगे्रस को कोई खास लाभ नहीं पहुंचा सकी। वर्तमान कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी का हमेशा ही यह प्रयास रहा है कि राहुल गांधी जल्दी ही मुख्य भूमिका में आएं। इसको लेकर कांग्रेस पार्टी में अंदरुनी तौर पर जबरदस्त तूफान मचा हुआ है। कई राज्यों के वरिष्ठ नेताओं ने अब इस बात के लिए विचार मंथन प्रारंभ कर दिया है कि कांगे्रस का भविष्य क्या है? इतना ही नहीं कई राज्यों में कांगे्रस के नेता धीरे धीरे पार्टी से ही किनारा करने की मुद्रा में आते जा रहे हैं।

एक बार कांगे्रस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने अपना दर्द बयान करते हुए कहा था कि अब कांगे्रस में साठ साल से ऊपर के नेताओं के दिन लद चुके हैं। वास्तव में राहुल की ताजपोशी के बाद लगता है कि कांगे्रस में इसी प्रकार के हालात पैदा हो जाएंगे। एक समय कांगे्रस प्रमुख सोनिया गांधी के नजदीक माने जाने वाले छत्तीसगढ़ राज्य में कांगे्रस के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने नई पार्टी बनाकर कांगे्रस के बिखराव का संकेत दे दिया है। अभी तो कांगे्रस में बिखराव का खेल प्रारंभ हुआ है, भविष्य में इसकी परिणति क्या होगी। यह आने वाला समय बता देगा। पिछले दस पन्द्रह वर्षों से कांगे्रस की राजनीति के बारे में अध्ययन किया जाए तो यह बात सही है कि कांगे्रस लगातार सिमटती जा रही है। भारत के कर्नाटक राज्य को छोड़ दिया जाए तो कांगे्रस वर्तमान में केवल छोटे राज्यों में ही सिमट कर रह गई है। देश की राजनीति के मुख्य धुरी माने जाने वाले राज्यों में कांगे्रस आज अपने दम पर खड़ी होने की भी स्थिति में नहीं है।

आज हालत यह है कि लोकसभा सीटों के हिसाब से कांगे्रस कई राज्यों में शून्य बनकर राजनीति कर रही है। इन राज्यों में कांगे्रस छोटे दलों की कृपा पाने की भरपूर चेष्टा कर रही है, लेकिन कांगे्रस की स्थिति को देखते हुए छोटे दल भी उससे किनारा करने लगे हैं। अभी कुछ दिनों पूर्व हुए विधानसभा चुनावों में कांगे्रस की जो हालत हुई, उससे राजनीतिक दलों में यह संकेत गया है कि जिसने कांगे्रस का साथ दिया, वह भी डूब जाएगा। तमिलनाडु में द्रमुक नेता करुणानिधि का क्या हाल हुआ, यह हम सभी के सामने है। कांगे्रस नेता राहुल गांधी के कांगे्रस प्रमुख बनने के बाद कितना राजनीतिक लाभ दे पाएंगे, यह अभी सवालों के घेरे में है। क्योंकि इससे पूर्व भी राहुल गांधी कोई कमाल नहीं कर सके।

Updated : 21 Jun 2016 12:00 AM GMT
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