इनरवियर की दुनिया में हर किसी की जिंदगी से जुड़ा है

भारतीय ब्रान्ड ''टी.टी.'' की ग्लोबल ब्रान्ड बनने की उड़ान
*राकेश शर्मा
इनरवियर की दुनिया में हर किसी की जिंदगी से जुड़ा है टीटी। लेकिन ये ब्रांड ऐेसे ही नहीं हर किसी की जुबान पर चढ़ा। इसके पीछे है 50 साल की साधना, जिसके साधक हैं श्री रिखबचंद जैन, टीटी लिमिटेड के अध्यक्ष। प्रस्तुत है कम्पनी के जमीन से आसमान एवं दुनिया के 65 देशों मे पहुचने की सघर्षपूर्ण यात्रा की कहानी।
सवाल : आपने इस ब्रांड को कैसे खड़ा किया और कैसे इस मुकाम पर पहुंचे ।
जवाब : मेरा बचपन साधारण बालकों की तरह ही बीता। पढाई राजस्थान में हुई। पढाई में हमेशा अच्छी रैंकिंग रहती थी। स्कूल में गुरूजनों की सदैव कृपा रही। दसवीं पास करने के बाद कलकत्ता के सेंट जेवियर कॉलेज से बी. कॉम किया। कॉलेज में भी प्रोफेसरों का अच्छा आशीर्वाद मिला। घर बुलाकर मेरिट में आने के लिए फ्री कोचिंग देते। ये 1960 से 1964 का दौर था। आप आश्चर्य करेंगे कि आज 50 साल बाद भी मेरे एक पुराने प्रोफेसर का एक दिन फोन आया और मुझे मिलने बुलाया। कुछ दिन पहले मेरे स्कूल प्रधानाचार्य का फोन आया और पूर्व छात्रों के एक कार्यक्रम में मुझे आमंत्रित किया। अभी भी वे फोन पर याद कर स्वयं आशीर्वाद देते हैं। जब मैं पढ़ता था तो उस समय एक नया विषय लागू हुआ सेक्रटेरियल प्रेक्टिस। उस पर मेरे पास कक्षा के जो नोट्स थे उन्हें एकत्र कर प्रिंसीपल ने एक किताब तैयार करायी, क्योंकि उस समय उस विषय पर पुस्तकें उपलब्ध नहीं थी। पाठ्यपुस्तक के रूप में वही पुस्तक कई साल तक कलकत्ता विश्वविद्यालय एवं वर्धमान विश्वविद्यालय में पढ़ायी गयी। मैंने कंपनी सेक्रटेरीशिप करने के बाद इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमैंट से एमबीए किया। मेरा चयन वैसे आईआईएम कलकत्ता, अहमदाबाद एवं न्यूयार्क यूनिवर्सिटी में हो गया था। चूंकि उस समय हम कलकत्ता में रहते थे इसलिए मैंने कलकत्ता ही चुना। आईआईएम में भी मेरा रिकार्ड बहुत अच्छा रहा। वहां के डायरेक्टर ने कहा कि पी. एचडी करके यहीं पढ़ाने लग जाओ। मैंने कहा कि हम तो व्यापारी हैं। लेकिन फिर भी तीन साल तक अंशकालीन रूप से पढ़ाया 1967 से 70 तक। उसी दौरान यूएसएड के रिसर्च प्रोजेक्ट भी किये। भारत से निर्यात के लिए संभावनाएं तलाशने के लिए जापान, थाइलैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में अध्ययन किया। वह रिपोर्ट बाद में निर्यात पॉलिसी बनाने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुई। मैंने नौकरी के लिए कहीं साक्षात्कार नहीं दिया। जो प्रबंधन तकनीक मैंने पढ़ी उसका उपयोग परिवार के व्यवसाय के लिए ही किया। इसलिए पूरी उर्जा परिवार के व्यापार को आगे बढाने में ही लगायी
सवाल : क्या इतनी अच्छी शिक्षा के पश्चात् सरकारी नौकरी की इच्छा नही हुई ।
जवाब: मन तो परिवार के व्यवसाय को ही आगे बढ़ाने का था। लेकिन उसी दौरान आईएएस बनने का भी मन किया। प्रयास शुरू किया, लेकिन कम वजन होने के कारण इसे छोडना पड़ा। छोडऩे का एक कारण यह भी था कि आईएएस में अधिकार और ओहदा जरूर है लेकिन उससे परिवार की आर्थिक जरूरतें पूरी नहीं होने वाली थीं। हमारा संस्कार ईमानदारी से काम करने का रहा है। इसलिए ईमानदारी की कमाई को सही मानते हैं। हमने सदैव साधन की शुद्धिता को स्वीकारा है। आज जो ब्रांड अथवा व्यापार आगे आया है वह भी सिद्धांतों का पालन करके ही आया है। हम अकेले नहीं, ऐसे हजारों उदाहरण हैं। मेरा मानना है कि जो नियमों एवं सिद्धांतों पर चलता है, परिश्रम करता है, गुडविल बनाता है, विश्वास जीतता है, वही कामयाब होता है।
सवाल : आपका बिजनेस में कैसे आना हुआ । किस नाम से थी कम्पनी उस समय ।
जवाब: बिजनेस तो मैं पढाई के दिनों से ही कर रहा हूं। जब मैं हाई स्कूल में पढ़ता था तब बीकानेर में हमारी कंपनी की ब्रांच थी, उसमें मैं सक्रिय था। तरुण टैक्सटाईल। मेरा सोचना है कि बिजनेस एक प्रेक्टिकल एजुकेशन है। यदि आप उसमें शामिल हैं तो चीजों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। आप कॉलेज और प्रबंधन संस्थानों में भी देखेंगे कि जो फैकल्टी मेंबर किसी न किसी उद्योग से जुडे हैं वे ज्यादा अच्छा पढा सकते हैं। जिन्होंने चीजों को सिर्फ सैद्धांतिक दृष्टि से देखा है उनके पढाने का तरीक उतना बेहतर नहीं होता। विद्यार्थी भी चीजों को उतना बेहतर ढंग से ग्रहण नहीं कर पाते।
सवाल : आज कल बहुत से विद्यार्थी बीटेक एवे अन्य डिग्रियां लेकर नौकरी के लिए आ रहे हैं लेकिन वे इंडस्ट्री की जरूरतों के हिसाब से फिट नहीं हैं। क्या इंडस्ट्री में एक्सपोजर की कमी है ।
जवाब: इसके लिए अभी बहुत से तरीके अपनाए जाते हैं। जैसे कि इंटर्नशिप, समर टेऊेनिंग, समर जॉब, आदि। आजकल तो बीकॉम व बीबीए के कोर्स में भी इंटर्नशिप होने लगी है। शिक्षकों के लिए भी लगातार प्रशिक्षण का प्रावधान है। कई शिक्षा संस्थानों एवं उद्योगों के बीच आदान'प्रदान शुरू हुआ। इसे और मजबूत करने की जरूरत है। अब उद्यमिता के लिए भी बहुत से कोर्स आ गये हैं। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भी स्टार्टअप योजना शुरू की है। जो प्रयास हमारे जमाने में विद्यार्थी के स्तर पर होते थे वे अब संस्थागत रूप से हो रहे हैं। स्टार्टअप योजना इसलिए है ताकि विद्यार्थी शिक्षा संस्थानों से निकलकर सिर्फ नौकरी मांगने वाले न बनें, नौकरी देने वाले बनें। मुझे उम्मीद है यह प्रयोग काफी सफल होगा।
सवाल : आप अपनी 50 साल की यात्रा को किस दृष्टि से देखते हैं-क्या खोया क्या पाया ।
जवाब: खोया कुछ नहीं, क्योंकि कभी नुकसान नहीं हुआ। जो कुछ पाया है उसे और भी आगे ले जाने का स्कॉप है। फाइबर से फैशन का मतलब है कि हमने इंडस्ट्री में बहुत काम किये हैं। पहले गारमेंट बनाते थे, फिर कपड़ा बनाने लगे, फिर यार्न बनाने लगे, फिर कॉटन फाइबर को प्रोसेस करने लगे और फिर निर्यात करने लगे। पहले हमारा 75 प्रतिशत निर्यात होता था ऐसा भारत के बढ़ते स्थानीय बाजार के बढ़ती सहभागिता की वजह से किया। निर्यात घटा नहीं है, बढ़ ही रहा है। सिर्फ अनुपात बदलने का समयानुसार प्रयास है। आज दो तिहाई निर्यात होता है। हमारा यह इंडियन ब्रांड ग्लोबल ब्रांड बना है। होजरी और टैक्सटाइल के हमारे जितने भी अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय फोरम हैं उन सभी में मैनें प्रतिनिधित्व किया है। हमने इंडस्ट्री की तरफ से प्रदर्शनियां आयोजित की। हौजरी उद्योग के 100 साल मेरे नेतृत्व में मनाये गये। भारत में निटिंग इडस्ट्री की सबसे बडी इंटरनेशनल कांफ्रेंस हमने आयोजित की। उसमें एक साथ छह भाषाओं में अनुवाद की व्यवस्था की गयी थी। तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री वेंकटरमन ने उसका उदघाटन किया था। इंडस्ट्री में 25 साल के अनुभव पर आधारित मेरी एक पुस्तक की तत्कालीन केन्द्रिय वाणिज्य मंत्री श्री पीए संगमा ने न केवल भूमिका लिखी। उसका विमोचन भी उपराष्ट्रपति श्री वेंकटरमण के हाथो हुआ।
सवाल : देश के कितने राज्यों में अभी आपके प्रोडेक्ट्स पहुंच रहे हंै । टीटी का सालाना कारोबार कितना है ।
जवाब : अभी करीब 800 करोड का टर्नओवर है। 1000 करोड का इस वर्ष का लक्षय है। लगभग सभी राज्यों में पहुंच रहा है। हालांकि हिन्दी भाषी क्षेत्रों में काम अधिक मजबूत है, गैर हिन्दी भाषी राज्यों में कम है।
सवाल : टीटी का देश से बाहर 65 देशों में निर्यात का कैसा अनुभव रहा है ।
जवाब : बहुत बेहतर अनुभव है। मेरी शुरू से ही मार्केटिंग एवं इंटरनेशनल मार्केटिंग में विशेषज्ञता थी। इसलिए एक्सपोर्ट में हमने पायनियरिंग भूमिका निभायी है। हम शुरूआती दौर से ही निर्यात से जुड़े हुए हैं। इससे व्यापार को बढाने में बडी मदद मिली। आज भी निर्यात पर हमारा पूरा फोकस रहता है। पहले पांच देशों में हमारे ऑफिस थे। सिंगापुर में कुछ समय के लिए एक कंपनी भी चलायी। आज भी सभी जगह हमारे प्रतिनिधि हैं। निर्यात बहुत जरूरी है। देश के प्रत्येक उद्योगपति व व्यापारी को निर्यात करना चाहिए। निर्यात जितना अधिक होगा देश की आर्थिक प्रगति उतनी ही तेज होगी और देश समृद्ध बनेगा।
सवाल : आपकी कम्पनी टीटी ब्रांड के तहत अभी कितने प्रकार के उत्पाद बन रहे हैं?
जवाब : टीटी ग्लोबल ब्रांड है। 65 देशों में उत्पाद बेचते हैं। टैक्सटाईल में तो सारी चीजें बना रहे हैं। गारमेंट में करीब 500 प्रकार के आइटम बनाते हैं। इसके अलावा हम कृषि उत्पाद भी निर्यात करते है, जिनमें तिल, राइस ब्रांड, अरन्ड़ी एवं तेल, मक्का आदि हैं। पशु आहार भी बनाते हैं। कुछ समय हमने फाइनेंस में ऑटोमोबाइल लीजिंग का भी काम किया जिसमें हम बसों, कारों आदि की फाइनेंसिंग करते थे।
सवाल : देश में मुम्बई शेयर बाजार में पंजीकृत होने वाली आपकी पहली टैक्सटाइल कंपनी थी। शेयर बाजार से जुड़े हुए आपको 25 साल हो गये हैं। इससे क्या फायदा हुआ।
जवाब : पहला पब्लिक इश्यू हमने 1990 में जारी किया था। उससे पहले हमारी प्राइवेट कंपनी थी। उस समय आईसीआईसी ने हमसे ब्रांड की वैल्यू के कारण संपर्क किया। उन्होंने हमें बताया कि किस प्रकार हम शेयर बाजार के माध्यम से अपने व्यापार को और बढ़ा सकते हैं। उनके प्रोत्साहन पर ही हमने पहला पब्लिक इश्यू निकाला। वह नौ गुणा सब्सब्राइब हुआ। उस पैसे से हमने स्पिनिंग मिल की जमीन ली और मशीनों का ऑडर दिया, क्योंकि उस समय मशीनें तीन से चार साल में मिलती थी। पब्लिक फंड से व्यापार को बढाने में हमें काफी सहायता मिली। 25 साल की यह पूरी अवधि पूरी तरह से बेदाग रही है। कभी किसी को उंगली उठाने का मौका नहीं मिला। हम शेयर बाजार में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करते। यही हमारी प्रतिष्ठा है और इसी से हमारी गुडविल और ब्रांड बना है।
सवाल : व्यवसाय में आपकी सफलता का असली मंत्र क्या है।
जवाब: मेरी सफलता का वही मंत्र है जो किसी भी सफल व्यक्ति का होता है-दीर्घ दृष्टि से सोचना, सिद्धांतों पर चलना, लाभ की बजाए न्याय पर टिके रहना, किसी दूसरे को नुकसान न पहुंचाना, उत्पाद की गुणवत्ता को हमेशा बढाने का प्रयास करना न कि उसे घटाना। व्यापार में हमेशा व्यवहार और विश्वास काम आता है। विश्वास नहीं है तो न व्यापार होगा न ही गुडविल। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने कभी हमारा चेहरा नहीं देखा, कभी हमारी कंपनी का कोई आदमी उनसे नहीं मिला, फिर भी सात समुंदर पार से हमारे बैंक में करोडों रूपये अग्रिम भेज देते हैं। जब आप फेयर टेऊड प्रैक्टिस से काम करते हैं तभी बनती है यह गुडविल। आज हमें कोई भले ही नाम से न पहचाने, लेकिन टीटी ब्रांड से कहीं भी पहचान लेते है। इस प्रकार ब्रांड ने हमारे व्यक्तित्व और नाम को भी ओवरटेक कर लिया है। हम आज अपने व्यवहार तथा व्यापार के नाम से जाने जाते हैं न कि हमारे अपने नाम से अथवा हमारे पूर्वजों के नाम से।
सवाल : आपने पिछले पांच दशको में देश में अनेको पार्टियों की सरकारेें देखी है, आपका इस विषय पर क्या अनुभव है ।
जवाब: हमने बहुत से नेता देखे हैं। ऐसे लोगों की संख्या देश में लगातार घटती जा रही है जो उद्योगजगत की समस्याओं को गंभीरता से सुनकर उनके समाधान हेतु तुरन्त खडा हो जाए। आजादी के बाद 15-20 साल तक देश को जो नेतृत्व दे रहे थे वे वास्तव में देश को कुछ दे रहे थे। एक समर्पण भाव था। वह समर्पण और आहूति देने का भाव आज गायब सा हो गया है। आज राजनीतिक दलों एवं प्रशासन में बैठे लोगों के लिए देश सर्वप्रथम नहीं है। उनका सिद्धांत है पार्टी पहले, देश बाद में। इसी कारण यदि कोई देश के अच्छा काम करना भी चाहे तो अपने राजनीतिक फायदे के लिए वे विपक्ष में रहते हुए भी अडंगा लगाते हैं। जब तक राजनीतिक दलों के कर्णधार राष्ट्र के प्रति समर्पित होकर काम नहीं करेंगे, तब तक जनता की सुनवाई नहीं होगी। आज सुनने वाला कोई नहीं है, बोलने वाले सभी हैं।
सवाल : आप अपने अनुभव के आधार पर युवा उद्यमियों को क्या संदेश देना चाहेंगे ।
जवाब: मैं तो कहना चाहूंगा कि वे समर्पित भाव से धर्म के अनुसार सिद्धांतों पर चलकर प्रगति करने का प्रयास करें। साधन की पवित्रता को सदैव ध्यान में रखना चाहिए। मैं गलत काम करूं तो कोई बात नहीं, दूसरा करे तो गलत है। इस सोच को पूरी तरह त्यागना होगा। युवकों को चाहिए कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए समर्पित भाव से प्रयास करते हुए आगे बढ़ें। आजकल बहुत से युवा 'फास्ट मनीÓ ढूंढने के चक्कर में बर्बाद हो रहे हैं। जल्दी अमीर बनने के चक्कर में प्रगति कम पतन की अधिक संभावना रहती है। इस देश को आगे बढाना युवकों की ही जिम्मेदारी है। कॉलेज अथवा विश्वविद्यालयों से निकलने वाले युवकों को देश को सर्वोपरि रखना चाहिए। लोकतंत्र को बचाये रखना है अथवा इसमें आ रही कमियों को ठीक करना है तो उन्हें सजग रहना होगा। वे यह न सोचें कि मैं क्या कर सकता हूं। एक व्यक्ति भी परिर्वतन का बडा माध्यम बन सकता है। नागरिक सजगता ही अब लोकतंत्र को बचा सकती है। मैं तो नागरिक सजगता को लोकमंत्र का पांचवा स्तंभ कहता हूं। देश में 99 प्रतिशत से अधिक लोग आज भी अच्छे हैं लेकिन वे सक्रिय नहीं हैं। इसलिए उन्हें सक्रिय करना बहुत जरूरी है।
सवाल : आपको मतदाता संगठन बनाने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
जवाब : लोकतंत्र को बचाये रखने के लिए सजग नागरिकों की जरूरत है। अच्छा जनप्रतिनिधि तो सजग नागरिक ही चुनेंगे। सभी सजग मतदाता वोट जरूर दें इसलिए हमें उन्हें जागरूक करते हैं। किसी भी चुनाव में 90 से 95 मतदान होना ही चाहिए। आज यह 70 से 80 प्रतिशत तक पहुंच गया है यह अच्छी बात है। लेकिन इसे और भी बेहतर बनाना है।