फिक्की सर्वे : उद्योग जगत का बढ़ रहा है आत्मविश्वास

फिक्की सर्वे : उद्योग जगत का बढ़ रहा है आत्मविश्वास

फिक्की सर्वे : उद्योग जगत का बढ़ रहा है आत्मविश्वास


नई दिल्ली। फिक्की के ताज़ा बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे से पता चला है कि भारतीय उद्योग जगत के सदस्यों में अर्थव्यवस्था को लेकर आत्मविश्वास के स्तर बढ़ा है। कुल मिलाकर कारोबारी विश्वास सूचकांक अंतिम दौर के 56.7 की तुलना में वर्तमान दौर में 64.3 पर सात डिग्री से अधिक था। इसकी एक वजह करंट कंडीशंस इंडेक्स और एक्सपेक्टेशन इंडेक्स (या वर्तमान स्थितियाँ सूचकांक और अपेक्षा सूचकांक) में सुधार भी है।
उत्तरदाताओं का एक हिस्सा पूर्व के 6 महीनों की तुलना में अर्थव्यवस्था, उद्योग और फर्म के स्तर सभी तीन स्तरों पर 'मामूली से काफी बेहतर' प्रदर्शन में वृद्धि का हवाला दे रहा है। इसके अलावा वर्तमान दौर में, प्रतिभागी निकट अवधि की संभावनाओं के बारे में अधिक सकारात्मक लग रहे थे। प्रमुख आर्थिक मानकों को मजबूत बनाने के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था एक स्थिरता के क्षेत्र में पहुंच चुकी है। सरकार द्वारा शुरू सुधार प्रक्रिया उल्लेखनीय रही है। एक अनुकूल कारोबारी माहौल प्रदान करने की दिशा में किए गए प्रयासों के परिणाम दिखने शुरू हो गए हैं और कुल मिलाकर व्यापार को लेकर मत में सुधार हुआ है। हालांकि, औद्योगिक क्षेत्र की हालत में सुधार अब भी चिंता का एक विषय बनी हुई है। विनिर्माण वृद्धि दर संख्या बहुत उत्साहजनक नहीं रही है और यह कंपनियों के वित्तीय रूप में भी दिखाई देता है।
नवीनतम सर्वेक्षण के परिणाम में कंपनियों के संचालन मानकों में बहुत ज्यादा सुधार का संकेत नहीं मिलता है। जबकि बिक्री, निर्यात और रोजगार जैसे मापदंडों के बारे में दृष्टिकोण में सुधार दिखता है, उत्तरदाता निवेश की संभावनाओं और लाभ के स्तर में सुधार के बारे में आशावादी नहीं दिखे। लगभग 35% उत्तरदाताओं ने कहा कि वे अप्रैल-सितंबर 2016 में उच्च निवेश की उम्मीद करते हैं जबकि पिछले दौर में 41% उत्तरदाता यह उम्मीद रखते थे। कंपनियां ताजा निवेश के को लेकर सतर्क हैं और 46% उत्तरदाताओं ने कहा कि वे निवेश के स्तर में कोई परिवर्तन नहीं देखते हैं।
पिछले दो सालों में निवेश शुरु करने के लिए किए गए ढेर सारे उपायों के बारे में जब उत्तरदाताओं से पूछा गया कि क्या वह अपने आसपास निवेश की गतिविधि में कोई सुधार देखा है- और उनमें से अधिकतर ने कहा कि वे अब भी इसके नतीजों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। जिन लोगों ने इस बात के संकेत दिए कि निवेश हो रहा है, उन्होंने बताया कि अधिकतर यह गतिविधि सड़कों और राजमार्गों, रेलवे, नवीकरणीय ऊर्जा और रक्षा सहित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में है।
बिक्री की संभावनाओं के संबंध में, उत्तरदाताओं को प्रदर्शन में सुधार प्रत्याशित था। भाग लेने वाली कंपनियों में से 58% ने कहा कि वे आने वाले छह महीनों में उन्हें अधिक बिक्री की उम्मीद है। पिछले सर्वेक्षण में 48% कंपनियों ने यह सूचना दी थी। निवेश के इरादों में नरमी के बावजूद बिक्री में प्रत्याशित उछाल का कंपनियों का आकलन इशारा करता है कि कंपनियां अप्रयुक्त क्षमता का प्रयोग करने पर विचार कर रही हैं। वर्तमान सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 54% ने 75% से अधिक क्षमता उपयोग की सूचना दी, अंतिम दौर में यह आंकड़ा 30% था।
कमजोर मांग कारोबार के लिए महत्वपूर्ण बाधा कारकों में से एक रही है। वैश्विक और घरेलू कारकों के कारण मांग की स्थिति बहुत अनुकूल नहीं रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था अभी भी सुधार की हालत में नहीं है और विकास में बिखराव रहा है। इसके अलावा, सूखे के लगातार दो वर्षों से घरेलू मांग पर विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिकूल प्रभाव रहा है। वास्तव में, मौजूदा दौर में 64% प्रतिभागियों ने मांग की स्थिति के बारे में चिंताजनक संकेत दिए हैं। बहरहाल, एक सामान्य मानसून के पूर्वानुमान से घरेलू मांग की स्थिति में कुछ सुधार आने की उम्मीद है।
इसके अलावा, नवीनतम दौर में 32% उत्तरदाताओं ने कहा कि वे आने वाले छह महीनों में और अधिक लोगों को काम पर रखने पर विचार करेंगे; आखिरी दौर में यह संख्या 23% थी। हालांकि, अभी भी प्रतिभागियों का बहुमत यानि 61% निकट भविष्य में कोई ताजा नौकरी देने की उम्मीद नहीं देखती।
निकट भविष्य में उच्च निर्यात की उम्मीद रखने वाले उत्तरदाताओं के अनुपात में मामूली सुधार देखा गया। हालांकि, वैश्विक आर्थिक स्थिति नाजुक बनी हुई है और कोई भी दृढ़ सुधार छलावा ही रहा। इस प्रकार बाहरी हालात निकट भविष्य में एक चुनौती पेश करना जारी रखेंगे और मजबूती लाने में कुछ और समय लग जाएगा।
कर्ज़ के मामले में कुछ सुधार हुआ है कर्ज़ की उपलब्धता और इसकी लागत को एक बाधा कारक बताने वाले उत्तरदाताओं के अनुपात में कमी आई दिखती है। भारतीय रिजर्व बैंक जनवरी 2015 के बाद से रेपो दर में 150 बीपीएस की कटौती कर चुका है।
छोटी बचत ब्याज दर में हाल ही में की गई कमी के साथ ही सीमांत निधि लागत पर आधारित उधार दर (एमसीएलआर) की शुरूआत के साथ ही बैंकों के माध्यम से प्रसार में सुधार की उम्मीद है।
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