नेतृत्व की सर्जरी हो
नेतृत्व की सर्जरी हो
महेन्द्र तिवारी
कांग्रेस की हालत यह हो गई है कि उसे अपने विधायकों से वफादारी का लिखित प्रमाण लेने की स्थिति बन गई है। इससे भी अधिक आश्चर्य की स्थिति यह है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी के प्रति वफादारी का शपथ पत्र लिया जा रहा है। इसका आशय यही हो सकता है कि सांसदो और विधायकों पर भी कांग्रेस नेतृत्व का भरोसा नहीं रहा। इसके साथ ही इस सवाल का आधार मिलता है कि कई कांग्रेसी सोनिया और राहुल के नेतृत्व को असफल मानते है।
देश की जनता ने चुनावों के माध्यम से यह जाहिर कर दिया है कि इन मां-बेटों का नेतृत्व देश के अनुकूल नहीं है, क्योंकि देश की जनता ने कांग्रेस सरकारों का शासन भुगता है। नकारे नेतृत्व को बनाए रखना शायद कांग्रेसियों की बाध्यता है। गत करीब छह दशक से कांग्रेस एक ही परिवार के नेतृत्व में रही है। उतार-चढ़ाव तो व्यक्तिगत और संस्थागत जीवन में आते है और इनका दृढ़ता से मुकाबला करने की ऊर्जा होना चाहिए। इसी परिवार ने कांग्रेसियों को सत्ता सुख दिया, लेकिन जब से विदेशी मूल के नेतृत्व के हाथों में कांग्रेस की बागडोर आई है, तब से कांग्रेस की दुर्गति होने लगी।
अब कांग्रेस की बदहाली का हाल यह है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व के सामने कांग्रेस के लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। अब कांग्रेस लोकसभा में मान्यता प्राप्त विरोधी नेता की स्थिति में भी नहीं रही। अब तो उसके नेतृत्व के औचित्य पर सवाल दागे जा रहे है। ऐसी स्थिति में चाहे शपथ पत्र प्राप्त कर ले, लेकिन इससे कांग्रेस की दुर्गति नहीं रोकी जा सकती है। इसके लिए नेतृत्व में बदलाव की सर्जरी करना होगी।