उदाहरण जो चर्चा का केन्द्र नहीं बन पाए - अतुल तारे

उदाहरण जो चर्चा का केन्द्र नहीं बन पाए - अतुल तारे
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उदाहरण जो चर्चा का केन्द्र नहीं बन पाए

*अतुल तारे


मैं तीन दिन से इंतजार कर रहा था, इस बात का कि इस खबर पर आज चर्चा होगी, आज नहीं हो पाई तो कल होगी। पर तीन दिन बीत गए। सूचना क्रांति के इस युग में कई बार ऐसा होता है कि जिस समाचार को केन्द्र में रखते हुए हम समाज जीवन के कुछ मौलिक सूत्र ढूंढ सकते हैं, एक सार्थक बहस कर सकते हैं, नहीं कर पाते।



याद करें आज से तीन दिन पहले देश के लगभग सभी समाचार पत्रों में एक खबर प्रमुखता से छायाचित्रों के साथ प्रकाशित हुई। खबर थी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसे प्रधानमंत्री न कहें तो ज्यादा अच्छा। ऐसा कहें एक बेटा जो सुयोग से देश का प्रधानमंत्री है अपने नई दिल्ली स्थित सरकारी आवास 7, आर.सी.आर. पर अपनी माँ को बगीचे की सैर करा रहा है। यह फोटो पीआईबी (प्रेस इन्फॉरमेशन ब्यूरो) ने जारी नहीं किए थे। स्वयं श्री मोदी ने ट्विट कर जारी किए थे। साथ में लिखा था कि माँ आज वापस गुजरात चली गईं। पांच दिन वह दिल्ली में मेरे पास थीं। माँ के साथ अच्छा वक्त बिताया। प्रश्न किया जा सकता है कि इसमें चर्चा का क्या विषय है। वे प्रधानमंत्री के साथ-साथ एक बेटे भी हैं और बेटा प्रधानमंत्री हो या आम आदमी (केजरीवाल नहीं) व्हील चेयर पर अपनी माँ को सैर करा सकता है, कराता है, इस पर काहे की चर्चा। यह भी कहा जा सकता है कि श्री मोदी अपनी मातृभक्ति का भी प्रचार करते हैं, यह ठीक नहीं।

अत: यह विषय एक फोटो कैप्शन लायक ही था, पर्याप्त है। पर मेरा विषय यहीं से शुरू होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज से लगभग एक सप्ताह बाद अपने कार्यकाल के 730 दिन (दो साल) पूरे करने जा रहे हैं। इस सात सौ तीस दिन में श्री मोदी की माँ पहली बार नई दिल्ली आईं पांच दिन रहीं और लौट गईं। यह घटना सामान्य घटना नहीं है। आज राजनीति की पहली पायदान पर ही आते ही अपना घर भरने का, अपनों को उपकृत करने का, नातेदार, रिश्तेदारों को करोड़ों-अरबों में खिलाने का दौर है। ऐसे दौर में प्रधानमंत्री मंत्री नरेन्द्र का यह उदाहरण असामान्य है। तात्पर्य यह नहीं कि जो राजनीति में है वह अपने आपको परिवार से दूर ही कर ले। यह भी आवश्यक नहीं है न ही यह हर एक के लिए संभव है कि वह घर-परिवार छोड़कर राजनीति करे। बेशक वह घर-परिवार से जुड़ा रहे कारण कई बार परिवार ही वह शक्ति केन्द्र होता है जहां से आप प्रेरणा लेते हैं, ऊर्जा लेते हैं। अत: वह गलत है, ऐसा नहीं। पर परिवार मोह से हम स्वयं को कितना दूर रख सकते हैं इसका एक उदाहरण श्री मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते भी दिया आज भी दे रहे हैं। और यह उदाहरण हर एक के लिए अनुकरणीय भले ही न बन पाए पर वंदनीय तो है। ऐसा ही उदाहरण दिवंगत डॉ. अब्दुल कलाम ने भी दिया था। वे जब राष्ट्रपति थे तब सिर्फ एक बार रामेश्वरम् से उनका पूरा परिवार राष्ट्रपति भवन आया था। परिवारजन कुछ दिन दिल्ली में राष्ट्रपति भवन रुके। जब वे लौट गए।

स्व. डॉ. कलाम ने सम्पूर्ण व्यय अपने वेतन से सरकारी खजाने में जमा कराया। देश के पहले राष्ट्रपति थे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद। देश में सूखा पड़ा, सबने अपना वेतन आधा करने का निश्चय किया। राजेन्द्र बाबू ने भी किया। वे अपने छोटे भाई को पत्र लिखते हैं। लिखते हैं, भाई देश में सूखा है मेरी पगार आधी हो गई है। घर की आर्थिक मदद करने की स्थिति में नहीं हूं, तुम ही इस समय चिंता कर लो। देश को प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री मिले उनका बेटा जाने-अनजाने में सरकारी गाड़ी लेकर प्रधानमंत्री आवास लौटता है। शास्त्रीजी फूट पड़ते हैं ये गाड़ी तुम्हारे बाप की नहीं है आगे से ध्यान रखना। आज देश को रक्षामंत्री के रूप में मनोहर पार्रीकर मिले। मुख्यमंत्री रहते उनका बेटा गंभीर रूप से बीमार होता है। तत्काल हवाई जहाज से मुम्बई ले जाना है, नियमित सेवा है नहीं। राज्य का अपना हवाई जहाज है नहीं। एक उद्योगपति अपना चार्टर प्लेन देता है। उद्योगपति तसल्ली में अब काम बन गया। फाइल मुख्यमंत्री कार्यालय में अटकी है। मुख्यमंत्री पार्रीकर लौटते हैं। बिल को धन्यवाद के साथ चुकाते हैं और उद्योगपति के प्रकरण पर सचिवालय नकारात्मक निर्णय देता है, कारण नियम में नहीं है। सार्वजनिक जीवन जीते समय नैतिक मानदंडों के यह उच्च आदर्श क्या आज यह चर्चा के विषय नहीं होने चाहिए। क्या इन आदर्शों का अभिनन्दन नहीं होना चाहिए? आज जब हम दिनभर घोटालों, घोटालों और घोटालों की ही खबरे सुनते हैं, ऐसे परिवेश में यह उदाहरण बिना किसी हो-हल्लों के प्रस्तुत करने वाले ये राजनेता हमारे अपने ही देश के हैं, ये किसी दूसरे उपग्रह से नहीं आए हैं। नरेन्द्र मोदी कितने पढ़े हैं उनकी डिग्री असली है या नकली की जांच करने वाले राजनीतिक गंवारों को चाहिए कि वे राजनीति में शुचिता का पाठ इनसे पढ़ें।


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