कौन है समर्थक देशद्रोहियों का?

कौन है समर्थक देशद्रोहियों का?
*जयकृष्ण गौड़
यह बहस भी चलती है कि देशद्रोही किसे माना जाए? क्या राष्ट्रध्वज तिरंगे या संविधान को नहीं मानना राष्ट्रविरोधी कृत्य है? क्या वंदे मातरम् जिसे संविधानिक आधार पर राष्ट्रगीत का सम्मान मिला है, उसका विरोध करना भारत का अपमान है? कश्मीर घाटी में इस्लामी स्टेट के झंडे फहराने वाले और पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाने वाले देश के गद्दार हंै? ये सवाल आजादी के बाद से ही सवाल बने हुए हैं? हम शायद देशभक्ति को भी ठीक प्रकार से परिभाषित नहीं कर सके हैं? क्योंकि ये सब देश विरोधी गतिविधियां भारत में चल रही हैं और विडंबना यह है कि इन देश विरोधी गतिविधियों का बचाव करने वाले ऐसे सेकूलर दल हैं, जिनके पास करीब पचास वर्षों से सत्ता के सूत्र रहे हैं। यदि इतिहास की सच्चाई से समीक्षा की जाए तो जो बातें देशभक्ति की प्रेरणा है या जिनसे राष्ट्र चेतना जागृत होती है, उनकी ओर न केवल दुर्लक्ष किया गया वरन् इनका विरोध करने वालों को महिमामंडित करने का राष्ट्रविरोधी पाप होता रहा है।
सेकूलरी के नाम पर ऐसे तत्वों को बचाया गया, जो राष्ट्रविरोधी गतिविधियां संचालित करते हैं। देश विभाजन के खूनी इतिहास को खंगालने से यह आरोप लगता है कि साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाडऩे के लिए उस समय की बातों को दोहराया जाता है। हालांकि इस सच्चाई को कैसे झुठलाया जा सकता है कि मजहबी साम्प्रदायिकता को गले लगाने के कारण देश विभाजन की मांग उठी। आज भी उसी देश विरोधी सेकूलरी के लिए राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का बचाव किया जाता है, हालत यह है कि वंदे मातरम् राष्ट्रगीत का अपमान करने वाले असरुद्दीन ओवैसी, जिनका आधार मुस्लिम वोट है और जिनकी पार्टी को राजनीतिक दल माना जाता है, उनका अनुमान है कि जितनी हिन्दुओं की बुराई करो, उनके देवी-देवताओं को लांछित करो, उतने ही मुस्लिम खुश होते हैं। उन्होंने वंदे मातरम् का विरोध करते हुए कहा कि मेरी गर्दन पर चाहे छुरा रख दो, फिर भी मैं वंदे मातरम् नहीं कहूँगा। ऐसा मजहबी साम्प्रदायिकता का जहर उगलने वाला आज लोकसभा का सदस्य है। उसे पूरे संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं। क्या किसी सेकूलर ने उनके वंदे मातरम् विरोधी विचारों का विरोध किया है? उत्तर नहीं में ही मिलेगा, क्योंकि सेकूलर नीति हमेशा साम्प्रदायिक सद्भाव की बजाय मुस्लिमों की हर बात को वोट के स्वार्थ के लिए माना है, इस कारण आज भी मुस्लिमों को राष्ट्र की मूलधारा में समरस होने से रोका गया। कांग्रेस के लिए राष्ट्रहित की बजाय वोट प्रमुख रहा है। केरल में तो मुस्लिम लीग, जिसका चरित्र देश विभाजन का रहा है, उससे भी चुनावी समझौता करने में कांग्रेस को संकोच नहीं हुआ। अब भी कांग्रेस के इस चरित्र में बदलाव नहीं हुआ है। सेकूलरी का दिखावा कर देशद्रोही तत्वों का बचाव करने में उसे संकोच नहीं होता है। उसके लिए राजनीति केवल सत्ता सुख के लिए है। हाल ही में एक देशद्रोही घटना की असलियत उजागर हुई है। जेएनयू में छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया ने जिसकी छात्र यूनियन कम्युनिस्टों की है, उसने आतंकवादी सरगना अफजल गुरु की बरसी पर शहीदी जश्न मनाया। उसने और उसके साथियों ने जमकर देश विरोधी नारे लगाए। कश्मीर की आजादी के लिए भी नारेबाजी की। इन देशद्रोही गतिविधियों के आरोप में उसे और उसके समर्थक छात्रों को गिरफ्तार किया गया। कन्हैया को जमानत मिल चुकी है और वह हीरो की तरह घूम कर भाषण दे रहा है। यह शायद दुनिया में पहला उदाहरण होगा, जहां देशद्रोही गतिविधियों का आरोपी हीरो की तरह महिमामंडित हो रहा है। न केवल सेकूलर जमात वरन् मीडिया भी हीरो की तरह उसका प्रचार कर रहा है। शायद यह स्थिति केवल भारत में ही हो सकती है। अब एनआईए जांच एजेंसी ने पता लगाया है कि आईएसआईएस जैसा खतरनाक आतंकी संगठन इस घटना का फायदा उठाकर देश में आतंक का माहौल बनाना चाहता था। यह सच्चाई पकड़े गए तीन संदिग्ध आतंकियों से पूछताछ के दौरान जाहिर हुई है।
आईएस के आतंकियों को कन्हैया विवाद में हो रहे प्रदर्शनों की आड़ में दहशत का माहौल बनाने की साजिश थी। आईएस से जुड़े संगठन जुनूद अल खलीफा ए हिन्द के लिए युवकों को भर्ती करने वाले आशिफ अहमद उर्फ राजा, मोहम्मद अब्दुल एहमद और मोहम्मद अफजल के बयान से कई प्रकार की साजिश की सच्चाई सामने आई है। यदि इनकी साजिश सफल हो जाती तो कई निर्दोषों की जान जा सकती थी। इस घटनाक्रम से यह भी संदेह होता है कि कन्हैया और उसके समर्थक छात्रों ने एक साजिश के तहत देश विरोधी नारे लगाते हुए प्रदर्शन किया। देश विरोधी गतिविधियां संचालित करने वालों के समर्थन में कांग्रेस के शहजादे राहुल गांधी पहुंचे। अब जब कन्हैया और उसके साथियों के कारनामे उजागर हो गए हैं, तब भी राहुल गांधी को अपने किए का पछतावा नहीं है। जब इटली की कोर्ट ने अगस्ता हेलीकॉप्टर डील में सोनिया गांधी और अन्य कांग्रेस के नेताओं पर संदेह व्यक्त किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी एक चुनावी रैली में इस निर्णय का संदर्भ दिया तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गुस्से में आकर कहा कि मैं भारत के लिए हर प्रकार की कुर्बानी देने को तत्पर हूं। यह मेरा देश है और मेरे परिवार ने इसके लिए बलिदान दिया है। उन्होंने माना कि मेरी बहिनें और माताजी इटली में रहते हैं। उन पर भी मुझे गर्व है। सोनियाजी की देशभक्ति पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। हालांकि शरद पवार जैसे दिग्गज नेता ने विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर कांग्रेस का विभाजन किया था। कांग्रेस में ही वरिष्ठ मंत्री रहे वी.पी. सिंह ने बोफोर्स तोपों में घोटाले का मुद्दा उठाया और इसी मुद्दे कारण राजीव गांधी की सरकार को जाना पड़ा। सोनिया परिवार के इटली निवासी दलाल क्वात्रोची को भारत से चले जाने की सुविधा भी कांग्रेस सरकार ने दी। सोनिया गांधी या इनके परिवार का नाम आने पर कांग्रेसी लालपीले होने लगते हैं। राष्ट्रीयता की कसौटी कठिन समय में होती है। सोनिया जी के नेतृत्व की कांग्रेस के सिद्धांत क्या है? उसकी नीतियां की कार्यदिशा क्या है? इस बारे में कांग्रेस के बड़े नेता भी स्पष्ट व्याख्या नहीं कर सकते। कांग्रेस राहुल गांधी के हाथों में है? वे कांग्रेस के लिए ऐसा फार्मूला तलाश रहे हैं जिससे कांग्रेस फिर से शासन में काबिज हो जाए। उनके नए फार्मूलों को देश की जनता समझ चुकी है।
2014 के लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा और उपचुनाव हो इनमें राहुल के नेतृत्व को जनता नकार चुकी है। बातें जनता पसंद नहीं करती। कांग्रेस ने कथित सेकूलर पाखंड के द्वारा मुस्लिमों का वोट कबाडऩे के लिए जो पाप किए उनका एक के बाद एक का भांडा फूट रहा है। समझौता एक्सप्रेस, मालेगांव एवं हैदराबाद आदि में हुए विस्फोटों में हिन्दू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद का ढिंढोरा पीटने के लिए निर्दोष हिन्दुओं को फंसाया गया। इनमें साध्वी प्रज्ञा भारती, कर्नल प्रसाद पुरोहित, स्वामी असीमानंद को फंसाया गया। गत करीब आठ वर्षों से वे झूठे आरोपों में जेल में सड़ रहे हैं। कभी मकोका के तहत इन्हें फंसाया गया, झूठे बयान देने के लिए इनको यातनाएं दी गई। प्रज्ञा भारती को तो कैंसर की घातक बीमारी हुई। अब सुरक्षा एजेंसी एनआईए ने तथ्यों के परीक्षण के बाद माना कि प्रज्ञा भारती, कर्नल प्रसाद पुरोहित और स्वामी असीमानंद आदि पर कोई आरोप प्रमाणित नहीं होता। यह षड्यंत्र इसलिए किया कि मुस्लिमों को संतुष्ट कर उनके वोटों के लिए हिन्दू आतंकवाद का भूत खड़ा किया जाए। रा.स्व.संघ के स्वयंसेवकों को भी इस साजिश में निशाना बनाया। हिन्दू आतंकवाद के नाम से संघ पर निशाना साधा गया। दिग्विजयसिंह तो यह आरोप लगाने से नहीं चूके कि संघ हथियारों का प्रशिक्षण देता है।
इन झूठे आरोपों के कारण पाकिस्तान ने भी भारत को बदनाम करने के लिए आरोप लगाया कि समझौता एक्सप्रेस के विस्फोट में भारत के आतंकियों का हाथ है। निर्दोष साधु-साध्वी एवं हिन्दुओं को फंसाने के लिए हिन्दू विरोधी और देश विरोधी जो साजिश की गई, उसके दोषी कौन है? आठ वर्षों तक निर्दोष हिन्दुओं को जो यातनाएं दी गई, उसके लिए जो दोषी है, उनके लिए सजा क्या हो? इसका उत्तर तो लोकतंत्र में देश की जनता ही दे सकती है।
लेखक राष्ट्रवादी एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।
