अपने जीवन से जीने की कला सिखाते हैं संत: पचौरी

संत कवि सूरदास जी की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित
ग्वालियर। संत अपने जीवन से जीवन जीने की कला सिखाते हैं। संत की पहचान उनका ज्ञान होता है। आज दुनिया में कोई भी अक्षम नहीं है। यह बात रविवार को शिक्षाविद् उमाशंकर पचौरी ने समदृष्टि क्षमता विकास अनुसंधान मंडल (सक्षम) द्वारा संत कवि सूरदास जी की जयंती के उपलक्ष्य में नदीगेट स्थित विद्या भारती परिसर में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता की आसंदी से कही।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील वुचके ने की। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के समक्ष माल्यार्पण कर किया गया। कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा महारानी लक्ष्मीबाई कन्या विद्यालय से सेवानिवृत वासुदेव वर्मा व सेवानिवृत शिक्षिका जानकी वर्मा को शॉल व श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में वासुदेव शर्मा ने संत कवि सूरदास जी के भजनों की प्रस्तुति देकर उपस्थित लोगों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया।
इस मौके पर मुख्य वक्ता श्री पचौरी ने कहा कि सूरदास जी 15वीं सदी के संत कवि कहे जाते हैं। इनकी रचनाएं श्रीकृष्ण भक्ति से ओत-प्रोत हैं। उन्होंने कहा कि प्रेरणा तो अंदर से आती है। आज आवश्यकता है अपने अंदर की इच्छा शक्ति को जगाने की। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण तो भगवान थे, लेकिन उन्हें जन-जन तक पहुंचाने का काम महान संत सूरदास जी ने किया। आज वह शरीर से उपस्थित नहीं हैं, लेकिन यश रूप काया से हम सभी आज भी उनकी मौजूदगी महसूस करते हैं। उन्होंने जो भजन और छंद रचे, वह अद्भुत हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. वुचके ने कहा कि बच्चों को पैदा होने से पहले भी हम उनको अंधत्व से मुक्ति दिला सकते हैं। जरूरत है तो सिर्फ थोड़ी सावधानी की। उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाएं गर्भस्थ शिशु की जांच जरूर कराएं। अगर सही समय पर बच्चों का इलाज होगा तो यह परेशानी कभी नहीं आएगी। कार्यक्रम में उन्होंने नेत्र रोगों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन हरीशचन्द्र जायसवाल ने किया। इस अवसर पर समदृष्टि क्षमता विकास अनुसंधान मंडल (सक्षम) के प्रांतीय सचिव कृष्ण विहारी लाल श्रीवास्तव, आलोक ढींगरा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष नितेश शर्मा सहित अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
