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दक्षिणी द्वार पर भाजपा की दस्तक

दक्षिणी द्वार पर भाजपा की दस्तक
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दक्षिणी द्वार पर भाजपा की दस्तक

*प्रमोद पचौरी


यह पहली बार होगा कि देश के सुदूर दक्षिण में अभेद्य समझा जाने वाला किला अर्थात केरल में भी भाजपा सेंध लगा दे। सबसे बड़े राजनीतिक दल का दर्जा प्राप्त करने वाली भाजपा क्यूं न व्यापक विस्तार दे। इसी रणनीति के चलते उसने केरल का दरबाजा खटखटाया। पूर्व में उसका लक्ष्य आसाम है तो सुदूर दक्षिण में केरल। केरल में लंबे अरसे से वामपंथी खूनी खेल खेलकर सत्ता हथियाते रहे हैं। हिन्दुओं व हिन्दुत्व का कत्लेआम जैसी घटनाओं को जैसे नजरदंाज किया जाता रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवकों व प्रचारकों को जिस तरह ढ़ंूढ़-ढ़ूंढ़ कर निशाना बनाया गया। उनका कत्ल किया गया। लेकिन भाजपा ने पहली बार केरल की जनता की नब्ज को टटोला। इन बेहशीपन घटनाओं को सार्वजनिक मंचों पर उठाने में वह कामयाब रही है। भाजपा की उपस्थिति के बाद राज्य में अल्प संख्यक माने जाने वाले हिन्दुओं के जीवन में एक नया आयाम जुड़ता नजर आ रहा है। उसे उम्मीद है कि इस बार के चुनाव में वह अकल्पनीय प्रदर्शन करेगी। लेकिन इन सबके बावजूद बड़ा सवाल बना हुआ है क्या भाजपा राज्य में तीसरा बड़ा विकल्प यानि तीसरी धुरी बनकर उभरेगी? भाजपा के नजरिए से ही नहीं बल्कि चुनाव का नतीजा बहुत कुछ इसी पर निर्भर रहने वाला है। लोकसभा चुनाव के बाद विश्लेषकों ने कहा था भाजपा के वोटों में बढ़ोतरी से यूडीएफ को लाभ मिला। तब माना गया था कि भाजपा को मिला चार फीसदी वोट अगर यूडीएफ के पाले में खिसक गया होता तो समीकरण कुछ और ही बनता। सत्ताधारी दल कांग्रेस नेतृत्व वाले मोर्चे की सोच व रणनीति भी इसी उम्मीद के सहारे टिकी है कि लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी भाजपा उसका एंटी इनकंबेंसी वोट अपने पाले में लाती है तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा और वह फिर से सत्ता में आ जाएगी। राज्य के मुख्यमंत्री व कांग्रेस नेता ओमन चांडी फिलहाल एलडीएफ पर हमला बोल रहे हैं और मुख्य मुकाबला भी एलडीएफ से मानकर चल रहे हैं। यों तो अपनी-अपनी सोच व रणनीति का हिस्सा है। लेकिन, राज्य के जातिगत तानेबाने में उसने जैसी पैठ बनाई उससे लग रहा है कि 19 मई को कहीं छ़ुपी रुस्तम साबित न हो जाए।
भाजपा ने इस बार के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त तैयारी की है। उसने बड़े पैमाने पर संसाधन झोंके हैं तो प्रभावी जाति समीकरण तैयार करने के लिए अच्छा खासा होमवर्क किया हुआ है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष कुमानन राजशेखरन ने चुनाव से बहुत पहले घोषणा कर थी कि भाजपा केरल में नया विकल्प बनने ेजा रही है। इसके पीछे राजशेखरन की ईमानदारी व जुझारू कार्यकर्ता के तौर पर छवि का होना है। राज्य की 140 सीटों वाले केरल में अब तक कांग्रेस या वामपंथियों का शासन रहा है। कांग्रेस नेतृत्व वाले मोर्चे यूडीएफ की 75 सीटें हैं जबकि मुख्य विपक्षी दल एलडीएफ की 65 सीटें। सत्ता संतुलन के हिसाब से केरल को वामपंथियों का गढ़ कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। राज्य में जाति समीकरणों पर नजर डालें तो भाजपा वहां प्रभाशाली एड़वा जाति में असरदार संगठन श्रीनारायण धर्म पररिपलना योगम (एसएनडीपी) के एक समूह का समर्थन पाने में सफल रही। एसएनडीपी समर्थित भारत धर्म जन सेवा (बीडीजेएस)के साथ गठबंधन कर 37 सीटें दी है। एडवा जाति केरल में हिन्दू आबादी की कुल 20 फीसदी संख्या है। जबकि सवर्ण जाति का बड़ा तबका उसके साथ खड़ा हुआ है। इन तैयारियों के चलते कहा जा रहा है कि भाजपा ने राज्य के सामाजिक तानाबाने में मजबूत पैठ बनाई हुई है।
एड़वा जाति को कभी सीपीएम की रीढ़ की हड्डी कहा जाता था। एलडीएफ हिन्दू वोटों के सहारे विजयी होता रहा है। इसके अलावा 23 प्रतिशत मुस्लिम व 19 प्रतिशत ईसाई तो जैसे यूडीएफ की थाती रहे हैं। तभी आकलन है भाजपा अगर हिन्दू वोट में सेंध लगाती है तो इसका सीधा लाभ यूडीएफ को मिलेगा जबकि एलडीएफ घाटे में जाएगा। कांग्रेस भी इसी फेर में है। दूसरा समीकरण यह भी बनता नजर आ रहा है कि हिन्दू वोट भाजपा की ओर रुख करते हैं तो मुस्लिम वोट यूडीएफ की तरफ उन्मुख हो लेगा और वही सवाल उठता है कि केरल में भाजपा के मजबूत होने से क्या कांग्रेस को फायदा मिलेगा?
इस लिहाज से भाजपा लगता है दूरगामी रणनीति के हिसाब से चलती नजर आ रही है। इस बार के चुनाव में वह हिन्दू वोट बैंक को अपने पाले में समेटने में कामयाब होती है तो राज्य में तीसरी धुरी के रूप में स्थापित कर लेगी। तब राज्य की राजनीति भी भाजपा के ही इर्दगिर्द घूमती नजर आएगी। ऐसी स्थिति में यूडीएफ मुस्लिम समुदाय के सहारे प्रमुख शक्ति बना रहेगा तो एलडीएफ हाशिए पर जाएगा। 140 विधानसभा सीटों वाले केरल में आगामी 16 मई को मतदान होना है।
केरल की राजनीति लंबे अरसे से दो मार्चों में बंटी रही है। सत्ता भी पांच साल के लिए बारी-बारी से मिलती रही है। 1962 के बाद से अब तक के रिकार्ड में किसी भी मोर्चे ने लगातार दूसरी बार वापसी नहीं की है। लड़ाई कांग्रेस के नेतृत्व वाला मोर्चा यूडीएफ (यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फं्रट) व वाम मोर्चा एलडीएफ (लेफ्ट डेमोक्रेटिक फं्रट) के बीच रही है। लेकिन इस बार भाजपा की धमक भरी पारी से लग रहा है कि ट्रेंड बदलेगा। लेकिन संभावनाएं भविष्य के पिटारे में हैं। 19 मई को पिटारा खुलेगा तो सच सामने होगा।

Updated : 12 May 2016 12:00 AM GMT
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