'नंदू भैया' मालिक तो सबका एक ही है - अतुल तारे
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'नंदू भैया' मालिक तो सबका एक ही है
*अतुल तारे
सरकार तो सरकार ही होती है। उसका मालिक कौन हो सकता है? भारतीय जनता पार्टी (मध्यप्रदेश) के अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान ने बिल्कुल ठीक कहा है कि श्री प्रभाकर केलकर उनके मालिक नहीं हैं। इससे श्री नंदकुमार सिंह चौहान को क्यों फर्क पडऩा चाहिए कि श्री प्रभाकर केलकर किसानों के क्षेत्र में काम करने वाले एक संगठन अखिल भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। श्री केलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं। समाज जीवन में लम्बे समय से जुड़े हैं। समसामयिक विषयों पर उनकी अपनी एक राय हो सकती है। यही राय उन्होंने साझा की।
श्री केलकर ने कहा कि सिंहस्थ में समरसता स्नान की कोई आवश्यकता नहीं है। यह प्रयोग समाज स्तर पर और भेद पैदा करेगा, कारण नदी किसी की जाति नहीं पूछती। श्री केलकर चिंतक हैं। उन्होंने समाज में चर्चा के लिए एक विषय दिया है और यह विचार देने वाले श्री केलकर पहले व्यक्ति भी नहीं हैं। कई धर्माचार्य पूर्व में यह अभिमत प्रगट कर चुके हैं, वहीं कई धर्माचार्यों ने इस विषय पर अपनी सहमति भी प्रगट की है और इस प्रयोग को साहसिक भी बताया है। यही तो वैचारिक कुम्भ है। अच्छा होता हम नवनीत की प्रतीक्षा करते। यह मंथन का दौर है। सिंहस्थ सिर्फ क्षिप्रा के तट पर नहीं हो रहा है। अमृत मंथन इस समय समूचे देश में चल रहा है। आवश्यकता नीलकंठ बनने की है। गरल को कंठ तक धारण करने के धैर्य की इस समय आवश्यकता है। मंथन का दौर है तो हलाहल तो निकलेगा। यह समय मूल्यों को नए सिरे से परिभाषित करने का समय है। इतिहास को नए संदर्भों में, नए प्रकाश में पढऩे की आवश्यकता है। यही वजह है आज देशभर में डॉ. भीमराव अम्बेडकर चर्चा का केन्द्र बने हैं।
यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हमने महापुरुषों को अपनी-अपनी राजनीतिक, जातिगत चौखट में न केवल देखा-समझा बल्कि उन्हें बेदर्दी से अपने क्षूद्र राजनीतिक लाभ के लिए भुनाया भी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक सांस्कृतिक राष्ट्रीय संगठन है। डॉ. अम्बेडकर की 125वीं जन्मशती वर्ष को उसने समरसता वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय जब लिया, तब वह जानता था कि इसके खतरे क्यों हैं? वह जानता था कि जिन्होंने अम्बेडकर को अब तक बंधक बनाकर रखा वे बिलबिलाएंगे, वे डरेंगे भी क्योंकि यही उनकी राजनीतिक पूंजी है जिसे बेशर्मी से बेच-बेचकर वे अपनी दुकानें चला रहे थे। यही हुआ भी। कल तक जो संघ को यह कहकर गलिया रहे थे कि वे अम्बेडकर विरोधी हैं आज सवाल कर रहे हैं कि इन्हें अम्बेडकर से क्यों प्रेम हैं? अब इन्हें कौन बताए कि अम्बेडकर तो संघ के लिए प्रात: स्मरणीय प्रारम्भ से है। चित्त भी मेरी पट भी मेरी अंटा मेरे बाप का, वही ठसक नंदू भैया जैसा कि केलकर हमारे मालिक नहीं। भाजपा का सिंहस्थ समरसता स्नान नि:संदेह एक राजनीतिक प्रयोजन कहा जा सकता है। इससे समरसता बढ़ेगी या नहीं, यह आकलन भाजपा को करना है और इसके नफा-नुकसान की भी वही जिम्मेवार होगी। सवाल किया जा सकता है कि एक धार्मिक पर्व पर यह प्रपंच क्यों? भाजपा को इस सामयिक प्रश्न का उत्तर भी शालीनता से अपने प्रयोग को एक सार्थक मुकाम तक पहुंचाकर देना चाहिए।
श्री केलकर ने भी समाज से आ रही एक आवाज को स्वर दिया है। सवाल उनसे भी पूछने वाले संभव है पूछ रहे होंगे कि वे तो किसान संघ के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं। भाजपा के आयोजन पर टीका क्यों कर रहे हैं? श्री केलकर का बयान उन छोटी राजनीतिक बुद्धिवालों पर एक तमाचा है, जो यह कह-कहकर अपना खाना हजम करते हैं कि संघ की प्रेरणा से चल रहे सारे संगठनों का एक ही काम है कि येन-केन-प्रकारेण भाजपा को सत्ता में देखना। यह बयान बताता है कि समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में कार्यरत इन संगठनों की कार्य पद्धति, लक्ष्य देश का, देशहित में जागरण एवं प्रबोधन है।
इनके लिए सत्ता तो लक्ष्य है ही नहीं, वे इसे अपने लिए कोई साधन भी नहीं मानते। अत: उनके विचार उनके कदम सत्ता प्रतिष्ठान के अनुकूल रहे, इसकी अपेक्षा भी नहीं की जानी चाहिए। पर विचार नंदू भैया को करना चाहिए कि एक श्रेष्ठ विचारक के बयान को इस रूप में खारिज करना उनके पद की गरिमा के अनुकूल है क्या? आज वे ऐसा अहंकार कर रहे हैं इसीलिए कभी उनकी एक वरिष्ठ मंत्री अपने पैरों से एक बच्चे को दुत्कारती है तो दूसरा मंत्री अफसरों के सार्वजनिक रूप से कान सिर्फ अपनी हेकड़ी दिखाने के लिए पकड़वाने की बात करता है तो तीसरा मुर्गा बनाने की धमकी। यही घमंड यही दंभ दिग्विजय सिंह को ले डूबा था था आज यही मद प्रदेश के अधिकांश मंत्रियों में है। अत: श्री नंदकुमार सिंह चौहान को चाहिए कि वे श्री नरेन्द्र मोदी को भगवान बनाने की चाटुकारिता भी न करें और उनका मालिक कौन है या कौन नहीं, यह भी बताने की चेष्टा न करें। लोकतंत्र में मालिक सबका एक ही है- वह है जनता जनार्दन और लोकशाही में जनता अमर्यादित आचरण बर्दाश्त नहीं करती। इसे समय रहते वे सुधारें तो अच्छा अन्यथा मुख्यमंत्री भले ही पूर्ण विनम्रता एवं सरलता के साथ कुर्सी पर चढ़कर खम्बों को दुरुस्त करते रहें, जमीन खिसकते देर नहीं लगती।
शुभ सिंहस्थ