पलाश में चोरी के बच्चें का भी होता था सौदा?

मामला नवजात बच्चों की खरीद-फरोख्त का
आशा कार्यकर्ता उगल रहीं राज, घण्टों हो रही पूछताछ
ग्वालियर। पलाश अस्पताल में बच्चों की खरीद-फरोख्त का घृणित मामला आज हर ओर चर्चा का विषय बन गया है। प्रशासन की लचर व्यवस्था का चंद लोगों ने ऐसा फायदा उठाया कि मासूम बच्चों का सौदा करने वालों ने पैसों की खातिर उस मां की गोद को सूना कर दिया, जिसने नौ माह तक उसे अपने गर्भ में संभाल कर रखा हुआ था। पुलिस को कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं कि आशा कार्यकर्ताओं ने सरकारी अस्पताल से बच्चे को चोरी कर पलाश अस्पताल में दिया था। इस मामले में पुलिस ने करीब आधा दर्जन आशा कार्यकर्ताओं से गहन पूछताछ की है, जिसमें इस गोरखधंधे के कुछ सबूत मिले हैं।
फर्जी व झोलाछाप डॉक्टर बंगाली उर्फ तापोश कुमार गुप्ता और दलाल अरुण भदौरिया ने पलाश अस्पताल में आशा कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर केवल नवजात बच्चों की खरीद-फरोख्त ही नहीं की है, बल्कि इन लोगों ने उस मां को भी जिदंगी भर रोने पर मजबूर कर दिया, जिसके लाल को आंचल में आने से पहले ही लापता कर दिया। इस मामले में पुलिस ने आधा दर्जन के करीब आशा कार्यकर्ताओं को मुरार थाने बुलाकर घण्टों तक पूछताछ की, जिसमें ऐसे सबूत मिले हैं कि अरुण भदौरिया और बंगाली उर्फ तापोश गुप्ता के लिए आशा कार्यकर्ता बच्चा तक चोरी कर लेती थीं। पुलिस इस हाई प्रोफाइल मामले में कड़ी से कड़ी जोडऩे का प्रयास कर रही है। इस मामले में काल्पीब्रिज कॉलोनी में रहने वाली मोना, उसकी बड़ी बहन नीलम निवासी नदी पार टाल, नर्स सुनीता और अन्य से पूछताछ में अहम खुलासे हो रहे हैं। स्वदेश इस बात को पहले ही प्रकाशित कर चुका है कि पलाश अस्पताल को संचालित करने में आशा कार्यकर्ता द्वारा ही अरुण भदौरिया और बंगाली उर्फ तापोश गुप्ता की मदद की जा रही थी। पलाश अस्पताल में हर रोज लाखों रुपए की कमाई होती थी, जिसमें आशा कार्यकर्ताओं का बहुत बड़ा योगदान था। गोरखधंधे में फंसने पर आशा कार्यकर्ता पुलिस के सामने अपने आपको बेगुनाह बता रही है। पुसिल को उसकी बात पर यकीन नही हो रहा है। तभी एक आशा कार्यकर्ता को चार दिन से थानं में ही रोककर रखा हुआ है। पुलिस उस सूत्र तक पहुंचने का प्रयास कर रही है, जो बच्चों को चोरी करवाने में आशा कार्यकर्ता की मदद करता था। पुलिस इस मामले की अधिकारिक पुष्टि नहीं कर रही है, लेकिन एक बड़ा खुलासा करने से पहले हर एंगल से पूछताछ कर आरोपियों को रांउडअप करने की रणनीति बनाई जा रही है।
जच्चाखाने से आशा कार्यकर्ताएं लापता
जिले के मुरार जच्चाखाने ने प्रसव कराने के मामले में कमलाराजा अस्पताल को भी पीछे छोड़ दिया था। इस जच्चाखाने में एक माह में 1200 से भी ज्यादा गर्भवती महिलाओं का प्रसव कराया जाता है। इस वजह से जच्चाखाने में सुबह से ही आशा कार्यकर्ताओं का जमाबड़ा शुरू हो जाता था, लेकिन जब से पलाश अस्पताल का मामला सामने आया है, तब से जच्चाखाने में आशा कार्यकर्ताओं ने आना ही बंद कर दिया है। बजह साफ है कि गिरोह के तार पलाश तक जुड़े थे। पुलिस आशा कार्यकर्ताओं को चुन चुनकर उठा रही है क्योंकि असली कड़ी यहीं से जुड़ी होने के प्रमाण पुलिस को मिल रहे हैं। आशा कार्यकर्ताओं के जच्चाखाने से लापता होने पर कुछ सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों के भी चेहरे उदास हैं।
जच्चखाने से पलाश तक ऐसे पहुुंचती थीं गर्भवती महिलाएं
जिस महिला को सामान्य प्रसव नहीं हो पाता था, उसके परिजनों को डॉक्टर बड़े अस्पताल ले जाने की सलाह देते थे। बस यही सबसे बड़ा हथियार आशा कार्यकर्ताओं का था। जैसे ही उसे पता चलता था कि गर्भवती को कमलाराजा अस्पताल ले जाने के लिए कहा गया है। इसके बाद आशा कार्यकर्ता प्रसूता महिला के परिजनों को अपने जाल में फंसाने के लिए जुट जाती थीं।े आशा कार्यकर्ता गर्भवती महिला के परिजनों से कहतीं थी कि हम बिना ऑपरेशन के प्रसव करवा देंगे, लेकिन थोड़े पैसे खर्च करना पडं़ेगे। मरता क्या न करता, जैसे भी हो, महिला का पेट नहीं फटना चाहिए। पलाश अस्पताल में ले जाकर गर्भवती को छोड़ दिया जाता था। नर्स सुनीता, जो कि दक्षिण भारत की है, वह बिना किसी महिला डॉक्टर के ओटी में ले जाकर प्रसव कराती थी। इसके बाद जो बच गया भाग्य है। कई बार पलाश में गर्भवती महिला के परिजनों और स्टाफ में जूतम पैजार भी होती थी।
सरकारी तंत्र भी लापरवाह
गर्भवती महिलाओं के लिए प्रदेश सरकार ने कई योजनाएं चला रखी हैं। बावजूद इसके जच्चाखाने में पदस्थ नर्स, महिला डॉक्टर, संविदा कर्मचारी, जननी एक्सप्रेस के चालक चंद रुपयों की खातिर गर्भवती महिलाओं को परेशानी में सही सलाह देने का प्रयास नहीं करते हैं, जिसका खामियजाना प्रसूताओं और उनके परिजनों को भुगतना पड़ता है, आशा कार्यकर्ता जो गोरखधंधा जच्चाखाने में चला रही हैं। इसकी जानकारी अधिकारी व कर्मचारियों को न हो। ऐसा हो नहीं सकता। सरकारी तंत्र इस मामले में लापरवाही बरतता है, जबकि सिविल सर्जन का कार्यालय मुरार में ही है और उनके सामने कई बार ऐसी समस्याएं आती हैं, लेकिन सब भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है।
बंगाली डॉक्टर से शोहरत बन गया तापोश
नदीपार टाल पर तापोश कुमार गुप्ता को कोई भी इस नाम से नहीं जानता है। तापोश ने यहां पर एक दशक से भी ज्यादा समय तक दुकान चलाई और आलीशान मकान बनाया, जिसे क्षेत्र के लोग आज भी बंगाली डॉक्टर के नाम से जानते हैं। तापोश कुमार ने बंगाली डॉक्टर के नाम से ही शोहरत पाई थी। बच्चों की खरीद-फरोख्त के मामलें में फंसने पर लोगों को ज्यादा अचरज तो नहीं हो रहा है क्योंकि तापोश का विवाद और गलत कामों से हमेशा से नाता रहा है।
नर्सिंग होम के डॉक्टर भी नपेंगे
अरुण भदौरिया और तापोश गुप्ता ने शहर के कुछ नर्सिंगहोम के डॉक्टरों के नाम बताए थे। पुलिस अब उन डॉक्टरों को बुलाकर पूछताछ करेगी। सूत्र बताते हैं कि दो-तीन तो नामचीन नर्सिंगहोम हैं, जो इस गोरखधंधे में लिप्त हंै। तो वहीं डॉ. पीके वर्मा, नेहा, पीआर दिनकर, अभिषेक वाजपेयी से भी जल्दी ही ऐसे डॉक्टरों से पुलिस राज उगलवाएगी। अब इन डॉक्टरों का नपना तय माना जा रहा है।
इन्हें ढ़ूंढ़ रही है पुलिस
पारसेन गांव की आशा कार्यकर्ता विमला काफी चर्चित है। उसने कई प्रसूताओं को पलाश अस्पताल में पहुंचाया था, लेकिन अब वह भूमिगत हो गई है, तो वहीं राधा, राखी, मिथलेश के अलाव अन्य कार्यकर्ताओं की भी पुलिस तलाश कर रही है।
करोड़ों का धंधा18 हजार बरामद
पुलिस यह दावा तो कर रही है कि पलाश अस्पताल में बच्चों की खरीद-फरोख्त की जाती थी। संचालक तापोश गुप्ता, सह प्रबंधक अरुण भदौरिया को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस इनके घर से मात्र 18 हजार रुपए ही बरामद कर सकी है, जो कि हास्यप्रद है।
इनका कहना है
''कुछ आशा कार्यकर्ताओं को थाने बुलाकर पूछताछ की है। इनसे बच्चों को चोरी कराने की जानकारी मिली है। प्रमाण एकत्रित किए जा रहे हैं।''
कुमार प्रतीक
प्रभारी पुलिस अधीक्षक