परीक्षा से घबराएं नहीं धैर्य से लें काम

उत्तेजना में आकर न लें आत्मघाती निर्णय अनावश्यक जोर न डालें अभिभावक
ग्वालियर। म.प्र. माध्यमिक शिक्षा मंडल की बोर्ड परीक्षाएं एक मार्च से शुरू हो चुकी हैं। ऐसे में कई घण्टों की पढ़ाई के बाद भी बच्चों को विभिन्न तरह की उलझनें सता रही हैं। कुछ बच्चों का कोर्स पूरा नहीं हो पाया है तो किसी का कोर्स पूरा होते हुए भी उनमें आत्मविश्वास की कमी के कारण परीक्षा को लेकर उन्हें डर सता रहा है। ऊपर से अभिभावक भी अच्छे अंकों के लिए दबाव बना रहे हैं। इससे बच्चों में बेवजह तनाव बढ़ रहा है। ऐसे में चिकित्सकों का कहना है कि छात्र-छात्राएं परीक्षा से घबराएं नहीं, धैर्य से काम लें। बिना टेंशन पढ़ाई करके परीक्षा में भाग लें। जो पढ़ाई की है, उसे ही दोबारा पढ़ लें। इससे वे अच्छे अंक हासिल कर सकते हैं। अभिभावकों को भी चाहिए कि वह बच्चों की मदद करें और किसी तरह का दबाव न बनाएं। चिकित्सकों का कहना है कि बोर्ड की परीक्षा को लेकर छात्र-छात्राओं की चिंता लाजिमी है, लेकिन सभी को चाहिए कि वह बिना कोई चिंता के परीक्षा में हिस्सा लें।
भरपूर भोजन करें
पहले से जो पढ़ाई की है, उसे ही दोबारा पढ़ लें तो अच्छे अंक आ सकते हैं। तनाव में रहने के कारण बच्चे डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं। भूख कम लगती है, नींद कम आती है, चिड़चिड़ापन रहता है। पांचन शक्ति कमजोर होने से उल्टी-दस्त का भी खतरा रहता है। अभिभावकों को चाहिए कि वह अपने बच्चों का ख्याल रखें। पढ़ाई को लेकर अन्यथा दबाव न बनाएं। खुशी माहौल में बच्चे को परीक्षा देने दें।
बच्चें पर दबाव न डालें अभिभावक: डॉ. जोशी
मनोचिकित्सक डॉ. सुनील भास्कर जोशी ने बताया कि बच्चों की पढ़ाई की तैयारी पूरी नहीं होती है। इसी कारण परीक्षा के दौरान बच्चों में तनाव बढ़ता है। बच्चे पूरे वर्ष पढ़ाई नहीं करते हैं और जब परीक्षा आती है तो बच्चे तनाव में आ जाते हैं। आज के समय में प्रतिस्पर्धा इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि बच्चों में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ मची हुई है, जिससे बच्चों में तनाव की स्थिति पैदा हो रही है। ऐसे में बच्चे गलत कदम उठाते हुए आत्महत्या तक कर लेते हैं। ऐसी स्थिति में अभिभावकों को बच्चों को आठ घण्टे से ज्यादा फोर्स नहीं करना चाहिए। बच्चों को अच्छा पोष्टिक भोजन देना चाहिए। पढ़ाई के दौरान बच्चों को आधे से एक घण्टे का आराम भी देना चाहिए। हर माता-पिता को अपने बच्चे की क्षमता पता होती है। उस क्षमता के अनुसार ही बच्चे से उम्मीद रखना चाहिए। जब माता-पिता अपने बच्चों से उनकी क्षमता से ज्यादा उम्मीद रखने लगते हैं, तब बच्चे झूठ बोलने लगते हैं, साथ ही बातों को छुपाने लगते हैं और इस दौरान जब बच्चों पर ज्यादा दबाव बनाया जाने लगता है तो वह आत्मघाती कदम उठाने के लिए सोचना शुरू कर देते हैं।
समाज शास्त्री प्रो. बीना शुक्ला ने बताया कि आज बच्चे परीक्षा के दौरान बहुत ही तनाव में रहते हैं। इसके लिए बच्चों को उनके अभिभावकों का सपोर्ट होना बहुत जरूरी है। आज बच्चे खुद से ही आगे निकलने की होड़ में तनाव लेना शुरू कर देते हैं। इसके लिए हमें शुरू से ही बच्चों के साथ ऐसा माहौल रखना चाहिए, जिससे वे तनाव न लें। साथ ही बच्चों से निरंतर बातचीत करते रहना चहिए, जिससे वह अपने मन की बात अपने घर में किसी भी सदस्य को बोल सकें। साथ ही स्कूल में भी बच्चों के साथ काउन्सलिंग करते रहना चाहिए, जिससे बच्चों की समस्याओं को दूर किया जा सके।
भय के कारण 82 छात्र नहीं आए परीक्षा देने
नकल रोकने के नाम पर बोर्ड परीक्षा में प्रशासन द्वारा जरूरत से ज्यादा सख्ती बरती जा रही है। इससे बच्चों में भय का वातावरण देखने को मिल रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण वे छात्र हैं, जो परीक्षा में शामिल नहीं हो रहे हैं। गुरुवार को हायर सेकेण्डरी के अंग्रेजी विशिष्ट विषय की परीक्षा में भी 82 छात्र शामिल नहीं हुए। बताया गया है कि आज की परीक्षा में ग्वालियर जिले में 5126 छात्र-छात्राएं पंजीकृत थे, जिनमें से केवल 5044 छात्र-छात्राएं ही परीक्षा में शामिल हुए, जबकि 82 छात्र-छात्राएं अनुपस्थित रहे। इससे पहले विगत मंगलवार को हायर सेकेण्डरी के हिन्दी विशिष्ट विषय की परीक्षा में 520 और बुधवार को हाईस्कूल के संस्कृत विषय की परीक्षा 1414 छात्र-छात्राएं शामिल नहीं हुए थे। विषय विशेषज्ञों का कहना है कि परीक्षा को लेकर छात्रों के मन से व्याप्त भय को दूर करने के लिए प्रशासन को परीक्षा का माहौल ऐसा बनाने की जरूरत है, जिससे बच्चे उत्साह पूर्व परीक्षा देने के लिए आएं।