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जहरीला होता जा रहा है बेतवा का पानी

झांसी। बेतवा का पानी किसी जहर से कम नहीं है। यह एक शोध में भी उजागर हो चुका है तथा इसमें घुला रसायन शरीर को हानि पहुंचाता है। इतना ही नहीं हवा में घुली राख भी फेंफड़ों को नुकसानदेह साबित हो रही है। इधर, बेतवा का एक समय में सबसे शुद्ध पेयजल माना जाता था। वैज्ञानिकों ने आज से कई साल पहले इस पर रिसर्च की थी। उसके बाद यह नदी अपने अस्तित्व को बचाने का प्रयास कर रही है। जिसकी कभी कोई गहराई नहीं ले पाता था। उस नदी में सिल्ट जम चुकी है और नदी का एक हिस्सा सिल्ट के कारण टापू में तब्दील हो चुका है।

पारीछा प्लांट जो हवा और पानी दोनों को दूषित किए हुए है। एक ओर प्लांट की राख पानी में बहाई जा रही है तो दूसरी ओर तेलीय पदार्थ भी पाइपों के जरिए सीधे पानी में घोला जा रहा है। चिमनियों से निकलने वाली राख भी नुकसानदेह साबित हो रही है। पानी में बहकर आने वाली राख की बात करें तो यह राख पानी के जरिए सीधे नदी में बहाई जा रही है। ऐसे में नदी की गहराई कम होती जा रही है और पानी जहरीला हो रहा है। सिल्ट के कारण नदी की चौड़ाई भी दिन पर दिन कम होती जा रही है। दूसरी ओर पानी में बहकर आने वाला तरल पदार्थ जल में रहने वाले जीवों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

वहीं, हवा में उड़ रही राख से भी आसपास का 15 किलोमीटर का क्षेत्र दूषित है। यदि जल्द ही प्रदूषण विभाग इस ओर ध्यान नहीं देता तो यह समस्या एक दिन नासूर बन जाएगी। जबकि शोधकर्ता स्पष्ट बता चुके हैं कि बेतवा की नहर में जो पानी बह रहा है। उसमें आर्सेनिक काफी मात्रा में है। एक तरह से नहर में पानी नहीं बल्कि जहर का बहाव हो रहा है। गांव के रहने वाले 80 वर्षीय अरजू ने बताया कि जब से 220 मेगावॉट की 4 यूनिट स्थापित हुई हैं जब से वहां की हवा व पानी में जहर घुल गया है। ऐसे में उनका सांस लेना भी दुर्लभ हो चुका है।

इधर, पारीछा गांव के निवासी मातादीन 68 वर्ष ने बताया कि वह पारीछा प्लांट के ही कर्मचारी हैं और रिटायर हो चुके हैं। उनके अनुसार गांव में शुद्ध पानी व हवा का नामोनिशान नहीं है। उन्होंने बताया कि पानी में जो तेलीय पदार्थ बह कर आता है। उसमें यदि जानवर नहा ले तो उसकी खाल झडऩे लगती है इतना ही नहीं गांव के कई लोगों को उस पानी में नहाने से फफोले तक हो चुके हैं।
इधर, 74 वर्ष शुगर सिंह ने बताया कि पानी में राख व तेलीय पदार्थ के मिश्रण से वहां का पानी इतना जहरीला हो चुका है कि यदि कोई जानवर उस पानी को पी ले तो उसकी तीन-चार दिन में मौत हो जाती है। ऐसे कई जानवर अब तक प्लांट की लापरवाही के कारण जान गंवा चुके हैं। यदि जल्द ही इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो बुंदेलखंड को तृप्त करने वाली नदी शीघ्र ही अपना अस्तित्व खो देगी। जिस नदी में पहले दो-तीन साल के लिए पानी का स्टॉक रहने की संभावनाएं रहतीं थीं। सिल्ट के कारण अब उसमें एक साल का स्टॉक करना मुमकिन नहीं होगा तथा नदी का अधिकतम हिस्सा टापू में तब्दील हो जाएगा।

Updated : 28 March 2016 12:00 AM GMT
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