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देशद्रोहिता के आधार पर सेक्यूलर एजेन्डा

*जयकृष्ण गौड़

देश के लिए संवैधानिक व्यवस्थाएं हैं, संविधान ने हमें जो अधिकार दिये हैं, उनका दुरूपयोग जब देश के विरोध में होने लगेगा, तब देश की हानि के साथ स्थापित व्यवस्थाओं को भी ग्रहण लग जायेगा। हमारे महान पूर्वजों ने विदेशी गुलामी से मुक्त होने के लिए लम्बा संघर्ष किया, बलिदान दिये। यहां संघर्ष केवल राजनैतिक स्वतंत्रता के लिए नहीं वरन सांस्कृतिक स्वतंत्रता के लिए भी था। दुनिया में एक भी देश ऐसा नहीं है जहां वैचारिक विविधताओं के बाद भी सांस्कृतिक ताने बाने से भारत हजारों वर्षों से एक राष्ट्र के रूप में स्थित है। राजनैतिक प्रदूषण में भी सांस्कृतिक गतिविधियां सतत् चल रही हैं। देश तोड़क शक्तियों का शोर चाहे बयानबाजी में दिखाई दे लेकिन इनको समाप्त करने की शक्ति देश की जनता में है। आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर ने यमुना किनारे भव्य सांस्कृतिक कुंभ का आयोजन किया। देश-विदेश के कलाकारों ने अपनी कला को प्रदर्शित किया, इसमें प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत के पास ऐसी सांस्कृतिक धरोहर है जिसकी दुनिया को तलाश है, बाजार में तन को सुख देने वाली सुविधा मिल सकती है वरन् मन को सुख देने वाली हमारी संस्कृति है। विडंबना है कि पर्यावरण के लिए बनी राष्ट्रीय हरित पंचाट (एनजीटी) ने आर्ट ऑफ लिविंग के आयोजन पर प्रदूषण के नाम पर पांच करोड़ का दंड निर्धारित कर दिया। राज्यसभा में विपक्षी दलों ने इस विश्वस्तर के भव्य आध्यात्मिक कार्यक्रम के विरोध में प्रलाप भी किया। ऐसा लगता है कि चाहे कांग्रेस हो या जद (यू) आदि हो, ये भारत के होते हुए भी भारत की आत्मा को समझ नहीं पाये, इसलिए न केवल भारतीय जनता पार्टी बल्कि उस सांस्कृतिक विचार प्रवाह का भी विरोध करते हंै जिसके आधार पर भारत का राष्ट्र जीवन है। कांग्रेस जो करीब पांच दशक तक शासक दल रहा, उसने अपनी दुर्गति से भी सबक नहीं सीखा। न उसमेें लोकमान्य तिलक, सुभाषचंद्र बोस का प्रखर राष्ट्रवादी विचार है और न गांधीजी के विचार उसमें हंै, विचार शून्य होकर सत्ता सुख के लिए तड़पती कांग्रेस की राजनीति हो गई। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया जी को दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि उनके जीन्स में इटली है, उनको चाहे भारत की राजनीति की समझ हो, लेकिन भारत की आत्मा की समझ उनमें नहीं है। कांग्रेस के शहजादे राहुल गांधी दूसरो के लिखे पाठ को पढऩा सीख गये लेकिन उनमें मौलिक विचारों का अभाव है, ऐसा लगता है कि कोई छात्र बिना अध्ययन के नकलकर परीक्षा दे रहा है। इस बारे में फिल्मी कलाकार अनुपम खेर ने एक टीवी चैनल के साक्षात्कार में कहा कि राहुल गांधी राजनीति के लायक नहीं हंै, जिस दिन वे नरेन्द्र मोदी के वन टेन (दसवां भाग) भी हो जायेंगे उस दिन मैं उनका फेन (प्रशंसक) हो जाऊंगा। इससे भी अधिक वैचारिक दुर्गति और क्या होगी कि कांग्रेस में ऐसे गुलाम को पूरी छूट दे रखी है, जो देशभक्त संस्थाओं को भी आईएसआईएस जैसे खूंखार आतंकी संगठन से तुलना करते हैं।
गुलाम नबी आजाद कांगे्रस के काबीना मंत्री रहे, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता की श्रेणी में उनका नाम है, उन्होंने जो रा.स्व. संघ की आलोचना करते हुए कहा, उससे तो यह आभास होता है कि कोई भारत का दुश्मन पाकिस्तानी बोल रहा है। राजस्थान के नागौर में संघ की अ.भा. प्रतिनिधि सभा की बैठक सम्पन्न हुई, विश्व के सबसे बड़े संगठन की अपनी कार्यपद्धति है। हर वर्ष प्रतिनिधि सभा की बैठक में संगठन को व्यापक करने पर विचार होता है। इसमें कभी किसी राजनैतिक दल का विरोध नहीं हुआ। संघ के राष्ट्र चिंतन के अनुष्ठान में राजनीति से दूर रखा जाता है। देश विरोधी ताकतों को परास्त करने के बारे में गहन चिंतन होता है। हाल ही में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया और अन्य उसके दोस्तों ने जो देश विरोधी बाते कहीं, देश को तोडऩे और बर्बाद करने के नारे लगाये। ऐसी देश विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाने की सलाह संघ की प्रतिनिधि सभा में दी है। कांग्रेस के गुलाम को यह जानना होगा कि संघ के स्वयंसेवक पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी और वर्तमान प्रधानमंत्री श्री मोदी भी हैं, जिनकी कार्यपद्धति से संस्कारित होकर देश के लिए जीने वाला नेतृत्व निकला, जिसके स्वयंसेवक प्राकृतिक आपदा में अपना जीवन संकट में डालकर सेवा करते हैं। इसका सौवां हिस्सा भी कांगे्रस नेतृत्व में दिखाई नहीं देता। कांग्र्रेस के सोनिया राहुल अपने गुलामों के बोल पर अंकुश लगायें तो अच्छा हो। यह भी विडंबना है कि देश को बर्बाद करने की गतिविधियां चलाने वाले कुछ छात्रों के बीच जाकर उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त करने जाने वाले राहुल गांधी के अंदर किस प्रकार की देशभक्ति का प्रवाह है, इसका उत्तर तो वे ही दे सकते हैं, लेकिन देश की जनता ने जान लिया कि कांग्रेस के शहजादे के अंदर देशभक्ति का पैमाना क्या है? इसकी चर्चा पूरे देश में हो रही है। इसी प्रकार गुजरात में हुए २००४ के एनकाउंटर में लश्करे तैयबा की आतंकी इशरत जहां अपने तीन साथियों के साथ मारी गई थी, इस मुठभेड़ को लेकर कांगे्रस नेतृत्व ने पूरा बुद्धि कौशल इशरत के मुठभेड़ को फर्जी बताकर तबके गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को फंसाने में लगा दी। जब पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी आतंकी हेडली एवं भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने तथ्यों के साथ स्पष्ट कर दिया कि इशरत लश्करे तैयबा की आतंकवादी है और लश्कर ने श्री मोदी को निशाना बनाने के लिए इशरत और उसके आतंकियों को भेजा था। अब जब हेडली के बयान और जांच एजेंसियों ने इशरत का आतंकी होना सिद्ध कर दिया। इसके बाद भी कांग्रेस नेतृत्व इस मामले को राजनैतिक दृष्टि से भुनाने की साजिश करती रहती है। कांग्रेस का सेक्यूलर एजेंडा यह रहता है कि यदि किसी मुस्लिम की बकरी भी मर जाय तो उसका दोष भाजपा और हिन्दू संगठनों को देना प्रारंभ कर देते हैं। चाहे दादरी का मामला हो या इशरत के एकाउंटर का सवाल हो, इनमें सेक्यूलर जमात अपने वोट की तलाश करती है।
इन सेक्यूलरों को कोई हमदर्दी मुस्लिमों से है, यह सच नहीं है, इस प्रकार के सेक्यूलर एजेन्डा के पीछे केवल मुस्लिम वोट बैंक का स्वार्थ रहता है। यही स्वार्थ अफजल गुरू की फांसी पर सेक्यूलरी आंसू बहाते हैं। इस प्रकार की छद्म सेक्यूलरी देश का काफी अहित कर चुकी है। हालांकि नरेन्द्र मोदी के मुस्लिम विरोधी बताने की साजिश सन् २००२ के दंगों से प्रांरभ हुई, उनकी छवि को धूमिल करने में मीडिया ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी, इसके बाद भी इन सब चुनौतियों का सामना करते हुए श्री मोदी को देश की जनता ने उन्हें निर्दोष माना और न केवल गुजरात की जनता वरन् भारत की सवा सौ करोड़ जनता ने देश का नेतृत्व सौंप दिया। यह स्थिति कांगे्रस और अन्य कथित सेक्यूलरों के मन में चुभ रही है कि रा.स्व. संघ का स्वयंसेवक देश का प्रधानमंत्री है। सच्चाई यह है कि नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में दुनिया मेें भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है। सुरक्षा की दृष्टि से भी भारत की स्थिति पहले से अधिक सुदृढ़ है। अब भी कांग्रेस नेतृत्व सरकार की हर नीति का विरोध कर अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं। विपक्ष की पूरी कोशिश रहती है कि सरकार के हर काम में अवरोध पैदा किया जाय। इसके बाद भी श्री मोदी के बढ़ते कदम नहीं रोक सके हैं। आध्यात्मिक कार्यक्रम देश के छोटे बड़े नगरों में सतत चल रहे है। श्री श्री रवि शंकर के जमुना किनारे आयोजित विश्व सांस्कृतिक कार्यक्रम में लाखों लोगों ने भाग लिया। विदेशी मेहमान भी आये। इसमें भारत के सांस्कृतिक वैभव को दुनिया ने देखा। इसको लेकर भी ये सेक्यूलर विरोध दर्ज करा रहे हैं। इसे राष्ट्रीय विडंबना ही कहेंगे कि धर्म, संस्कृति और राष्ट्र सेवा के कार्यों में भी राजनैतिक हित की तलाश की जाती है। कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के लिए राजनीति दलीय हित पर केन्द्रित है। राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर जो दल राजनीति करते हंै, उससे देश दुनिया का सिरमौर बन सकता है। यह भारत के लिए शुभ है कि राष्ट्रवादी नेतृत्व के हाथ में देश की बागड़ोर है, अब तो पाक कब्जे वाले कश्मीर का नेतृत्व पाकिस्तान की गुलामी से मुक्ति चाहता है। जेनेवा में पाक की गुलामी से मुक्त होने के लिए प्रदर्शन किया। भारत का समय चक्र अखंड भारत की ओर घूम रहा है।
लेखक-राष्ट्रवादी लेखक और वरिष्ठ पत्रकार

Updated : 15 March 2016 12:00 AM GMT
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