पंपा पर चुप्पी यमुना पर बवाल

*अतुल तारे
भारत के दक्षिण में एक राज्य है केरल। केरल में एक नदी है पंपा। पंपा को दक्षिण की गंगा माना जाता है। यह केरल की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। पवित्र शबरीमाला मंदिर इस नदी के किनारे पर है। क्या आप जानते हैं कि दक्षिण क्षेत्र को जीवन देने वाली इस नदी को प्रदूषित करने में प्रमुख योगदान किसका है? शायद आपको पता भी नहीं होगा कारण देश के प्रचार माध्यम पर्यावरण विद इस पर खामोश हैं। राष्ट्रीय हरित पंचाट के एजेंडे में भी पंपा नदी नहीं है। क्यों नहीं है, कारण यह प्रदूषण हो रहा है, ईसाई समाज के वार्षिक सम्मेलन से। एशिया का सबसे बड़ा ईसाई सम्मेलन हर साल जनवरी या फरवरी में सात से दस दिन नदी के किनारे होता है। न केवल सम्पूर्ण भारत से अपितु एशिया के ईसाई पंथ मानने वाले धर्मावलंबी आते हैं और नदी क्षेत्र को सम्मेलन स्थल के रूप में उपयोग करते हैं। यही नहीं केरल सरकार जहां-जहां आवश्यक होता है सम्मेलन को देखते हुए पानी को रोकने के लिए अस्थाई बांध भी बनाती है। इस सम्मेलन को मेरामॉन दीक्षांत समारोह का नाम दिया जाता है। लगभग डेढ़ लाख ईसाई पंथ के श्रद्धालु यहां आते हैं और सम्मेलन के बाद नदी का पूरा क्षेत्र कचरा घर बन जाता है। पर आश्चर्य की बात यह है कि आज तक किसी नदी प्रेमी ने राष्ट्रीय स्तर पर इस सम्मेलन के खिलाफ आवाज नहीं उठाई। यह सवाल नहीं खड़ा किया गया कि क्यों आखिर एक सम्मेलन की खातिर नदी के प्रवाह के साथ खिलवाड़ किया जाता है।
आज इस नदी पर 30 लाख लोग आश्रित हैं। 37900 हेक्टेयर जमीन पर नदी के जरिए खेती होती है। आर्ट ऑफ लिविंग ने इस नदी को जीवन देने का बीड़ा उठाया है। 14 जिलों में लगभग 1500 कार्यकर्ता वर्ष 2014 से पंपा सफाई समिति के झंडे तले नदी को अविरल करने के प्रयास में रत हैं। यही नहीं विश्व हिन्दू परिषद ने ईसाई समाज के इस सम्मेलन के चलते हो रहे प्रदूषण को रोकने के लिए एक अभियान भी चलाया। प्रशासन को लगातार ज्ञापन भी दिए पर सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। यह सवाल आज खड़ा करने का उद्देश्य राजधानी नई दिल्ली में विश्व सांस्कृतिक उत्सव को लेकर हुए अनावश्यक विवाद को लेकर है कथित पर्यावरणविदों ने इस उत्सव के कारण यमुना को खतरा बताया है। राष्ट्रीय हरित पंचाट ने भी आखिरी वक्त पर बड़ी तत्परता दिखाई है। इन्हीं नदी प्रमियों के लिए कुछ और आंकड़े एवं तथ्य, यमुना की कुल लंबाई 1367 किलोमीटर है जिसमें दिल्ली का क्षेत्र 22 किलोमीटर है जो वजीराबाद से ओखला बैराज तक है। इस 22 किलोमीटर के क्षेत्र में कुल 22 नाले यमुना में मिलते हैं जिनमें नजफगढ़ शाहदरा, तुगलकाबाद प्रमुख है। यमुना की सफाई के लिए कुल 5600 करोड़ की योजनाएं चल रही हैं। यही नहीं हरियाणा के यमुनानगर, जगधारी, करनाल, पानीपत, गुडग़ांव एवं उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, वृंदावन, आगरा, मथुरा का गंदा पानी यमुना को मैला कर रहा है पर आज तक इस पर आवाज नहीं उठाई गई। पंचाट की जानकारी में शायद ये तथ्य हैं ही नहीं। आखिर क्यों अब तक इस पर आपत्ति नहीं उठाई गई? विश्व सांस्कृतिक उत्सव की तैयारी महीनों से चल रही थी, तब ये याचिकाकर्ता कहां थे? क्यों नहीं पहले आवाज उठाई गई। साफ है उनकी दिलचस्पी यमुना में नहीं, वे इस उत्सव के माध्यम से भारतीय संस्कृति के उत्थान को पचा नहीं पा रहे थे। अत: आखिरी वक्त पर भारत की छवि को बिगाडऩे के शृंखलाबद्ध योजनापूर्वक चल रहे अभियान की यह एक और कड़ी है और इसे समझने की आवश्यकता है। लिखने की आवश्यकता नहीं कि जब 155 देशों के प्रतिनिधि वसुधैव कुटुम्बकम के जयघोष के साथ भारतीय संस्कृति का गान कर रहे हों यमुना के अस्तित्व पर संकट का कारण दिखाई पडऩा, वास्तव में पीड़ादायक है, दुर्भाग्यपूर्ण है। आज यह आयोजन भारत की छवि को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक स्थान देने का अवसर है पर इस अवसर को यह राष्ट्रघाती क्या स्वरूप दे रहे हैं, विचार करने की जरुरत है और इन्हें पहचानने की भी।