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छोटे पड़ोसियों के साथ भारतीय कूटनीति

संजीव पांडेय

बीते दिनों नेपाल के प्रधानमंत्री भारत पहुंचे। दोनों मुल्कों के बीच तनाव में कमी आयी। वहीं बांग्लादेश में भारत ने एक महत्वपूर्ण बिजली प्रोजेक्ट हासिल किया है। उधर लंका ने घोषणा की है कि भारत के साथ जल्द ही आर्थिक सहयोग को और बढ़ाया जाएगा। एक ओर जहां बांग्लादेश में चरमपंथी भारत-बांग्लादेश के संबंधों को खराब करने में जुटे हैं, वहीं नेपाल में मधेेेसियों के आंदोलन ने तनाव बढ़ा दिया था। बांग्लादेश के अंदर चरमपंथियों के पैर पसारने के बाद वहां की सरकार ने भारत के साथ संबंधों को मजबूत किया है। जबकि वहां कई ब्लॉगरों की हत्या की गई। अल्पसंख्यकों पर कई जगह हमले हुए। भारत विरोधी आतंकी संगठन बांग्लादेश में सक्रिय है। इसके बावजूद बांग्लादेश की सरकार ने भारत से संबंधों में गर्मजोशी दिखायी है। भारत की यह बड़ी सफलता है कि भारत ने बांग्लादेश के अंदर पहला बड़ा ऊर्जा प्रोजेक्ट हासिल किया है। भारत बांग्लादेश के खुलना में 1320 मेगावाट का एक बिजली प्लांट लगाएगा। भारतीय कंपनी ने यह प्रोजेक्ट चीनी कंपनी को पछाड़ कर हासिल किया है। भारत की कंपनी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड ने 1.2 बिलियन डालर का यह प्रोजेक्ट चीनी कंपनी हार्बिन इलेक्ट्रिकल इंटरनेशनल कंपनी लिमिटेड को पछाड़ कर हासिल किया है। दरअसल चीन की नजर बांग्लादेश में जहां ऊर्जा के क्षेत्र में है, वहीं बांग्लादेशी बंदरगाहों को भी चीन अपने प्रभाव में लेना चाहता है। पाकिस्तान और श्रीलंका के बाद अगर बांग्लादेशी बंदरगाहों में चीन ने निवेश किया तो भारत अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक चीनी सैन्य विस्तार से घिर जाएगा। हालांकि राहत की खबर यह है कि बांग्लादेशी बंदरगाहों के विकास में जापान ने फंड मुहैया करा चीन को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। पिछले साल ही यहां के बंदरगाहों के विकास के लिए जापान ने फंड मुहैया करवाया है। पूर्वी सीमा की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है कि बांग्लादेश संबंध और मजबूत हो। भारत पर पूर्वी सीमा से दो तरह के खतरे है। पहला खतरा चीन से है। चीन पूर्वी सीमा पर मौजूद देशों को अपने प्रभाव में लेना चाह रहा है। वहीं कट्टर इस्लाम ने बांग्लादेश में दस्तक दे दी है। वैसे में भारतीय कूटनीति की परीक्षा यहीं होगी। दरअसल बांग्लादेश के पास गैस का बड़ा भंडार है। वहीं बांग्लादेश भारत को बर्मा समेत दक्षिण एशिया से जोडऩे वाला एक आर्थिक कॉरिडोर भी है। यही कारण है कि चीन यहां घुसपैठ जमाना चाहता है।
अब भारत के संबंध नेपाल और श्रीलंका से भी सुधरते नजर आ रहे हैं। नेपाल में हालात कुछ ज्यादा ही खराब हो गए थे। मधेसियों के आंदोलन के कारण भारत नेपाल संबंध कुछ महीने पहले सबसे खराब दौर से गुजर रहे थे। लेकिन नेपाल ने वस्तुस्थिति को पहचाना। नेपाली सत्ता तंत्र ने यह महसूस किया कि भारत के सहयोग के बिना नेपाली जनता को दिन-प्रतिदिन की जरूरी चीजों के लिए भी मोहताज होना पड़ेगा। हालांकि शुरू में नेपाल ने अति उत्साह में भारत विरोधी रवैया अपनाते हुए चीनी आपूर्ति लाइन पर भरोसा किया था। जरूरी राशन की चीजें जिसमें खाने के सामान से लेकर पेट्रोलियम तक शामिल था चीन से मंगाना शुरू कर दिया था। लेकिन कुछ महीने में ही चीनी सहयोग में व्यवहारिक समस्या पता चल गई। दुर्गम रास्तों से चीनी पेट्रोल नेपाल को महंगा पड़ा। भारत की आपूर्ति लाइन ठप होने पर नेपाल में तेल और गैस समेत कई चीजों की राशनिंग करनी पड़ी। जब भारत से आपूर्ति सामान्य हुई है तो नेपाल ने पेट्रोल और गैस से राशनिंग खत्म की है। नेपाल को लेकर हमारी विदेश नीति में धार नहीं रही। 17 साल बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल का दौरा किया। इससे पहले इंद्र कुमार गुजराल बतौर पीएम नेपाल गए थे। अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ सार्क सम्मेलन में भाग लेने नेपाल गए थे। यूपीए के कार्यकाल में नेपाल प्राथमिकता में नहीं था। जबकि सच्चाई यह है कि भारत-नेपाल संबंधों में मजबूती से दोनों मुल्कों को भारी लाभ होगा। नेपाल के पास 80 हजार मेगावाट हाइड्रो पावर उत्पादन की क्षमता है। लेकिन पूंजी और तकनीक के अभाव में नेपाल अपनी क्षमता का उपयोग नहीं कर पा रहा है। भारत सरकार ने अक्सर नेपाली हाइड्रोपावर क्षमता दोहन का प्रस्ताव रखा। लेकिन माओवादियों ने इसका विरोध किया। जबकि सच्चाई यही है कि अगर भारत नेपाल के ऊर्जा क्षेत्र में निवेश करेगा तो नेपाल के अंधेरे के साथ बिहार और उत्तर प्रदेश का अंधेरा भी दूर होगा। यही नहीं भारत और नेपाल को वर्तमान आर्थिक व्यापार के रास्तों को और विकसित करना चाहिए। सीमा पर स्थित चैक पोस्टों का आधुनिकीकरण काफी जरूरी है। अभी सारे व्यापारिक रूट के चेक पोस्टों की हालत खस्ताहाल है। हालांकि चीन को नेपाल को लेकर अलग ही शंका है। इस शंका में तिब्बती युवा केंद्र है। यहां पर तिब्बती युवाओं की सक्रियता बढ़ी है। इससे चीन परेशान है। चीन नेपाल से प्रत्यर्पण संधि चाहता है। नेपाल से लगते तिब्बत सीमा के पास तिब्बती युवाओं की गतिविधियों को लेकर कई बार नेपाल को चीन ने चेताया है।
श्रीलंका में मौजूदा सरकार ने भारत से और गहरे आर्थिक संबंध स्थापित करने के संकेत दिए हंै। लंका सरकार ने संकेत दिए हैं कि इसी साल भारत और लंका के बीच प्रस्तावित आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग करार पर हस्ताक्षर हो जाएंगे। हालांकि लंका के ट्रेड यूनियन इस करार के विरोध में है। लेकिन इस समझौते के बाद जहां लंका का विकास तेजी से होगा, वहीं भारतीय युवाओं को अच्छा रोजगार लंका के अंदर मिलेगा। गौरतलब है कि लंका में महिंद्र राजपक्षे की सरकार के समय में चीन ने खासा घुसपैठ किया था। चीन ने वहां कई ऊर्जा, सड़क और बंदरगाहों से संबंधित प्रोजेक्ट हासिल किए थे। हालांकि यह प्रोजेक्ट अंतर्राष्र्टीय मानक के हिसाब से खासे महंगे थे और राजपक्षे सरकार जाने के बाद वर्तमान सरकार इन प्रोजेक्टों की समीक्षा कर रही है। लेकिन भारत के लिए खतरा यह था कि लंका के बंदरगाहों पर चीन अपनी घुसपैठ कर हिंद महासागर के नौवहन में सीधा दखल करना चाह रहा था। यह भारतीय सुरक्षा के लिए भारी खतरा था। यही नहीं लंका के अंदर पाकिस्तान ने भी घुसपैठ की कोशिश की है। हाल ही में नवाज शरीफ ने लंका का दौरा किया था। उन्होंने चीन और पाकिस्तान के संयुक्त प्रयास से विकसित लड़ाकू जहाज जेएफ-17 लंका को बेचने की कोशिश की। लेकिन यहां पर भारतीय कूटनीति सफल रही। पाकिस्तान से लड़ाकू विमान खरीदने को लेकर लंका ने हामी नहीं भरी।
दरअसल भारत के पड़ोसी देशों के साथ भारतीय कूटनीति का निर्धारण चीनी गतिविधियों पर नजर रखते हुए किया जाना चाहिए। चीन एशिया से अफ्रीका तक अपने प्रभाव को बढा रहा है। खासकर चीन समुद्री व्यापारिक रास्तों पर अपना कब्जा चाहता है। चीन ने विदेशों में अपनी सैन्य उपस्थिति के लिए दिसंबर 2015 में पहला आतंकवाद विरोधी कानून पारित किया है। इसके तहत विदेशों में चीनी आर्थिक हित की सुरक्षा के लिए चीन अपने सैनिकों को भेज सकेगा। यह अमेरिकी नीति का अनुसरण है। दरअसल चीन इस कानून का इस्तेमाल भारत के हितों के खिलाफ भी भविष्य में करेगा। चीन ने पाकिस्तान में 46 बिलियन डालर का निवेश किया है। चीन यहां पर आर्थिक हितों की सुरक्षा के नाम पर अपने सैनिकों की तैनाती कर सकता है। अब चीन की कोशिश होगी कि बांग्लादेश, बर्मा, नेपाल और लंका में अरबों डालर का आर्थिक निवेश किया जाए। इसके बाद इन निवेशों की सुरक्षा के बहाने चीनी सैनिकों की तैनाती यहां की जाए। दरअसल इसके लिए चीन के पास बहाना भी है। कई एशियाई मुल्कों में बढ़ती आतंकी गतिविधियों के बहाने चीन अपने आर्थिक निवेश की सुरक्षा की गारंटी चाहेगा। छोटे देशों के पास इतने संसाधन नहीं होंगे कि वो चीनी निवेश की सुरक्षा अपने देशों में कर सके। इसी बहाने चीन अपने सैनिकों को वहां बिठा देगा।

Updated : 12 March 2016 12:00 AM GMT
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